ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
इस साल पहाड़ों मे खिले बुरांस नें पहाड़ की सुंदरता में चार चांद लगा दिये। उत्तराखंड मे बुरांस बहुतायत और प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, लेकिन राज्य निर्माण के 19 वर्ष बीत जाने के बाद भी अभी तक हम बुरांस को रोजगार से नहीं जोड़ पाये। वहीं यदि बुरांस के जरिये रोजगार हेतु दीर्घकालीन योजनाओं को अमलीजामा पहनाया जाय तो इससे न केवल लोगों को रोजगार मिलेगा अपितु आर्थिकी भी बढेगी। अभी तक सूबे में केवल कुछ एनजीओ और व्यक्तिगत प्रयासों की वजह से ही कुछ लोगों को बुरांस का जूस बनाकर इससे कुछ रोजगार मिल पा रहा हैं जबकि इसमें रोजगार के बेहद संभावनाएँ मौजूद है। हर साल चारधाम यात्रा में ही निजी कंपनियों के करोड़ों रूपये के विभिन्न पेय पदार्थों की बिक्री होती है। इसी प्रकार बुरांस के जूस से भी बेहतर आमदनी हो सकती है।
बुरांस को रोजगार से जोड़ा जाय इसके लिए नीति निंयताओं द्वारा लोगों को प्रशिक्षित व जागरूक करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाना चाहिए। जिसके तहत यदि हर साल मार्च 15 से अप्रैल 15 के मध्य पहाड़ के दो खूबसूरत पर्यटक स्थल जहाँ पर बुरांस बहुतायत में खिलता है। जिसमें चोपता- तुंगनाथ (रूद्रप्रयाग) और लोहजंग (देवाल-चमोली) में के अलावा सूबे में जहाँ सबसे ज्यादा बुरांस खिलता है पर चक्रीय क्रम के अनुसार बुरांस फेस्टिबल का आयोजन किया जाय। जिससे लोग पहाड़ आयें और विंटर टूरिज्म में बढोत्तरी हो, वहीं इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिले व बुरांस के जरिए लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके।
— कुछ इस तरह से मनाया जा सकता है बुरांस फेस्टिबल!
बुरांस फेस्टिबल हर साल मार्च 15 से अप्रैल 15 के मध्य चोपता- तुंगनाथ (रूद्रप्रयाग) और लोहजंग (देवाल-चमोली) के अलावा अन्य स्थानों पर मनाया जाय। इसमें पहली शर्त इस फेस्टिबल में बुरांस के फूलों को बेवजह न तोड़ा जाय। इसमें पर्यावरणीय पहलुओं का ध्यान रखा जाय। बुरांस फेस्टिबल के तहत लोगों को बुरांस से रोजगार सृजन की जानकारी दी जाय। इसके द्वारा पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन के फायदों पर विस्तार से बातें रखी जाय। मैती आंदोलन के जनक और प्रख्यात पर्यावरण प्रेमी कल्याण सिंह रावत का मानना है की हर साल खिलने वाले बुरांस के जरिये हजारों लोगों को रोजगार तो मिलेगा ही अपितु यहाँ विंटर टूरिज्म को भी पंख लगेंगे। दरकरार है बेहतर कार्ययोजना बनाने की। यदि ये परिकल्पना साकार होती है तो बुरांस महोत्सव उत्तराखंड के लिए मील का पत्थर साबित हो सकती है। सरकारों सहित निजी प्रयासों को इस दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए…
हर साल बुरांस फेस्टिबल के इस नयी परिकल्पना पर आपके बहुमूल्य सुझाव सादर आमंत्रित हैं..।