*संकट चौथ (चौदस)…जिस दिन कांस की थाली में उतर आता है चाँद! सचमुच संकट में है देवभूमि का यह धार्मिक लोक त्यौहार!
(मनोज इष्टवाल)
एक वो दिन था जब पंजाबी त्यौहार करवा चौथ पर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के पलटन बाजार में बेहद गहमागहमी का माहौल था! खरीददारी करती महिलायें व पुरुष इतने ब्यस्त थे कि उन्हें आस-पास तक पलटने की फुर्सत नहीं थी! व्यवसायियों के पास पानी पीने का समय नहीं और एक विगत दिन था संकट चौथ! न मार्केट में रौनक न गढ़वाल कुमाऊं से की महिलाओं के चमकते चेहरों की धमक..! सचमुच इस शहर में संकट में लगा शंकर चौथ का यह त्यौहार..यह व्रत !
अभी विगत एक माह पूर्व की बात ठहरी! उस दिन करवा चौथ था और प्रवासी उत्तराखंडी महिलायें निर्जला व्रत के साथ खूब सज-धजकर फोटो सोशल साईट पर डाल रही थी! सच कहूँ तो यह स्वस्थ्य परम्परा की धोतक लग रही थी! करवा चौथ जो था! एक पंथ दो काज…! पहला पति के दीर्घायु की कामना और दूसरा साल में एक बार पति की तरफ से मिलने वाला मनचाहा उपहार!
मेरी अपनी सोच में यह करवा चौथ का व्रत इसलिए हर समाज के बीच अपनी पैठ बनाने में कामयाब हुआ क्योंकि इसमें लेना और देना बराबरी का सौदा है! पत्नी निर्जला रहती है तो उसके व्रत तोड़ने के लिए पति उसकी ख़ुशी को दोगुनी करने के लिए उसे उपहार प्रधान करता है जबकि संकट चौदस में सिर्फ तिल या चोलाई के लड्डू का भोग ही व्रत तोड़ता है व चाँद भी पूरी रात गुजरने का इन्तजार करवाता है! तब पति पास हो या न हो लेकिन व्रत तो रखना ही पड़ता है! इसे शंकर चौथ कहा जाता है लेकिन मूलतः पहाडी परिवेश में भाषाई भिन्नता के कारण इसे आम बोली-भाषा में नाम दिया गया संकट चौदस या संकट चौथ!
त्याग तपस्या की प्रतिमूर्ति के रूप में जहाँ हमारे समाज की महिलायें अग्रिम पंक्ति में रही वहीँ अब सामाजिक बदलाव के चलते जब ज्यादात्तर माँ-बहनों के पति साथ-साथ है तब उन्होंने यह संकट टालना ही उचित समझा है ! सीधी सी बात कहूँ तो वह यह है कि वैभवता के बढ़ते ही हम सबके धर्म कर्मों में कमी आई है और यही कारण है कि आज माँ बहनें संकट चौदस जैसा त्यौहार मनाने में हिचकिचाती हैं क्योंकि आज उन्हें पता है कि वे अभाव की जिन्दगी नहीं जी सकती तो फिर ऐसे लोक त्यौहारों से अपने शारीरिक सुख का क्यों ह्रास करें!
मुझे उम्मीद यह मुझे उम्मीद यह थी कि 24 जनवरी 2019 को हम इस लोक पारम्परिक त्यौहार के लिए उसी धूम धाम से खड़े होंगे जैसे करवा चौथ के लिए! लेकिन यह सिर्फ बहम साबित हुआ क्योंकि हम अपनी विरासत के त्यौहार अपने गाँवों में ही छोड़कर आये हैं! कल यानि 24 जनवरी को संकट चौदस का यह पर्व मघा कृष्ण पक्ष चतुर्थी पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में था इस जिसके लिए चंद्रमा का इन्तजार 11:30 बजे रात्री तक करना पड़ा! लेकिन दुर्भाग्य देखिये कि मेरे मोहल्ले में ही नहीं बल्कि देहरादून के कई मोहल्ले की छत्तों में न ही कोई रेडीमेड ओखली दिखी न ही वे तिलड्डू और न पति-पत्नी या पुत्र ही दिखा! जो व्रत तोड़ सकें या व्रत कर सकें ! हाँ ..कुछ गृहणियों ने जरुर व्रत किये व पुत्र के स्वस्थ्य जीवन निरोग काया व ऐश्वर्य के लिए चन्द्र से आशीर्वाद लिया लेकिन अविवाहिता किसी बेटी ने चन्द्र से सौम्य सुगुणी पति के लिए शंकर चौथ का यह व्रत रखा होगा ऐसा नहीं जान पड़ता!
मुझे इस बात का शुकून जरुर मिला कि एनसीआर दिल्ली में एक परिवार ऐसा है जो पहाड़ छोड़कर रोजगार की तलाश में वहीँ रच बस गया हो लेकिन उसने अपनी परम्पराओं का निर्वहन वहां भी करना नहीं छोड़ा! देश की एक प्रतिष्ठित पत्रिका के आर्ट डायरेक्टर चन्द्रमोहन ज्योति व उनकी धर्मपत्नी हर एक गढ़वाली लोक त्यौहार को उन्हीं परम्पराओं के साथ मनाते आये हैं! चन्द्रमोहन ज्योति ने संकट चौथ की फोटो भी सोशल साईट पर शेयर की हैं! आपको बता दूँ कि मकर संक्राति पर उनकी सोशल साईट पर वायरल फोटो को दिल्ली के कई अखबारों ने प्रमुखता से उठाया था ! वहीँ दुबई रही सुमाडी (वर्तमान में नैनीताल) की पुत्री व देवप्रयाग के पंचभैय्या परिवार की बहुत श्रीमती रेखा पंचभैय्या ने अपने लोक त्यौहार कभी नहीं छोड़े! उन्होंने दुबई जैसे मुस्लिम देश में भी अपने पारम्परिक लोक त्यौहार व्रत कथाओं का हमेशा अनुशरण किया! शंकर चौथ पर मैंने उन्हें सन्देश भेजा कि क्या आज आपको पता है कि उत्तराखंड का कौन सा त्यौहार है! तब उन्होंने उसी शालीनता के साथ मेरे मेसेज बॉक्स में तिलड्डू के प्रसाद की फोटो भेजकर जवाब दिया! ऐसा भला कैसे हो सकता है कि जिस त्यौहार व्रत को मैं शादी से पूर्व सौम्य सुशील पति के लिए रखती थी उसे पुत्र रत्न प्राप्ति के पश्चात अपने पुत्र की दीर्घायु व मंगलकामनाओं के लिए न रखूं!
