Sunday, December 22, 2024
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बड़कोट डायरी भाग – 6 ! “काला कानून”

(विजयपाल रावत)


“काला कानून”

तिलाडी गोलीकांड से पहले हमें जंगल और जंगल के सख्त क़ानून बनने की वजह को समझना होगा। जिसकी वजह से 12 थातीयों के बड़कोट में ये जघन्य गोलीकांड हुआ।

यह कानून वन सरंक्षण के लिये नहीं था। यह तो बड़कोट गांव जैसे हजारों गांवों की कृषि भूमि और चरागाहों पर वन विभाग का जबरन अतिक्रमण था। इस कानून को लेकर सबसे ज्यादा रंवाई-जौनपुर में आंदोलन हुआ। क्योंकि यहाँ के गांव पूर्णतयः सघन देवदारू वनों के समीप थे। जो टिहरी रियासत की आमदनी का मुख्य ज़रिया था। जिसकी वजह से टिहरी रियासत द्वारा रंवाई में इमरजेन्सी लगा दी गयी थी। 


 रंवाई के गांव, छानियां, कृषि भूमि और बस्तियाँ वनों के आस पास थी। बड़कोट गांव के आंगन में भी वन विभाग ने अपनी सीमा खिंच ली थी। कोयले और लोहे के मिश्रण की बुनियाद पर जंगलात के मुनारे खड़े कर दिये गये। इंसान तो दूर पालतू जानवरों की पूंछ जंगल में दिखने पर पैसा वसूला जाने लगा। बड़कोट गांव के पशु अपने ही गांव में खूंटों पर कैद हो गये थे। इंधन और चारापति बैन हो गयी थी। गांव के लोग जैसे गांव में नजरबंद हो गये थे। ये रंवाई में सरकार द्वारा घोषित पहला आपातकाल था।

जमीन पर उग रही फसल के ऊपरी छोर के उत्पाद पर टैक्स लगा तो लोगों ने धान बोना बंद कर मक्का बोना शुरू किया। जब फसल के तने की उपज पर भी टैक्स लगा दिया गया तो फिर लोगों ने मक्का बोना बंद कर आलू उगाने शुरू कर दिया। लेकिन जुल्मी सरकार ना मानी और जमीन के भीतर की उपज से भी टैक्स लिया जाने लगा।

टिहरी रियासत का टैक्स बरसात की तरह बेतहाशा था। जिसके एवज़ में सरकार से मिलने वाली सहूलियतें नमक जितनी कम थी। व्यवस्था और कानून पर भरोसा रखने वाले मासूम ग्रामीणों ने तय किया की राजा के सामने इस काले कानून पर बातचीत कर के हल निकाला जाये। लेकिन सत्ता के मद में चूर और चाटूकार ब्रयोक्रेटों से घिरे राजा को यह ना गंवार गुजरा। बातचीत करने आये रंवाई के ग्रामीणों का उसने अपमान किया। रंवाई के इन ग्रामीण शांति दूतों को उसने "ढंढकी" कह कर उनसे अभद्रतायें भी करी। 

जनता कोर्ट और पार्लियामेंट में सरकार की उल्टी दलीलों से अपना केस हार चुकी थी। टूटी और निराश जनता ने महल से बेरंग लौट कर जनता की सुप्रीम अदालत में केस डाला और उस जन पंचायत को नाम दिया "आजाद पंचायत"। 

यह घटना टिहरी नरेश की लंका में हनुमान की पूंछ पर आग लगने जैसी सिद्ध हुई। जिससे टिहरी रियासत का लंका दहन होना तय था।

क्रमशः जारी ……………

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