Thursday, October 17, 2024
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बेहद कठिन है लोक संस्कृति के बिषयों का फिल्मांकन व निर्देशन..!

(मनोज इष्टवाल संस्मरण 15 जनवरी 2017)

निर्देशन करना आम व्यक्ति को शायद बेहद सरल लगता है क्योंकि लाइट साउंड कैमरा एक्शन बोलने में टाइम ही कितना समय लगता है लेकिन सच ये है कि बिसोई में छुमका गीत की शूटिंग करते समय एक बुजुर्ग नौटियाल जी मेरे “कट इट” चिल्लाने से बेहद परेशान थे। वे बेचारे इसलिए परेशान थे कि अभिनेत्री आकर अभी मुश्किल से कुछ सेकण्ड ही सामने आई दो बोल हुए नहीं कि मैं बार-बार ये शब्द दोहरा देते और जो ओके होता उसे ओके कहता और जो एन.जी. होता उसे एन.जी कहता।

अब सारी रात काली होने वाली बात जो हुई। लोग माघ की मरोज पर अपनी महफ़िल का मजा लेते हैं। यहाँ एक तो पहले ही बिसोई में शराब बंदी की वजह से माघ की पौणाई पर मंदी है, ऊपर से इतनी खूबसूरत अभिनेत्रियाँ तैयार होकर आती बाद में और मैं उन्हें जल्दी वापस भेज देता।

शूटिंग शायद नौटियाल जी ने ही क्या कई अन्य लोगों ने भी पहली बार देखी थी उनकी समझ में ये नहीं आ रहा था कि सिर्फ 5 मिनट के गाने में अभी दो घंटे गुजर गए और एक अंतरा स्थायी तक नहीं फिल्माया जा सका।

नौटियाल जी अपने बगल में बैठे सज्जन को बोलते – अरे यार इसे किसने इतनी ज्यादा पिला दी..। ये बेचारी लडकियां जरा सा नाच रही हैं तब तक यह कट कट बोल दे रहा है. इसे बाहर बिठाओ जब तक इसका नशा नहीं उतर जाता।
बड़ी मुश्किल से नौटियाल जी को वह व्यक्ति समझा पाए कि शूटिंग ऐसे ही होती है। खैर 8 बजे से शुरू हुई यह इंडोर शूटिंग सुबह के 3 बजे समाप्त हुई नौटियाल जी तब तक जमे रहे लेकिन जब उनकी बात सुबह मेरे व कैमरा सहयोगी चन्द्रशेखर चौहान जी के कानों में पड़ी तब हमने खूब ठहाके लगाए।

नौटियाल जी जो बादामी कोट पहने मेरी काली हैट के पीछे बैठे हैं ग्रामीण सज्जन व्यक्तित्व हैं. मैं मन ही मन बोला – सचमुच नौटियाल साहब, यह नशा ही तो है…लोक संस्कृति का. जिसके सिर चढ़ता है जल्दी से नहीं उतरता।

निर्देशन वह भी एक ऐसे गीत पर जिसके बारे में आप उत्तराखंडी तो क्या जौनसार बावर का लगभग 60 प्रतिशत जन मानस भी नहीं जानता कि यह छुमका आखिर होता क्या है फिर उन्हें समझाना पड़ता है कि यह भितरा के गीत, भीतर के नाच है जिसे छुमका कहा जाता है। छुमका इसलिए कहा जाता है क्योंकि गीत के बोलों की शुरुआत छुमका शब्द से ही होती है, जैसे छोड़े, भारत, जंगू, भावी, गंगी इत्यादि गायन की कला है यह भी ठेठ वैसी है लेकिन इस सब से अलग हटकर। यह माघ की ठण्ड में मेहमान व घर परिवार व गॉव के लोगों द्वारा घर के अंदर संचालित ऐसा प्रोग्राम होता है जिसमें सभी खूब गाते व नाचते हैं., उस काल में जौनसार बावर अक्सर माघ में बर्फ़ से लकदक रहता था इसलिए किस तरह ठंडी रातों को गरम किया जाय उसके लिए छुमका जैसे आयोजन बहुत जरुरी भी थे।

छुमका अक्सर पुरुष वर्ग लगाया करता था कुछ ऐसी धारणा भी रही लेकिन ऐसा भी नहीं कि छुमका महिलायें न लगाती रही हों या उस पर नृत्य न करती रही हो। सचमुच इस बिषय पर फिल्मांकन व निर्देशन इसलिए भी कठिन है क्योंकि यह कभी एक या दो पर केन्द्रित नाटी बन जाता है तो कभी बहुसंख्यक तांदी या फिर हारुल जैसा नृत्य।

इसमें मंझा हुआ कलाकार हो तो पूरी महफ़िल की रंगत ही अलग है. कैमरा कर रहे चन्द्रशेखर चौहान जी के अनुभव व उत्तराखंडी बेहतरीन अदाकारा अदिति व नवोदित गायिका सितारा के अभिनय व गायन ने शान्ति वर्मा तन्हां व सितारा के इस गीत को बेहद खूबसूरत सजा दिया। रही सही कमियाँ बिसोई के जिस घर में यह गीत फिल्माया गया उस परिवार ने पूरी कर दी. ऐसे परिवार व ग्रामीणों का धन्यवाद जिन्होंने हमें पूरी रात सहयोग दिया। घर की बहुवें वक्त बेवक्त पूरी यूनिट को चाय पिलाती रही. हमने सभी कमरों में अपना सामान फैलाया हुआ था छोटे बच्चे भी रात भर जागते रहे या फिर उन्हीं की बांहों में झूलते रहे। वह असहनीय पीड़ा होती है लेकिन उन चेहरों पर छलकता प्यार सचमुच देवभूमि की महिलाओं को देवितुल्य बना देता है। इसी लिए तो इसे अतिथि देवो भव: कहा गया है।

छुमका जौनसारी समाज की एक अलग विधा है जिसका आजतक कोई विजुअल दस्तावेज नहीं बना था। मात्र कुछ घण्टों की जो मेहनत में जो विजुअलाइजेशन हुआ है वह आपके सामने है। आप भी एक नजर जरूर देखिए:-

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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