Friday, October 18, 2024
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लंदन फोर्ट में “भ र त रंगोत्सव” में विभिन्न विधाओं से जुड़े उत्तराखण्ड लोक व लोकसंस्कृति पर जुटे प्रदेश के चुनिंदा रंग व संस्कृति नाट्यकर्मी।

(मनोज इष्टवाल)

भाव राग ताल अकादमी व संगीत नाट्य अकादमी के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय “भ र त रंगोत्सव” का शुभारंभ दिल्ली व देहरादून से पधारे रंगकर्मी, साहित्यकार व समाजसेवियों द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया। इसके बाद लोक संस्कृति को वाद्य यंत्रों में पिरोते हुए यहां के लोक कलाकारों द्वारा ढोल, दमाऊ, हुड़का व धतिया नगाड़े में विभिन्न तालों पर आकर्षक प्रस्तुतियां दी गयी।


भाव राग ताल अकादमी के निदेशक कैलाश कुमार ने रंगोत्सव में पहुंचे सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि यह हम सब के लिए गौरवशाली क्षण हैं कि हम रंगोत्सव के माध्यम से अपनी लोक संस्कृति, लोक समाज की उस हर गाथा को सजीवता प्रदान करने का काम कर रहे हैं जो हमारे लोक में आदिकाल से चली आ रही है। हमारा प्रयास भी यही है कि वर्तमान पीढ़ी अपने अतीत के आखरों को संजोए व उन्हे ऐसे ही प्लेटफॉर्म पर उजागर कर अपनी लोककला, साहित्य संस्कृति को रंगमंचों के माध्यम से एक हाथ से दूसरे हाथ तक परोसते हुए इसको दीर्घ जीवन प्रदान करेंगे।


उन्होंने कहा कि उनकी टीम का हमेशा यही प्रयास रहा कि हम अपनी लोक संस्कृति को छोटे बड़े हर मंच पर ले जाएं जहां विश्व समुदाय हमारी उपस्थिति महसूस कर सके।
तत्पश्चात भाव राग ताल अकादमी ढोल वादक लोककलाकारों ने नँगरा व ड्योढ़ा लोक धुन बजाकर सभी दर्शकों का मन मोह लिया। सुप्रसिद्ध नाट्यकर्मी व निर्देशिका लक्ष्मी रावत ने अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं का अभिवादन करते हुए माँ बहनों से अपील की कि वे अपने पुत्र-पुत्री को उनकी रुचि के अनुसार कार्य करने दें। अक्सर हम अपने बच्चों के अभिनय के शौक को पार्ट टाइम समझते हैं व उनकी ऐसी गतिविधियों को नालायकी समझते है लेकिन ये कम लोग जानते हैं कि अभिनय के लिए बहुत सी किताबें पढ़नी पढती हैं।


विगत जून 2018 में विश्व भर में सबसे ज्यादा पेटिंग का चीन का रिकॉर्ड ध्वस्त कर गिनीच बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भारत का नाम दर्ज करवाने वाली टीम का हिस्सा रही पिथौरागढ़ की 25 बर्षीय चित्रकार शिवानी विश्वकर्मा ने ख्वाइश जताते हुए कहा कि मेरी हार्दिक इच्छा है कि मैं अपनी पेटिंग के माध्यम से अपने शहर के लोक व लोक संस्कृति को विश्व मानचित्र में ऐसा रूप दूँ जिसे देखकर विश्व भर के शोधकर्ता, घुमक्कड़ व बुद्धिजीवी मेरे शहर को पूछते हुए आएं और हमारा लोक समाज विश्व समुदाय के लिए एक उदाहरण पेश कर सके।

शिवानी ने कहा कि आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है और वह गौरान्वित है कि उसकी इस “रंगोत्सव” कार्यशाला को देखने उसकी प्रेरणास्रोत माँ यहाँ दर्शक दीर्घा में बैठी हैं। उन्होंने सभी माताओं से अनुरोध किया कि यह जरूरी नहीं हर बच्चा डॉक्टर इंजीनियर ही बन पाए। उनकी इच्छाओं की पूर्ति के लिए उन्हें फ्री हैंड रखिये ताकि वे अपनी इच्छाओं के आधार पर अपना भविष्य संवार सकें। उन्होंने सन 1975 में अपने पिता दीवानीराम की उस पेटिंग का जिक्र किया जो इस कार्यशाला की शोभा बनी थी व तत्कालीन पिथौरागढ़ शहर को जीवित रखे थी। शिवानी ने कहा कि मेरी चित्रकारी के पहले शिक्षक मेरे पिता ही रहे। उनकी प्रतिभाओं से मंत्रमुग्ध छायाकार पूरण चन्द्र पाटनी ने शिवानी से अनुरोध करते हुए कहा कि वह उनके द्वारा संग्रहित 1951 की ऐसी तीन तस्वीरें पिथौरागढ़ की उन्हें दे सकते हैं जिसमें तत्कालीन पिथौरागढ़ है।


