(मनोज इष्टवाल)
अभी राज्य आंदोलन की शुरुआत भी नहीं हुई थी और पौड़ी ने धीरे धीरे सर्द रातों की तरफ़ कदम रखने शुरू कर दिए थे। क्योंकि बरसात ने अभी कुछ दिन पहले ही तो आंखें मूंदी थी। आंदोलन नारों में विगत कई दिनों से चल रहा था। धरना प्रदर्शन और कोदा झंगोरा खाएंगे उत्तराखण्ड बनाएंगे के नारे ही पौड़ी के हिस्से में थे। आये दिन इधर बाबा बमराडा व अन्य भूख हड़ताल में बैठते उधर कुछ महिलाएं ! लेकिन नतीजा सिफर ही निकलता। सब हैरान परेशान थे कि आखिर कैसे यह चिंगारी सुलगे और इसे राज्य आंदोलन में तब्दील किया जा सके।
फिर आई 8 अगस्त 1994 की वह रात जब पौड़ी में धरने पर बैठे इंद्रमणि बडोनी व साथियों को पुलिस उठाकर ले गयी वहीं साथ बैठे युवाओं व बच्चों को बेहरमी की हद तक पुलिस ने पीटा। राज्य आंदोलनकारी विजयलक्ष्मी गुसाई आज भी उस रात को याद करती हैं तो सिहर उठती हैं। वे बताती हैं कि उस दिन पुलिस की लाठियों से वे गिरफ्तारी के डर से बचते बचाते कई लड़के सुनीता नेगी के घर में पनाह मांगने पहुंचे। पुलिस ढूंढती रही लेकिन भेद नहीं पा सकी। सुनीता नेगी की अभी जुम्मा जुमा दो साल की नौकरी हुई थी। डर ये भी था कि कहीं आंदोलनकारियों को बचाने के चक्कर में नौकरी न चली जाय। और अगली सुबह तो मानो चमत्कार हो गया हो पूरे पौड़ी, च्युंचा, कांडई गांव, ढाँढरी इत्यादि की महिलाओं ने हाथ में दरांती लेकर पुलिस की मौजूदगी में सारा पौड़ी बन्द करवा दिया अब धरना प्रदर्शन ने जलूस का रूप ले लिया था। बस यही चिंगारी क्या फूटी अखबारों की सुर्खियों ने आंदोलन पूरे गढ़वाल ही नहीं कुमाऊं मंडल में भी फैला दिया।
पूर्व कांग्रेसी नेत्री व राज्य आंदोलनकारी विजय लक्ष्मी गुसाई कहती हैं कि उन्हें इस बात का आश्चर्य हो रहा है कि भला कोई राजनीतिक स्वार्थ के चलते सुनीता नेगी अर्थात अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की धर्मपत्नी श्रीमती सुनीता रावत के नाम पर राजनीतिक रोटियां कैसे सेंक सकता है। जिसके घर से राज्य आंदोलन की किरणें स्पुटित हुई हों। जिसके मकान के पीछे
इंटर कालेज हो जिसके खेतों में विश्वविद्यालय हो व बीटीसी जिनके मुहल्ले में हो अकेले उनके गांव कांड़ई की 70 से अधिक अध्यापिकाएं हों फिर 1992 में नौकरी लगी श्रीमती सुनीता रावत के शैक्षिक प्रमाण-पत्रों पर अंगुली उठाकर उन्हें क्या साबित करने की कोशिश हो रही है।
विजयलक्ष्मी गुसाई कहती हैं मुझे आज भी याद है जब कर्फ़्यू के कारण वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की बारात के 15 स 20 व्यक्तियों को बमुश्किल बारात लाने की इजाजत मिली थी। ऐसी अप्रत्यक्ष रूप से आंदोलनकारी रही महिला श्रीमती सुनीता रावत के अध्यापिका बनने पर राजनीतिक स्वार्थों के लिए अंगुली उठाना भला कहाँ तक ठीक है। ऐसी राजनीति हमें शर्मसार कर देती है।
बहरहाल अब श्रीमती सुनीता रावत के सर्टिफिकेट जांच के लिए आ पहुंचे हैं और अगर यह सही पाए गए तो निश्चित है कि सुभाष शर्मा किसी बड़ी मुसीबत में आ सकते हैं कयोंकि यहां मामला सिर्फ एक मुख्यमंत्री से नहीं जुड़ा है बल्कि एक महिला को सार्वजनिक रूप से बदनाम करने का भी बनता है। मुकदमा दर्ज है उसकी पैरवी होनी बाकी है। देखते हैं नतीजा क्या निकलता है। बहरहाल इसे विजयलक्ष्मी गुसाई जहां इसे उस आंदोलनकारी जमीन के लिए शर्मसार कर देने वाला वाकिया मानती हैं जहां से आंदोलन की शुरुआत हुई वहीं अध्यापिका सुनीता कबटियाल का कहना है कि शिक्षा का इस तरह राजनीतिकरण किया जाना गलत है क्योंकि वह स्वयं मानती हैं कि श्रीमती सुनीता रावत के प्रमाणपत्र फर्जी हो ही नहीं सकते।
अब जबकि एक नेता सुभाष शर्मा द्वारा श्रीमती सुनीता रावत की शैक्षिक योग्यता पर प्रेस कांफ्रेस कर सवाल उठाये गए थे और उन्हें अध्यापिका बनाए के लिए फर्जी सर्टिफिकेट होने की बात कही तब थक हार कर श्रीमती सुनीता रावत द्वारा उनके विरुद्ध थाने में प्राथमिकता दर्ज की गयी है! सोशल साईट पर भी कई लोग उनके सर्टिफिकेट को सार्वजनिक करने की बात कहते सुनाई दे रहे थे! प्राप्त जानकारी के अनुसार श्रीमती सुनीता रावत का जो विवरण अभी तक प्राप्त हो पाया है वह यह है कि कु. सुनीता नेगी पुत्री श्री जगत सिंह नेगी द्वारा हाई स्कूल 1982 में रा.क. विद्यालय पौड़ी, 1984 इंटरमीडियट रोल न. 00873300, 1986 बी.ए. व 1988 अंग्रेजी स्नातक गढवाल विश्वविद्यालय पौड़ी! 1991 में रा. कन्या दीक्षा विद्यालय पौड़ी से बीटीसी व 1992-93 में बी.एड ! कई मित्र यह भी जानना चाहते थे कि उनकी शादी 1994 में हुई या 1995 में तो आपको बता दें कि उनकी शादी 13 अक्तूबर 1994 में हुई!