मेरा मकसद यह है कि क्या हम कहीं रोज डे, हग डे, फ्रेंडशिप डे जैसे हलके फुलके त्यौहारों को मनाते-मनाते अपनी विरासत के उन पारम्परिक लोक त्यौहारों को क्यों भुला रहे हैं जिनका सीधा सम्बन्ध प्रकृति तत्व व परम्पराओं से जुड़ा हुआ है! सचमुच बहुत पीड़ा हुई जब यह देखा पाया अनुभव किया कि देवभूमि उत्तराखंड की देवी स्वरुप प्रतिमूर्ति हमारी माँ बहनें क्यों संकट चौथ जैसे व्रत त्यौहार को तिलांजलि दे रही हैं! यहाँ अकेली वही इस बात की दोषी नहीं हिं बल्कि हम सभी इस सबके दोषी हैं क्योंकि हमने ही अपनी परम्पराओं को दादी से माँ, माँ से बेटी तक नहीं पहुँचवाया है! व्रत तो हर कोई रखना चाहता है, रखता भी है लेकिन उसका पूजा विधान किसी को पता नहीं है! कृपया संकट चौथ के व्रत विधान को जानें!
कैसे करें व्रत:-
अक्सर इस पर्व को माँ बहनें निर्जला रखकर ही करती हैं! इसलिए पंडित जी से पूछ लें कि क्या निर्जला में जल की बूंदे मुंह में टपकाई जा सकती हैं यानी गंगा जल की बूंदे! माँ बहने इस दिन गुड चोलाई के लड्डू, तिल गुड के तिलड्डू बनाती हैं! दूध फूल की पूजा चन्द्रमा को दी जाती है! गाँवों में इसे सब अपने उर्ख्याला (ओखली) के पास करते हैं! यह शायद ग्रामीण परिवेश में पहला इत्तेफाक होगा जब चाँद को दूध दिखाया जाता है वरना माँ बहनें गौ दूहने के बाद हमेशा चन्द्रमा से दूध को छुपाकर लाती हैं! सारे दिन गणेश पार्वती शिब की पूजा चलती है कीर्तन भजन होते हैं ! जहाँ यह परम्परा नहीं है वे माँ बहने शिब कथा सुनती हैं या फिर शिब स्त्रोत पढ़ती हैं! चाँद निकलती ही कांसे की थाली में पानी डालकर वे माँ बहनें व्रत तोडती हैं जिनके पति पुत्र भाई उस दिन घर पर न हों ! जबकि जिनके पति घर पर हों तो पति करवा चौथ के में चन्द्रमा को अर्घ चढाने के बाद पत्नी को पति लड्डू व पानी पिलाकर उसका व्रत तोड़ता है! यह सारा उपक्रम घर के अंदर नहीं बल्कि घर के आँगन में बनी ओखली के पास किया जाता है! कतिपय महिलायें ओखली को से दुग्ध जलकर भरकर उसमें चाँद देखती हैं! इसमें ओखली पूजा का महात्म्य भी है ! कहते हैं माँ बहनें ओखली से अनुरोध करती हैं कि तू हमें इतना अन्न देना जिससे हम हर रोज नित तेरा उपयोग कर अपना भरण पोषण कर सकें व तेरे कूटे अन्न से मेरा परिवार निरोग रहे वहीँ माँ बहनें शिब व चन्द्र से प्रार्थना करती हैं कि मेरे पति/पुत्र/भाई निरोग रहें उनका हर कष्ट हरना उन्हें दीर्घायु देना व निरोग काया के साथ अपना सा ओज देना जिसकी शीत दमक से मेरा घर परिवार ओजायमान रहे! चन्द्र को दुग्ध जल चढाते हुए आप यह मन्त्र बोल सकते हैं:-
क्षीरोदार्णवसम्भूत अत्रिगोत्रसमुद् भव ।
गृहाणाध्र्यं शशांकेदं रोहिण्य सहितो मम ।।
व्रत विधि बेहद सरल है ! उम्मीद है आगामी व्रत के लिए प्रवासी उत्तराखंडी माँ-बहनें ही नहीं बल्कि पुरुष समाज भी तत्परता दिखाएगा व कोशिश करेगा कि इसके पुनर्जीवन के लिए वह करवा कौथ जैसा उपहार अपनी अपनी अर्धांगनियों को देगा! बेटे माँ को उपहार दें व भाई बहनों को ! इसे तिलकूट का त्यौहार भी कहा जाता है! कई बुद्धिजीवियों का मानना है कि इसे अविवाहित महिलायें नहीं रखती और कई का कहना है कि शंकर चौथ अविवाहिता इसलिए रखती हैं कि भगवान् शंकर के आशीर्वाद से उन्हें चन्द्रमा सा पति मिले!