कार्यशाला को संबोधित करते हुए पौडी गढ़वाल से आई सुप्रसिद्ध नाट्यकर्मी वसुंधरा नेगी ने लोक संस्कृति पर अपना ब्याख्यान रखते हुए उन्हें अपनी माटी से बचपन से ही इतना प्यार था कि वह 15 साल की उम्र में ही दिल्ली से बस में बैठकर अपने गांव भाग आई। जहां उनके ताऊ जी ने उन्हें सम्भाला। फौजी पृष्टभूमि की होने के कारण आप भले से समझ सकते हो कि कला और कलाकार को मेरे परिजन किस रूप में लेते रहे होंगे। उन्हें यह सिर्फ मिरासी, बेड़ा व बादी-बादिन पेशे से जुड़े लोगों का कृत्य लगता है। पाँवड़े, जांगड़े, बाजूबंद जैसे गीतों नृत्यों को सुनकर पली बड़ी हुई जो दिल को छूते हैं। बस यही आंगनों के गीत मेरे में उतरने लगे और कब मैं सुप्रसिद्ध नाटक लेखक व नाट्य कर्मी ललित मोहन थपलियाल की शिष्य बन गयी पता तक न चला। आज थियेटर ही मेरी पहचान है व गढवाळी बोली भाषा के प्रोत्साहन के लिए उसी में नाटक लिख भी रही हूँ व मंचन भी कर रही हूँ जिस से हमारी लोक संस्कृति जीवित रहे। उन्होंने कहा पूरे देश की विभिन्न लोक संस्कृतियों में उत्तराखण्ड की लोक संस्कृति में जो लोक विविधता है वह अपने आप में अतुलनीय है। यह हमारा ही लोक समाज व लोक संस्कृति है जिसने वीर और वीरांगनाओं का सिर्फ सम्मान ही नहीं किया बल्कि उन्हें मंदिरों में सुशोभित कर देवी देवताओं की तरह पूजा है।
इस दौरान बीएससी की एक छात्रा उमा कार्की ने प्रश्न उठाया कि क्या हम ऐसा नहीं कर सकते हैं कि अपनी लोकसंस्कृति में व्याप्त विभिन्न आयामों जिनमें लोकगीत, भड़ वार्ताएं, लोकनृत्य लोककथाएं इत्यादि जुड़े हैं स्कूली सेलेबस में शामिल कर सकें। इस प्रश्न का जवाब देते हुए कार्यशाला में शिरकत करने द्वाराहाट बग्वाली पोखर से पहुंचे डॉ. दीपक मेहता ने कहा कि विगत सरकार में यह निर्णय सिर्फ लिया ही नहीं गया था बल्कि डायट में पूरे प्रदेश के चुनिंदा शिक्षकों द्वारा गढवाळी, कुमाऊनी, जौनसारी व रंग बोली भाषा का एक से 10 तक की कक्षाओं के सिलेबस के सिलेक्शन के लिए कई कार्यशालाएं आयोजित हुई व उसे प्रारूप दिया गया लेकिन जैसे ही वह शिक्षा व्यवस्था की पुस्तकों में शामिल होती सरकार बदल गयी और वह अभी ज्यों की त्यों किताबी रूप में धूल फांक रही हैं।
कार्यक्रम का मंच संचालन विप्लव भट्ट ने किया । इस दौरान देहरादून से पधारे “पलायन एक चिंतन” के संयोजक रतन सिंह असवाल, वरिष्ठ पत्रकार मनोज इष्टवाल, दलवीर सिंह रावत सहित कई समाजसेवी, बुद्धिजीवी मौजूद थे।
आपको जानकारी दे दें कि “भ र त रंगोत्सव” कार्यशाला में कल सुप्रसिद्ध वरिष्ठ रंगकर्मी व निर्देशिका श्रीमती लक्ष्मी रावत (दिल्ली), पलायन एक चिंतन के संयोजक समाजसेवी एक्टिविस्ट रतन सिंह असवाल (पौडी), वरिष्ठ रंगकर्मी प्रेम मोहन डोभाल (रुद्रप्रयाग), वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार मनोज इष्टवाल (देहरादून) अलग अलग विधाओं जिनमें रम्माण, चक्रव्यूह, पलायन व लोक विधा, कथा साहित्य एवं लोककथाओं सहित विभिन विधाओं पर अपने व्याख्यान रखेंगे। इसके अलावा कैलाश कुमार पिथौरागढ़ की हिल जात्रा पर प्रस्तुतिकरण देंगे।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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