Friday, November 22, 2024
Homeलोक कला-संस्कृतिबड़े सलीखे के हैं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कांवडिये! इनसे सीखना चाहिए...

बड़े सलीखे के हैं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कांवडिये! इनसे सीखना चाहिए अन्य क्षेत्र के काँवडियों को..!

बड़े सलीखे के हैं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कांवडिये! इनसे सीखना चाहिए अन्य क्षेत्र के काँवडियों को..!

(मनोज इष्टवाल)

एक माह कहें या १० दिन आखिर शिब भक्तों को उमड़ता हुजूम हरिद्वार नीलकंठ क्षेत्र अपने अपने गणतब्य को निकल पड़े हैं. देश और दुनिया ने सोशल साईट पर कुछ उपद्रवी कांवडियों का तांडव भी देखा! कहीं कार तोड़ते हुए कहीं पुलिस को दौडाते हुए तो कहीं थाणे के अंदर ही पुलिस इंस्पेक्टर को थप्पड़ मारते हुए! और इस सबने जो कुछ इस सनातन परम्परा में दिखाया उसने सिर्फ और सिर्फ उन राज्यों का ही नाम बदनाम किया जहाँ से ऐसे कांवड़ आये थे! ज्यादात्तर नशे में धुत्त चार चार घंटे क्या छ: छ: घंटे राष्ट्रीय राज मार्ग जाम किये हुए मिलते! किसी ने आपत्ति जताई तो समझो उसने अपने लिए काल बुला दिए! 

विगत दिन कोटद्वार से जब हम निकले तो मैंने अपने मित्र समाजसेवी रतन सिंह असवाल को सतर्क रहने की बात कहते हुए कहा कि आज देखना पूरा नजीबाबाद से लेकर हरिद्वार तक काँवडिये ही मिलेंगे इसलिए हमें बेहद सब्र के साथ निकलना पडेगा क्योंकि सोशल साइट्स पर इनकी जो दहशत दिखाई दे रही है उस से आम आदमी का यात्रा करना खतरे से खाली नहीं! ठाकुर रतन असवाल बोले – अरे पंडित जी, आप भी बेवजह की चिंता करते हो! ये पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कांवड़ हैं इन्होने निजी जीवन में सदियों से जाने कितने संघर्ष देखे हैं इसलिए ये इतनी टुच्चेपंथी नहीं करते! क्योंकि ये सब ठेठ किसान होते हैं और जिला बिजनौर, राम पुर, मुरादाबाद इलाके से आने वाले कांवडिये हैं! इन्हें बचपन से ही माँ बाप झगड़ों पचडों से दूर रहने की सलाह देते हैं! ये जब अति ही हो जायेगी तभी उलझेंगे वरना ये हरियाणा, दिल्ली, मेरठ, मुजफ्फरनगर की ओर के कांवड़ नहीं हैं जो बेवजह की गुंडई कर आतंकित करें! उन्होंने कहा देखना इनके साथ इनकी ड्रामा कम्पनी साथ होती है और ये बड़े मजे में अपनी जो चार दिन में यात्रा पूरी हो जाय उसमें सात दिन कम से कम लगाते हैं! इनके स्टोब, गैस सिलेंडर राशन-पानी सब इनके साथ ट्रक या ट्रेकटरों में लदा होता है! 

बहरहाल यह बात चल ही रही थी कि हम नहर वाली रोड से मुड़कर ज्यों ही राष्ट्रीय राजमार्ग पर मुड़े तो वास्तव में कांवडियों के जत्थे के जत्थे पैरों में घुंघुरू पहनकर आगे बढ़ते जा रहे थे! मैंने पैदल कांवड़ तो पहले भी देखी थी लेकिन दौड़ती कांवड़ इस बार भीमताल जाते वक्त देखी! दौड़ती कांवड़ कार या मोटर साइकिल की तरह डाक कांवड़ नहीं होती बल्कि इसमें कुछ युवा अलग अलग चार-पांच मोटर साइकिल लेकर दो दो के जोड़े में मोटर साइकिलों पर सवार थे! एक ब्यक्ति ५० मित्र भागता तो दूसरी बाइक से पीछे बैठा ब्यक्ति उतरकर उसके साथ दौड़ने लगता और दौड़ते दौड़ते उसके हाथ से गंगाजली लेकर आगे दौड़ पड़ता फिर आगे दूसरा फिर तीसरा और फिर चौथा! यही क्रम आगे बढ़ता और फिर बाइक चालक पीछे बैठते पीछे वाले बाइक चलाते! 

