विश्लेषक : भीष्म कुकरेती
( आम चुनाव चुनाव विश्लेषण )
2019 के लोक सभा चुनाव में राजनैतिक युद्ध में कई मिथ टूटे और कई नए मिथों का जन्म हुआ या मिथ रचे गए जिस पर क्षेत्रीय स्तर व राष्ट्रिय स्तर पर बहुत कुछ लिखा जायेगा। पोलिटिकल मार्केटिंग विद्यार्थियों या अन्वेषकों हेतु कई सार्वभौमिक या अमर नियमों की पुनर्वृति मिलना अवश्यम्भावी है। सामजिक वैज्ञानिकों के लिए तो 2019 का आम चुनाव भारत का इतिहास टटोलने का स्वर्णिम अवसर है।
मोदी के नेतृत्व में NDA द्वारा लोकसभा की 543 में से 353 सीटें जीतने के कई अर्थ है किन्तु जो सबसे अधिक प्रभावकारी फल है वह है वर्णषकर वाद बामपंथ का निरमूलीकरण में एक बड़ी सीढ़ी हासिल करना। मै 2019 के आम चुनाव को भारतीय संस्कृति का बामपंथ पर झन झन्नाटेदार झापड़ द्वारा क्षत विक्षत या विक्षिप्त करना कहना अधिक पसंद करूंगा।
बामपंथ याने शिशुपाल माँ सिद्धांत का धराशायी होना !
महाभारत में एक कथा है कि जब शिशुपाल (श्रीकृष्ण की बुआ का पुत्र ) का जन्म हुआ तो शिशुपाल की माँ ने श्री कृष्ण से पूछा कि शिशुपाल की मृत्यु कब होगी। श्रीकृष्ण ने शिशुपाल मृत्यु का समय बताते हुए कहा कि बच्चे के जन्म समय मृत्यु नहीं समृद्धि के प्रश्न पूछे जाते हैं। बामपंथ जो सर्वथा अभारतीय सिद्धांतों व अमानवीय सिद्धांतों पर आधारित है ने भारतीय संस्कृति की सर्वथा अवहेलना की जैसे बामपंथ करता रहा है। सन 2013 में जैसे ही भाजपा ने तब गुजरात मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी को चुनाव समिति का सर्वेसर्वा घोषित किया सबसे अधिक ‘पूठे पर डाम ‘ वर्णशंकर बामपथी बुद्धिजीवियों पर पड़े और उनकी चिल्लाहट संयुक्त राज्य अमेरिका , ब्रिटेन व ऑस्ट्रेलिया व पाकिस्तान में सुनाई देने लगा। भारत के हर माध्यम में भारत अनिष्ट की कथाएं प्रचारित होने लगी। झूठ बोल रहा हूँ तो अरुंधति रॉय , जॉन दयाल या फेसबुक पर मंगलेश डबराल के उस समय के संचार माध्यमों में सड़े गले बामपंथियों के व्यक्तव्य या लेख बांच लीजिये सभी भारतीय संस्कृति विरोधी बामपंथी लुच्चों ने गर्भावस्था में पलते बच्चे के बारे में भविष्यवाणी करनी शुरू कर दी बल भारत में ‘विष बालक’ पैदा हो रहा है। भारतीय संस्कृति में बच्चा पैदा होने में सकारात्मक सोच से सुखद , समृद्ध भविष्य की कामना की जाती है किन्तु इन कार्ल मार्क्स के बचे खुचे ‘ हरामजादों ‘( मार्क्स के वर्णशंकर औलादों ) ने नकारात्मक सोच भारतीय मनों में घुसानी शुरू कर दी। नकारात्मक सोच मृत्यु से भी खतरनाक होती है किन्तु मार्क्स के हरामजादों (वर्णशंकर औलाद ) ने भारत में मृत्युदायी नकारात्मक सोच फैलानी शुरू कर दी जो आज भी बंद नहीं हुयी तभी तो मार्क्स की हरामजादी (मार्क्स की वर्णशंकर बुद्धिवादी पुत्री ) अरुंधति राय ने 12 मई को PEN अमेरिका लेक्चर में फिर व्ही विष वमन किया कि भारत में फासिज्म आ गया है।
बामपंथी हरामजादे (मार्क्स के वर्णशंकर बुद्धिजीवी ) !
