(ग्राउंड जीरो से संजय चौहान)!
एक कहावत है कि पहाड़ का पानी और पहाड की जवानी पहाड़ के काम नहीं आती है लेकिन आज इस कहावत को झुटलाया है उत्तराखंड के सीमांत जनपद पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट ब्लाॅक के टुंडाचौडा गांव निवासी गोविन्द सिंह नें, एक ओर उन्होंने गांव के जंगलों में चाल, खाल, खंतिया बनाकर पानी का संग्रहण किया ताकि भविष्य में उनके पारम्परिक जलस्रोत रीचार्ज हो सकें। वहीं दूसरी ओर आजादी के 73 साल बाद पहाड काटकर ग्रामीणों के सहयोग से गांव में सडक पहुंचाकर पूरे देश में एक नयी मिसाल पेश की है। 17 साल बाद गांव वापस लौटकर गोविन्द नें रिवर्स माइग्रेशन की नयी परिभाषा गढी है और गांव की तस्वीर बदल दी।
— पत्रकारिता के चमकदार कैरियर को छोड़ गांव की माटी में वापस लौटे!
गोविन्द सिंह विगत 17 सालों से पत्रकारिता (कैमरामैन) के क्षेत्र में थे। देश के बडे बडे शहरों में उन्होंने बडे बडे बैनरों के संग काम किया दिल्ली, मुंबई से लेकर देहरादून में उन्होंने कैमरामैन के रूप में लोगों की हजारों स्टोरी कवर की थी। लेकिन उनका मन कभी भी शहर की दिखावा भरी जिंदगी में नहीं रमा। पत्रकारिता जैसे चमक धमक, शानों- शौकत, ऐशोआराम की जिंदगी और चमकदार कैरियर को छोड़कर वे पिछले साल सितम्बर-अक्तूबर में पूरे परिवार के साथ वापस अपने गांव टुंडाचौडा लौट आये। गांव लौटने के पीछे उद्देश्य था अपने गांव का विकास करना और गांव को विकास के माॅडल के रूप में प्रस्तुत करना।
— 17 साल बाद गांव लौटकर बदल डाली गांव की तस्वीर!
फोटो-गोबिंद सिंह
गोविन्द सिंह नें गांव लौटने के बाद पिछले साल ग्राम पंचायत चुनावों में अपनी पत्नी मनीषा देवी को चुनाव लडाया और गांव के लोगों नें मनीषा को ग्राम प्रधान का चुनाव जिताया। चुनाव जीतने के बाद दोनों की जबाबदेही गांव के प्रति बढ गयी थी। रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को पंख लगाने के सपने को साकार करने के लिए ही दोनों पति पत्नी गांव लौटे थे। चुनाव जीतने के बाद गोविन्द सिंह, उनकी पत्नी ग्राम प्रधान मनीषा देवी नें गांव के युवाओं की बैठक कर गांव के विकास का खाका तय किया गया और एक सुनियोजित तरीके से गांव में विकास कार्य शुरू किए गये। सर्वप्रथम गांव में क्षतिग्रस्त बिजली के खंभों और झूलते तारों को सही किया गया। तत्पश्चात गांव में वृहद्ध सफाई अभियान चलाकर ग्रामीणों को स्वच्छता का संदेश देते हुये जागरूक किया गया। इसके बाद गांव की क्षतिग्रस्त पेयजल लाइन की मरम्मत और सुधारीकरण किया गया। ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं की जानकारी बैठक, फोन, फेसबुक पेज के माध्यम से भी दी जा रहीं है। गांव के पारंपरिक जलस्रोत में पानी की कमी न हो इसलिए बरसात से पहले ही गांव में खंतिया, चाल, खाल का निर्माण किया गया ताकि बरसात के पानी का संग्रहण हो और जलस्रोत रीचार्ज हो सकें। जिससे गांव को खेती और बगीचे के लिए भी प्रचुर मात्रा में पानी उपलब्ध हो सके। इन कार्यों के धरातल पर पूर्ण होने के बाद गांव को सडक सुविधा से जोड़ने के लिए ग्रामीणों नें श्रमदान से सडक निर्माण की हामी भरी।
– गांव को सड़क सुविधा से जोडने के लिए उठाये गैंती फवाडे, हथोडा और कुदाल, गांव में गाडी देख ग्रामीणों की छलछला गयी आंखे..!