हम चिड़ियापुर पहुंचे तो मानों कांवडियो का सैलाव आया हो! गुरुद्वारे से लेकर पूरे चिड़ियापुर में सब पीताम्बरी वस्त्रों में कांवड़ ही कांवड़ दीखते! सडक पर गाड़ियां गतिमान थी और कांवड़ अपने-अपने दलों में अलमस्त ! शिब भक्ति के गीतों को बड़े बड़े स्पीकरों में चलाकर नौटंकी करते! शिब पार्वती के रूप में लड़के-लड़की खूब अल्हड-फुल्हड़ नृत्य करते और दमची दम लगाकर मस्त! यहाँ इस मार्ग पर आपको भांग के बहुत सारे हरे पौधे मिल जाते हैं जिन्हें ये हाथ में मलकर चरस तैयार करते हैं व भोले का प्रसाद समझ खूब कश लगाते नजर आते हैं! सचमुच यह नौटंकी कमाल की थी ! हमारी कार ने भी ब्रेक मारे और रतन असवाल बोले – जाओ पंडित जी आप तब तक फोटो खींच लाओ मैं चाय पकोड़ी का ऑर्डर देता हूँ! आप यकीन नहीं मानेंगे! ये कांवड़ अपने ग्रुप के अंदर कितने भी अनुशासन हीन रहे हों लेकिन राष्ट्रीय राजमार्ग पर ये हरियाणवी या दिल्ली के कांवड़ियों जैसे एक पल भी नहीं दिखे! जो ज़रा सा सडक पर बाधा उत्पन्न करता तो इनके गले में तंगी सीटियाँ इस बात का अहसास करा देती कि वह भूल से सडक बाधित कर रहा है! हमने भी खूब जमकर इनकी नौटंकी का लुत्फ़ उठाया और आगे निकल गए ! यहाँ से लेकर हरिद्वार तक सैकड़ों की संख्या में कांवड़ लिए भक्त मिलते रहे लेकिन मजाल क्या जो ज़रा भी ट्रैफिक बाधित हुआ हो जबकि दिल्ली रोड को इन्होने जागीर बना रखा था और हर तरफ उत्पात को सोशल मीडिया के माध्यम से देश दुनिया ने देखा! सचमुच पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कांवडियों पर हम लोगों को स्पेशल रिपोर्ट तैयार करनी चाहिए ताकि इनसे अन्य राज्यों व क्षेत्रों के लोग सबक ले सकें कि कांवड़ का मतलब हुडदंग नहीं बल्कि अनुशासन होता है! 

मैंने लगभग १२-१३ साल के एक छोटे कांवड़ से बातचीत की उसने अपना नाम मोहन बताया! वह बोला- हमें अगले सोमवार तक रामपुर पहुंचकर अपनी यात्रा समाप्त करनी है! रस्ते भर कोई दिक्कत नहीं बस घर वालों के लिए हमारी कांवड़ चारधाम यात्रा से कम नहीं! हमारे शिब हमारे कुल की रक्षा करेंगे और हमारा क्षेत्र ओफरा-ओफ्री से बचा रहेगा ताकि वहां सुख शान्ति रहे! मैंने जैसे ही पूछा कि ये ओफ्रा-ओफ्री होती क्या है? तब तक एक समझदार ने उसे कोहनी मार दी व वह चुप होकर अपना सामान लेकर चलता बना! मैंने भी बड़े को इसलिए नहीं टोका कि क्या पता बेबात का लफडा हो जाय! 

खैर आज यही चर्चा चली और समय साक्ष्य के कार्यालय में जमे मित्रों ने फिर मुझे मेरे परीलोक पर छेड़ दिया! शुक्र है आज मेरे समर्थन में सभी ने अपने अपने हिस्से के किस्से सुनाये जिनमें वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र पुंडीर ने डाग-डागिन के किस्से तो वरिष्ठ पत्रकार दिनेश कंडवाल ने अपने क्षेत्र की परियों के किस्से व समय साक्ष्य के हर्ता-कर्ता प्रवीन भट्ट ने पिथौरागढ़ मूल के देवी देवताओं पर आधारित प्रकरण! ऐसे में भला मैदानी भाग के डॉ. उपाध्याय कैसे चुप बैठे रहते ! उन्होंने अपने क्षेत्र की लगभग तीन ऐसी हैरतअंगेज कहानियां किस्से सुनाये कि मैं दंग रह गया! हम सोचते थे कि इस तिलस्मी दुनिया का संसार सिर्फ पहाड़ों में ही बसा है लेकिन मैदानी भू-भाग के किस्से सुनकर वास्तव में अचम्भित हो पड़ा! और जब बात ओफरा- ओफरी पर आई तो मैं चिहुंक कर बैठ गया ! उन्होंने बताया कि यह ओफरा- ओफरी भी परीलोक जैसी ही कहानी है! इसमें भी ऐसे ही किस्से हैं कि अक्सर नंगी औरत या मर्द प्रेत या परी रूप में गाँव में आकर नुक्सान करना शुरू करती है तब उनकी रोक थाम के लिए गाँव के मंदिर या मस्जिद के लाउडस्पीकर से बहु बेटियों औरतों के लिए सन्देश जारी कर दिया जाता है कि वे अब शाम फलां बजे से बाहर न निकले क्योंकि अब ओफरा-ओफरी का वक्त है! तब घरों से मर्द जिनमें ज्यादात्तर जवान होते हैं बाहर निकलते हैं व सारी रात बिल्कुल नंग-धडंग गाँव की गलियों खेतों में घुमते हैं इस से बुरी आत्माएं गाँव में प्रवेश नहीं करती! यह किस्सा सुनते ही मुझे वह मोहन याद आ गया! भोले नाथ उसके गाँव ही क्या तमाम उन कांवड़ियों की रक्षा करें उनके परिवारों को मंगलमय बनाए रखे उनके कष्ट टाले जिन्होंने सचमुच इसे धार्मिक यात्रा का चोला पहनकर यात्रा की! फिर यही कहूंगा कि अगर अनुशासन के रूप में कहीं किसी कांवड़ को पुरस्कृत करने की बात आये तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इन कांवड़ियों का कोई सानी नहीं है जिन्होंने एक पल भी राष्ट्रीय राज मार्ग अपने कारण बाधित नहीं होने दिया! 

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
RELATED ARTICLES