2019 चुनाव में भारतीयों भारतीवाद को पुनर्जीवित किया और हरामजादा बामपंथ (वर्णशंकर ) को अटलांटिक महासागर में चुलाने गाड़ने का प्रथम कदम उठाया और कसम खायी कि हम भारतीय अब उधार लिया गया हरामजादा बामपंथ सिद्धांत या वर्णशंकर सिद्धांत के बजाय विशुद्ध भारतीय सिद्धांतों से भारत को पुनः विश्व सिरमौर निर्मित करेंगे।
2014 -2018 तक नकारात्मक सड्याण गंध फैलाना!
मई 2014 में मोदी की ताजपोशी के पश्चात ही मार्क्स के हरामजादे (वर्णशंकर ) हर पल भारत में गंध फैलाते रहे कि अनिष्ट हो रहा है अनिष्ट हो रहा है भारत रसातल को जा रहा है। सर्वप्रथम इन मार्क्स के हरामजादों ( वर्णशंकरों ) ने राजकीय उपाधियों को वापस (अवार्ड वापसी ) वापस करना शुरू किया और विदेशों में भारत की छवि बर्बाद करना शुरू किया। मार्क्स के इन हरामजादों (वर्णशंकर ) ने फिर टुकड़े टुकड़े गैंग धरना को हरिस्त पोस्ट करना शुरू किया। जबकि भारतीय जनता इन वरसंशंकर समर्थित हर राज्य सरकार को उखाड़ फेंकने में लगी रही। जब टुकड़े टुकड़े गैंग से काम नहीं चला तो इन विदेशों के टुक्कड़खोरों ने झूठ फैलना शुरू किया कि भारत में दलितों पर अत्त्याचार हो रहा है। बहुत बार क्या अधिकतर शिल्पकारों व स्वर्ण मध्य मानवीय झगड़े होते रहते हैं किन्तु इन हरामजादों (वर्णशंकरों ) ने मोदी ब्रैंड को बदनाम करने कैंडल मार्च निकाला कि दलितों पर हमले हो रहे हैं किन्तु जब गैर भाजपा शासित राज्य में अलवर जैसे दलित संग गैंग रेप हो तो ये हरामजादे (वर्णशंकर ) चुप रहे। इसी तरह किनारे पर बैठे समज हेतु शासकीय स्कीम/योजनाएं जैसे शौचालय , उज्ज्वला , हर गांव में सड़क, अयोध्या को विश्व पटल पर पर्यटक स्थल , कशी में सड़क हेतु मकानों को तोड़ने की आवश्यकता , गंगा सफाई अभियान , गरीबों को सुलभ मकान , सोलर ऊर्जा योजना आदि योजनाओं जिसमे धर्म की कोई अहमियत न थी को भी हिन्दू /फासिज्म -गैर हिंदी रंग देने में इन मार्क्स के हरामजादों (वर्णशंकरों ) ने कोई कसर न छोड़ी हर दिन ये हरामजादे (मार्क्स के वर्णशंकर ) भारत व भारतीयता को बदनाम करते गए। ये हरामजादे (मार्क्स के इल्लीगल औलादें ) महिला आरक्षण का तो समर्थन करते पाए गए किन्तु तीन तलाक जैसे अति अमानवीय सिस्टम के समर्थन में ऐसे ह्यळी गाडते रहे जैसे इन हरामजादों का पड़ दादा मार्क्स अभी अभी मरा हो।
इन वर्णशंकरों ने पांच साल भारतीयवाद को नेस्ताबूद करने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाये और भारतीयवाद को बदनाम करने अंतर्राष्ट्रीय स्तर के माध्यम जैसे इकोनॉमिस्ट पत्रिका का भी सहारा लिया गया कि मोदी को सामने रख भारतीयवाद को नेस्ताबूद किया जाय।
2019 के चुनाव ने साबित किया कि भारतीय कुछ युग तक चुप बैठ सकता है किन्तु भारतीयवाद को मरते नहीं देख सकता और जब सही समय हो तो भारतीय समाज भरतीयवाद को फिर से पुनर्जीवित कर लेगा. भारतीय संस्कृति व समाज हेतु बामपंथ एक हरामजादा (वर्णशंकर ) वाद था जिसकी चूल हिलाने का काय शुरू हो चूका है। अगले दो या तीन दशक भारतीयवाद द्वारा हरमजादा (वर्णशंकर ) सिद्धांत बामपंथ के मध्य युद्ध के दशक होंगे। युद्ध अवश्यम्भावी है यदि भारतीयवादियों ने हरामजादे (वर्णषकर ) सिद्धांत को हराना है तो कई कठोर निर्णय भी लेने होंगे जिसमे सर्वपर्थम छुवाछुत का मटियामेट करना है।