मेरी नीति डायरी….।
(दीपक नि:शब्द)
वादियाँ हमेशा खूबसूरत होती है और नीती की वादियाँ तो अपनी बेपनाह सुन्दरता के साथ देश की एक खूबसूरत जनजातीय संस्कृति के लिऐ भी मशहूर है। कुछ दिन पहले नीती घाटी गया जितना देखा वो बेहद रोमांचित करने वाला था लेकिन अभी भी लगता है कि बहुत कुछ छूट गया है जो मै नही देख पाया। घर से 250 किलोमीटर दूर का यह सफर समुद्रतल से 12400 फीट की ऊँचाई तक का था। बातो का बहुत सारी खजाना है जिसे थोड़ा थोड़ा लिखकर लुटाता रहूँगा। नीती घाटी खूबसूरत है आईये मेरे पहाड़ की इस खूबसूरत रवानियत को महसूस करिये….।
ऋषि गंगा से शुरू होती नीति घाटी चमोली जिले की खूबसूरत घाटियों में से एक है। तिब्बत चीन सीमा से लगा यह इलाका ” रोग्पा ” संस्कृति का गढ है। यह घाटी जोशीमठ से तपोवन की ओर ऋषिगंगा के उदगम की ओर जाती है। तपोवन इस घाटी का बड़ा बाजार है जहाँ पालीटेक्निक, इंटरकालेज और प्राईवेट स्कूले बड़ी संख्या में है। तपोवन में गर्मपानी का कुंड है जिससे लगते हुआ एक प्राचीन शिवालय है। यहाँ से एक किलोमीटर आगे सड़क से सटा रिंगी गर्मपानी का दूसरा श्रोत आता है। खौलते पानी की आवाज और गर्म भाप प्रकृति के जादू को सामने लाकर रख देती है। इससे रिस्ती मिट्टी जिसे मुल्तानी मिट्टी कहते है चेहरे के लिऐ लाभदायी होती है। रिंगी गाँव होते हुऐ एक सड़क भविष्यबद्री को प्रस्तावित है। यहाँ से आगे सलधार गाँव आता है जहाँ से भविष्यबद्री के लिऐ सुभई गाँव होते हुऐ रास्ता जाता है।
सुभाई प्राचीन इतिहास के महान कत्यूरी शाषक सुभक्षिराज के नाम पर पड़ा नाम है। सुभई गाँव के बीचोबीच आठवी सदी का एक प्राचीन मंदिर है। यहा पर परसारी और मृग गाँव भी है। सलधार से 2 किमी आगे रैणी गाँव आता है। जी हाँ चिपको नेत्री गौरा देवी का गाँव। इससे दो किमी आगे लाता घाटी का प्रसिद्ध गाँव है। सड़क से दो किमी पैदल खड़ी चड़ाई के बाद लाता गाँव के शीर्ष पर चौसठमुखी नंदा का पुराना मंदिर है। लाता की यही नंदा राजजात में अपनी बहिनो से मिलने बेदनी बुग्याल में जाती है। सलधार से लगते हुऐ नीती घाटी में लौंग गाँव तक कुल 15 स्थायी गाँव जिनमें क्रमशः खड़धार, परसारी, मृग, सुभई, सलधार, जुगजू, जुवाग्वाड़, पैंग मुरना, रैणी, लाता, तोलमा, भलागाँव, सूखी, फागती है। इससे आगे 12 गाँव प्रवर्जन वाले है जो केवल शीतकालीन प्रवास पर 6 महीने के लिए निचले इलाके के गांवों की तरफ आ जाते हैं। इनमें सबसे पहले जुम्मा आता है। इससे आगे नदी के दूसरे छोर की घने जंगलो पर द्रोणागिरी गाँव के दर्शन होते है। यही वह गाँव है जहाँ से रामभक्त हनुमान लक्ष्मण की मूर्छा दूर करने के लिऐ संजीवनी बूटी उठाकर लाये थे। इसिलिऐ यहाँ हनुमान का नाम लेना तक वर्जित माना जाता है। यहा से आगे गरपक, जेलम, कोसा होते हुऐ मलारी आता है।
मलारी पौराणिक महत्त्व का गाँव है। जोशीमठ से मलारी की दूरी 60 किमी है। मलारी पहुँचते ही देवदार और भोजपत्र के घने जंगलों के बीच हिडिम्बा देवी का मंदिर है, हिडिम्बा को स्थानीय लोग हिरमणी भी कहते हैं।
समतल चौड़ी पहाड़ी पर बसे मलारी में एक 5000 साल पुराना अखरोट का पेड़ है। कहते हैं कि इस पेड़ से चन्दन की सी महक आती है. किवदंती है कि पांडव इसी पेड़ के नीचे धनुर्विद्या का अभ्यास किया करते थे।
यहाँ पर हुई खुदाई में पुरातात्विक महत्त्व के पत्थर से बने शवगृह मिले हैं, इन शवों का पुरातात्विक व ऐतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्त्व है। इसके अलावा यहाँ मिट्टी के बर्तन व एक घोड़े का कंकाल भी मिला हैं। इससे निष्कर्ष निकाला जाता है कि प्राचीन काल में यहाँ पर पशुपालक समाज रहा करता होगा. शायद मरने वाले के साथ उसका घोड़ा भी दफना दिया जाता होगा. इतिहासकार इन अवशेषों को चौथी शताब्दी (ई.पू.) से दूसरी शताब्दी (ई.पू.) तक का बताते हैं। यहाँ समुद्री जीवों के भी अवशेष मिले हैं, जिससे अनुमान लगाया जाता है कि कभी यहाँ टैथिस सागर रहा होगा। यहाँ मिले सोने के मुखौटे से यह भी अनुमान लगाया जाता है कि यहाँ मार्छा जनजाती के लोगों का भी आवास रहा होगा।
मलारी की मिट्टी पूरे गढ़वाल में बहुत पवित्र मानी जाती है। सभी धार्मिक अनुष्ठानों व यज्ञ के लिए इसे विशेष तौर पर मंगवाया जाता है। विशेष आयोजनों के लिए मलारी की मिट्टी सहेज कर रखी जाती है। मलारी गाँव के ठीक ऊपर बने जलकुंड को परी कुंड कहा जाता है। मान्यता है कि कभी इसमें परियां नहाया करती थीं। विशेष मौकों, ख़ास तौर पर रक्षा बंधन के मौके पर यहाँ लोग स्नान किया करते हैं। इस कुंड में बकरी पड़े हुए हैं। मान्यता है कि जब कोई बकरी चुराकर या जंगली जानवर द्वारा मार दी जाती है तब उसके सींग स्वतः ही यहाँ पहुँच जाते हैं। जब तक गायब बकरी के सींग इस कुंड में नहीं आ जाते तन तक उसे जिन्दा ही माना जाता है। संस्कृतिक रूप से समृद्ध मलारी का बगड़वालनृत्य व पांडवनृत्य उत्तराखण्ड के लोकनृत्यों में ख़ास दर्जा रखता है।
मलारी से आगे बुराँश एक जगह आती है जहाँ से एक रोड़ चीन सीमा की ओर बड़ाहोती को जाती है इस हिस्से पर फौज को छोड़कर कोई आबादी नही रहती। दूसरी रोड़ महरगाँव, कैलाशपुर, फरकिया होते हुऐ बम्पा गाँव पहुँचती है। बम्पा के बाद गमशाली और आखिरी गाँव नीती आता है।
बम्पा से आगे…..क्रमशः जारी