चौबट्टाखाल (पौड़ी गढ़वाल) हिमालयन डिस्कवर।
मेरू मुलुक संस्था द्वारा महाकवि कन्हैया लाल डण्डरियाल के जन्मदिवस पर चौबट्टाखाल में दो दिवसीय सांस्कृतिक और साहित्यिक कार्यक्रम जिसमें पहले दिन गढ़वाली कवि सम्मेलन और दूसरे दिन थड्या चौंफला कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
मुख्य अतिथि के रूप में समाजसेवी कविन्द्र इष्टवाल, अति विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ अधिवक्ता दिल्ली उच्च न्यायालय संजय शर्मा, प्रसिद्ध रंगकर्मी मदन मोहन डुकलान, विशिष्ट अतिथि सीमा सजवाण, कुसुम रावत, हेमलता रावत, आरती नेगी आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता नरेंद्र सिंह नेगी जी द्वारा की गई।
कार्यक्रम का उद्घाटन मां सरस्वती एवं कन्हैयालाल डण्डरियाल की प्रतिमाओं पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया। कवि सम्मेलन में जयपाल सिंह रावत छिपडुदा ने अपनी हास्य कविता “एक बार छिपडु की ब्वे दिल्ली ग्यायी”, मदन मोहन डुकलान ने “धै धाद धवडों का”, ओम प्रकाश सेमवाल ने “एक आंदोलन”, गणेश खुगशाल गणी ने “मि जरूर आंलू”, हास्य कवि हरीश जुयाल कुटज ने “राधे राधे बोल”, ओम बधाणी ने “कै राजा की होली बयार”, प्रीतम अपच्छाण ने “सुपन्यु टुटि ग्यायी”, धर्मेंद्र नेगी ने” सीधा सकलों तैं सजा मिलणी किलै” सुनाई वहीं गिरीश सुन्दरियाल ने “म्यारू चौन्दकोट” सुनाकर सभी को चौन्दकोट की विशेषताओं से रूबरू करवाया। इस अवसर पर गढ़वाली पत्र” चिट्ठी” द्वारा नरेंद्र सिंह नेगी को चिट्ठी सम्मान से सम्मानित किया गया।
चौंफला गीत प्रतियोगिता में चौबट्टाखाल, सौंडल, रणस्वा, लटिबौ, फील गुड संस्था, रा. इ. का. चौबट्टाखाल, किमगडी, नौली, धरासू, गडरी, सलाण, अन्दपुर, दांथा आदि टीमों के द्वारा अपनी प्रस्तुति दी गई। चौंफला प्रतियोगिता के निर्णायक मंडल में डा सतीश कालेश्वरी, अनिल बिष्ट, यतेन्द्र गौड, ओम बधाणी तथा डा प्रीतम अपछ्याण सम्मिलित थे।
थडिया चौंफला प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर फीलगुड की पुरूष टीम रही, दूसरे स्थान पर रणस्वा ग्राम सभा की महिलाओं की टीम और तृतीय स्थान पर सबसे बड़ी ग्राम सभा गडरी की महिला टीम रही। विजेता टीमों को समाजसेवी कविन्द्र इष्टवाल द्वारा स्मृति चिन्ह और नकद राशि देकर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर अनिल बिष्ट, ओम बधाणी और जगमोहन रावत के गीतों पर दर्शक जमकर थिरके।
कार्यक्रम के समापन पर समाजसेवी कविन्द्र इष्टवाल” दगड्या” ने सभी अतिथियों व कवियों को स्थानीय महिलाओं द्वारा तैयार “समूण” भेंट की गई। समूण की परिकल्पना करने वाले कविन्द्र इष्टवाल ने बताया कि पहाड़ में रोजगार के साधनों के सृजन के लिए उन्होंने जनसहभागिता से पहाड़ी व्यंजनों को जैसे अरसे, रोटने आदि को महिलाओं से तैयार करवाकर समूण लोगों तक पहुंचाने का प्रयास किया गया।