(मनोज इष्टवाल)
यह कहाँ से आती है और कहाँ को चली जाती है यह किसी को नहीं पाता! यह साइबेरिया में भी है तो यूरोप, एशिया, अमेरिका इत्यादि मुल्कों में भी! लेकिन यह हर बर्ष प्रजनन के लिए सिर्फ भारत बर्ष के ही कुछ चुनिन्दा हिस्सों में आती है यह बड़ी अजब गजब कहानी है!यह पक्षी नीली या काली लेकिन बेहद लुभावनी नजर आती हैं ! ये हमेशा ही नर मादा साथ-साथ होती हैं! उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में इसे धनचिड़ी या गोताई तो गढ़वाल मंडल में बामण पोथली (पोथी), गुथनी, गोथ्नी, ग्वथिनी, गौताई,गुताई तथा अंग्रेजी में इसे बार्न स्वेलो इत्यादि नामों से जाना जाना है! कई जगह इसे स्वेफ्ट, अबाबील नामों से भी पुकारा जाता है! इस पक्षी पूरी दुनिया में कई जगह पर पाया जाता हे। इस पक्षी की पूरी दुनिया में 83 प्रजाति मिलती है। पक्षी कई रंगो में मिलता हे। जो के सफेद ,नीला ,और काला रंगो के होते है।
यह पक्षी मुख्यतः बसंत ऋतु के शुरूआती दिनों में भारत बर्ष के कई हिस्सों में अपने हनीमून मनाने आती हैं एवं प्रजजन क्रिया में लिप्त पाई जाती हैं तदोपरांत अप्रैल माह के शुरुआत या दूसरे सप्ताह से या कभी कभी मार्च माह के अंतिम सप्ताह से ये पक्षी अथक मेहनत से आवासीय भवन, दुकान व कार्यालयों में अपना घोसला बनाना शुरू कर देते हैं।इस पक्षी को धनचिड़ी या बामण पोथली या गोथनी कहने के पीछे पहाड़ी लोक समाज अलग अलग तर्क देते हैं! चमोली में इसे बामण पोथली नाम से पुकारने वालों का तर्क है कि ये किसी शुभ महूर्त पर ही घोसले का निर्माण करती है और उसी घर में घोंसला बनाती है जो वास्तु शास्त्र के आधार पर परिपूर्ण हो!
इस पक्षी की बिशेषता यह है कि यह अपने प्रवास के दौरान यह एक दिन में 300 किलोमीटर तक भी उड़ सकता है। इस पक्षी का वजन 25 ग्राम और इसका आकार 19 सेंटीमीटर होता है। इसकी उड़ने की रफ्तार 55 किलो मीटर प्रति घंटे की होती है। मादा एक बार लगभग 3 से 5 अंडे दे सकती है। इस अंडे के रंग सफेद ब्राउन होता है। कहा जाता है कि गोथनी नामक इस पक्षी का जीवनकाल लगभग 3 वर्ष तक का ही होता है। गोथनी को इस्लाम धर्म अनुयायी अबाबील कहते हैं। इस पक्षी का जिक्र इस्लाम घर्म के पवित्र ग्रंथ कुरान में भी आता है।
कुमाऊं ज्यादात्तर स्थानों में इसे धनचिड़िया या गोताई नाम से पुकारा जाता है! नैनीताल जिले के विकासखंड ओखलकांडा के खनस्यू बाजार में हरीश पलडिया नामक व्यवसायी की दुकान पर जहाँ इस पक्षी ने घोसला बना रखा है वह ठीक उनकी तिजोरी वाले बक्से के ऊपर या उनके बैठने के स्थान के उपर है! हरीश पलडिया ने घोसले के नीचे गत्ता लगा रखा है ताकि उनका मल त्याग उनके ऊपर न गिरे! वह बताते हैं कि यह पक्षी विगत कई बर्षों से उनके यहाँ आते हैं और जुलाई माह में मानसून के शुरूआती दौर में ही चले जाते हैं! हरीश पलडिया बताते हैं कि यह इस धनचिड़ि की ही वजह से उनका कारोबार भगवान की दया से ठीक चल रहा है! इसीलिए इसे धन चिड़िया कहते हैं क्योंकि यह जहाँ घोसला बनाती है वह धन की कमी नहीं होने देती या यूँ कहें वहां के यह कष्ट हर लेती है!
पौड़ी गढ़वाल में इसे ज्यादात्तर लोग गोथनी या गुथनी नाम से पुकारते हैं यहाँ लोग तर्क देते हैं क्योंकि इसका घोसला अक्सर गौ थन की भांति दिखाई देता है इसी कारण इसे गौ+थन = गोथनी कहकर पुकारा जाता है! लोग इसे बेहद शुभ मानते हैं! ज्यादात्तर महिलाओं का मानना है कि जहाँ भी ये घोसला बनाती हैं उस घर में कीट-पतंगे, मक्खी मच्छर नहीं होते क्योंकि ये उनका शिकार हवा ही हवा में उड़कर कर लेती हैं! यह घेंडूडी नामक पक्षी की तरह पारिवारिक होंती है लेकिन अपने बच्चों के प्रति बेहद सेंसटिव भी! जब इनके बच्चे अंडों से बाहर निकलते हैं तब ये घोसले के किनारे पर बैठकर उनकी पूरी रक्षा किया करते हैं! ग्रामीणों की तरह शहरवासी भी इस प्रवासी पक्षी को शुभ मानते हैं। इन्हें कोई परेशानी न हो इसके लिए कई व्यापारियों ने अपनी-अपनी ओर से घरों व प्रतिष्ठानों में सलेट बनाए हुए हैं। ये पक्षी कभी जमीन में भी बैठती हैं ऐसा अक्सर देखने को नहीं मिला ये अक्सर विद्युत तारों, आवासीय भवनों, पेड़ों व लोहे के जंगलों में बैठती हैं। इनकी चहल-कदमी गाँव व शहर की शोभा बढ़ा रही हैं।
यह प्रवासी पक्षी गुथनी अपने घोसले को गीली मिट्टी व पंख व मुंह की लारआदि से बनाती है। यह आश्चर्यजनक है कि इसके घोसले का निर्माण नर पक्षी करता है और मादा तभी उसमें प्रवेश करती है जब उसे वह पसंद आ जाए वरना वह उसे तोड़ डालती है व उसका पुनः निर्माण शुरू होता है! यह पक्षी बेहद सफाई पसंद है अपने आस-पास गंदगी नहीं होने देती लेकिन यह इतनी समझदार भी नहीं होती कि अपना मल त्यागने कहीं दूर जाए!
यह अपने घोंसले के निर्माण करते हुए चुपड़ी मिटटी की तलाश में दूर दूर जाती है उसी को पंखों व चोंच में लाकर गीले पंखों से इसका निर्माण करती है! यह पक्षियों के बाल,पंखों से भी घोसले को मजबूती प्रदान करती है! इस पक्षी को प्रवासी तो कहा जाता है लेकिन यह किस देश की मूलतः है इस पर अभी शोध किया जाना बाकी है! मुझे इस पक्षी पर अध्ययन करने में लगभग तीन माह का समय लगा और जो मैंने पाया और लोक मानस से सुना उसके आधार पर यह लेख लिखा है! मसूरी में व्यवसायी अपनी दुकानों पर बनने वाले इन घोंसलों को सिर्फ इसलिए उजाड़ देते हैं क्योंकि ये मल त्यागती हैं जिससे वहां गंदगी होती है लेकिन इसके घोंसले के शुभ संकेत से शायद जयादात्तर लोग वाकिफ नहीं हैं!