विजयपाल रावत
“””””””””””
1930 में रंवाई का जन मानस गाँधी या गांधी विचारधारा से किसी तरह से कहीं भी प्रभावित नहीं था। और ना ही तिलाडी गोलीकांड भारत की स्वतंत्रता के लिए कोई आंदोलन था। ये स्थानीय राजशाही के काले कानून के खिलाफ जनता की सीधी बगावत थी, जिसका हिंसा या अहिंसा के आधार पर वर्गीकरण करना उचित नहीं है।
ये जलिंयावाला बाग के गोलीकांड जैसा भी एकतरफा नहीं था, ये सन 1857 के गदर के जैसा एक जन विद्रोह था। क्योंकि इस आंदोलन में किसी भी महिला के शामिल होने का जिक्र नहीं मिलता है, तो ये तय है की इसमें हथियारों से लाम बंद होकर जनता राजा की हुकुमत से आखिरी सांस तक दम खम से लड़ी थी। जिसे सेना के दम पर कत्ले-आम कर और लंबे समय तक मुकदमों के दमन चक्र से राजा के दरबारियों ने काबू किया।
"आजाद पंचायत" नाम का एक संगठन जनता बना चुकी थी। कंसेरू गांव के दयाराम रंवाल्टा उसके अध्यक्ष थे। जो उन दिनों अधिकांशतः कंसेरू गांव में ना रह कर लक्ष्मी नारायण मंदिर के समीप अपने मकान में अकेले रहते थे और कभी-कभार वहाँ से कंसेरू आया-जाये करते थे। वे निडर और साहसी थे बातें स्पष्ट और सपाट करते थे। इसलिऐ उनकी स्वीकार्यता स्थानीय स्तर पर सभी वर्गों के लोगों में थी।
बड़कोट से पांच मील दूर राजगढ़ी के नजदीक राजतर में लाला राम प्रसाद कौशिक रहते थे। लाला राम प्रसाद मूलतः सहारनपुर के रहने वाले थे। जो बड़कोट से राजतर बसे थे। उनकी दुकान और घर एक साथ थे, जो क्रांतिकारीयों की गुप्त और सामान्य बैठकों का मुख्य अड्डा बन गया था। देश के सबसे बड़े वकील मोतीलाल नेहरू के निकटवर्ती और सहारनपुर कांग्रेस के सदस्य होने की वजह से लाला राम प्रसाद आजाद पंचायत के विधिक सलाहकार बनाये गये।
"आजाद पंचायत" के लेखाकार नंगाणगांव के हीरा सिंह चौहान, मुलाणा के इंद्र सिंह और खमंडी गांव के बैजराम रखे गये। बड़कोट के दलपती, लुदर सिंह, चक्रगांव के धूम सिंह, कंसेरू के जमन सिंह, डख्याट गांव के कमल सिंह , बाडिया गांव के दीला सिंह और विणाई गांव के फतेह सिंह आंदोलन के प्रमुख नेता थे।
वन कानून के पक्ष और खिलाफ़ दोनों तरह का माहौल जनता के बीच था। वन कानून के खिलाफ जनता बड़े स्तर पर लामबन्द थी। लेकिन कुछ राजा के पटवारी, मालगुजार, चापलूस स्याणों और थोकदारों के ठाट-बाठ राजा की कृपा या तनख्वाह से चलते थे। वे राजा के प्रति सरकारी कर्मचारी की तरह वफादार या तटस्थ थे। ये इतिहास के हर जन आन्दोलन की लड़ाई का दुखद पहलू भी रहा है।
जन आन्दोलन के हर मूवमेंट के पल पल की खबर राजा के एलाईयू(जासूस) राजा के कार्यालय तक पंहुचा रहे थे। राजदरबार तक पटवारी रणजोर सिंह की रिपोर्ट में ना चाहते हुऐ भी प्रमुख क्रांतिकारीयों के नामों का खुलासा हो चुका था। जिन्हें "ढंढकी" अर्थात उपद्रवी या बागी कहा जाता है। रियासत के तत्कालीन डीएफओ पदम दत्त रतूडी इस समस्या को निपटने के लिए स्थानीय हाईकोर्ट राजगढ़ी पंहुच रहे थे, तो जनता भी विद्रोह की पूरी भूमिका तैयार कर चुकी थी।
क्रमशः जारी …………