बेहद दुर्गम/साहसिक एवम रोमांचकारी स्वर्गारोहिणी – सतोपंथ यात्रा ।।
(सुमित पन्त की कलम से)
कथाओं के अनुसार महाभारत के पांडव भाई इसी रास्ते से होते हुए स्वर्ग की ओर गए थे। चमोली जिले के माणा गाँव से लगभग 23 किमी0 की दुर्गम चढ़ाई के बाद लगभग 4600 मी0 की ऊँचाई पर स्थित सतोपंथ झील का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। हिमालय की यात्रा पूरी कर स्वर्गप्राप्ति के लिए पांडवों ने माणा से स्वर्गारोहिणी के लिए प्रस्थान किया । माणा गाँव में सरस्वती नदी को पार करने के बाद द्रौपदी ने अपने प्राण त्याग दिए। द्रौपदी की मृत्यु के पश्चात भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि सभी लोगों में से पहले द्रौपदी ने ही अपना देह क्यों छोड़ा? इस सवाल का जवाब देते हुए युधिष्ठिर ने कहा कि पांच पतियों के होने के बावजूद द्रौपदी, अर्जुन को लेकर पक्षपात करती थीं। अर्थात वह अपने पांचों पतियों को बराबर नहीं समझती थीं। इसलिए वह स्वर्ग तक की यात्रा पूरी नहीं कर पाईं। इसके बाद सहदेव की मौत हुई, सहदेव ने माणा से 4 किमी आगे आनंदवन नामक स्थान पर प्राण त्याग दिये। इसका कारण था सहदेव का अपने आप को सबसे अधिक बुद्धिमान समझना। इसके बाद नकुल ने सहस्रधारा के समीप अपने प्राण त्यागे। उसकी मौत का कारण था उसके भीतर पनप रहा अपने आकर्षक व्यक्तित्व को लेकर अहंकार। नकुल के बाद अर्जुन के देह ने उसका साथ छोड़ा। अर्जुन ने चक्रतीर्थ नामक स्थान पर अपने प्राण त्यागे ,जब भीम ने युधिष्ठिर से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि अर्जुन को अपने बल और दक्षता पर बेहद अभिमान था। इसलिए वह अपनी यात्रा पूरी नहीं कर पाया।
अब भीम, युधिष्ठिर और वह काला कुत्ता शेष रह गए। लेकिन इसी बीच भीम ने भी सतोपंथ मे उनका साथ छोड़ दिया। भीम की मौत का कारण बना उनकी दूसरों की भूख की परवाह किए बगैर अत्याधिक भोजन करने की प्रवृत्ति।
युधिष्ठिर ने अपने आगे की यात्रा उस कुत्ते के साथ पूरी की। स्वर्गारोहिणी की सीढ़ी चढ़ने के बाद उन्हें इन्द्रदेव मिले, जिन्होंने युधिष्ठिर को उनके रथ पर आकर स्वर्ग चलने को कहा। युधिष्ठिर ने उनसे कहा कि वे अपने भाईयों और द्रौपदी के बगैर स्वर्ग नहीं जाएंगे। इन्द्रदेव ने उनसे कहा कि वे सभी उन्हें स्वर्ग में मिलेंगे। इन्द्र का जवाब सुनने के बाद युधिष्ठिर एक शर्त पर रथ पर चलने के लिए तैयार हुए कि वह काला कुत्ता भी उनके साथ जाएगा, क्योंकि उसने अंत तक उनका साथ नहीं छोड़ा। युधिष्ठिर की यह बात सुनकर उस काले कुत्ते ने अपना असली रूप धारण किया जो धर्मराज का रूप था। धर्मराज, युधिष्ठिर की इस बात से बेहद प्रसन्न हुए परिणाम स्वरूप युधिष्ठिर, इन्द्र के रथ पर बैठकर अपनी देह के साथ ही स्वर्ग पहुंच गए।
स्वर्गारोहिणी का ज़िक्र रामायण मे भी है । रामायण में एक कथा का जिक्र है. शिवजी से वरदान पाकर रावण बहुत अभिमानी और तीनो लोक में अजिंक्य बन गया था. मानव-असुर धरती पर यानी पृथ्वीलोक पर वास करते थे और देवतागण स्वर्गलोक में. इस दूरी को खत्म करने के लिए रावण ने पृथ्वी और स्वर्गलोक को जोड़ने वाला पुल तैयार कर दिया. बाद में, भगवान विष्णु ने उस पुल को ध्वस्त किया था. उस पुल की 14 सीढ़ियां अभी भी दिखाई देती हैं।
सतोपंथ झील से मात्र 4-5 किमी की दूरी पर है स्वर्गारोहणि ग्लेशियर। स्थानीय लोगों के मुताबिक, त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु महेश एकादशी के दिन इस झील में पधारे थे। तीनों देवताओं ने झील के अलग-अलग कोनों पर खड़े होकर पवित्र डुबकी लगाई, इसलिए कहा जाता है कि यह झील त्रिभुज के आकार में है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, सतोपंथ में जब तक निर्मलता व स्वच्छता रहेगी तब तक ही उस झील का पुण्य प्रभाव रहेगा। अत: मेरा सभी मित्रों से निवेदन है कि हिमालय की स्वच्छता , निर्मलता एवं पवित्रता को बनाए रखे ।