गांव में सड़क न होने से ग्रामीणों को बेहद परेशानी का सामना करना पड रहा था। आज भी गाँव के ग्रामीणों को अपनी रोजमर्रा की वस्तुओं को पीठ पर लादकर लाना पडता है।सड़क न होने से आपातकालीन परिस्थितियों में गाँव के अधिकतर बीमार व्यक्तियों और गर्भवती महिलाओं को समय पर अस्पताल पहुंचाना ग्रामीणों को दुष्कर साबित होता है। ऐसी स्थिति में डोली के सहारे ही बीमार लोगों को सडक तक पहुंचाया जाता है। बरसों से ग्रामीण सडक की मांग करते आ रहें हैं। गाँव के ग्रामीणों की आंखे सड़क के इंतजार में पथरा गई थी। लाॅकडाउन का सदुपयोग करते हुए ग्रामीणों ने खुद ही श्रमदान से सडक बनाने का फैसला किया। तत्पश्चात सड़क निर्माण कार्य शुरू हुआ। मई महीने के अंतिम सप्ताह से शुरू हुआ सडक निर्माण का कार्य आज पूरा हो गया और गांव तक सड़क पहुंच गयी। गांव में पहली बार गाडी देख बुजुर्गों सहित सभी लोगो की आंखें खुशी से छलछला गयी। आज सब बेहद खुश नजर आये। ग्रामीणों के चेहरे पर जो खुशी थी इसका श्रेय जाता है गांव के युवा गोविन्द सिंह को जिनके हौंसलों और जिद नें आजादी के 73 साल बाद गांव को सड़क सुविधा से जोड दिया। टुंडा चौडा गांव के लिए सडक बनाने से शुरू हुई इस पहल से आज टुंडा चंडा, ईटाना, दुगईआगर, खेतिगांव, कनारा, कंडारीछीना गांव भी सड़क सुविधा से जुड गये हैं। 7 लोगों से शुरू हुये इस मिशन में 7 सप्ताह में चार गांवों से अधिक गांवों के ग्रामीणों ने सहयोग करके इसको हकीकत में बदल दिया। छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों ने इसमें सहयोग किया। ग्रामीणों के परिश्रम और आवश्यकता को देखकर सरकार व स्थानीय प्रशासन द्वारा ग्रामीणों का हरसंभव सहयोग किया गया। बीते बरसों में रिवर्स माइग्रेशन और सामूहिक सहभागिता का इससे बड़ा उदाहरण कोई भी नहीं हो सकता है। ऐसे प्रयासों की सदैव सराहना होनी चाहिए।
वास्तव में देखा जाए तो सही मायनो में गोविन्द सिंह नें अपनी पत्नी के साथ मिलकर लोगों के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कि यदि पहाड जैसे बुलंद हौंसला और जिद हो तथा अपनी माटी थाती के लिए कुछ करने की ललक हो तो कोई भी कार्य असंभव नहीं है। यहाँ तक कि वे पहाड़ को काटकर सड़क भी बना सकते हैं। जिसको इन्होंने ग्रामीणों के संग मिलकर कार्य करके दिखलाया है। आज पहाड़ के हर गाँव में छोटी-छोटी समस्याओं का अंबार लगा हुआ है यदि हम गोविन्द सिंह जैसे युवाओं के प्रयासों से सीख लें तो उन समस्याओं का निराकरण आसानी से हो सकता है।
रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीदों को पंख लगाने वाले युवा गोविन्द सिंह के हौंसलों और जिद को हजारों हजार सैल्यूट। अब पहाड़ करवट लेने लगा है।