(विजयपाल रावत की कलम से)
18 जाति 12 थाती का पुराना बड़कोट गांव गढ़वाल के 52 गढ़ो में शुमार एक पुराना गढ़ था। बड़कोट की भूम्याल देवी मां भगवती की भादौं की जातरा कभी आसपास के 12 गांवों का मेला था। इसलिए यह 12 गांव की थाती कहलाती थी। जो कालांतर में घट कर आठ गांव भादौं की जातरा तक सिमट गयी।
विशाल जल कुंड के ऊपर ऊंची चट्टान पर बने घरों की जगह को आज भी बड़कोट वाले गढ़ कहते हैं। पुरानी स्मृतियों के अनुसार "दड़काओं" के बाद सबसे पहले यहाँ दो परिवार आये। जिन्होंने गढ़ में घर बना कर इस गांव को सबसे पहले अस्तित्व मे लाया। जिनमें एक डंडाल रावत और दूसरा गुलाल रावत का परिवार था। डंडाल रावत और गुलाल रावतों के बाद बड़कोट में वाण गांव से राणा जाति के लोग आये।
आज भी बड़कोट गांव में शादी ब्याह के न्यौते रजिस्टर पर रावतों की अनेक मूलजाति का उल्लेख करते हुए नाम और धनराशि लिखी जाती है। जिनमें डंडाल रावत, गुलाल रावत, सरतली रावत, किराड़ा रावत, ढिकोला रावत, जगाण रावत, सलाणी रावत और गंगाडी रावत हैं। धीरे-धीरे यहाँ नेगी, चौहान, कठैत, असवाल, उनियाल, डोभाल, कंडवाल, डिमरी और अनुसूचित जाति के लोग भी बसे जो इन्हीं जाति के लोगों के साथ गांव में समय समय पर आ कर बसते रहे। राजपूतों में गंगाडी रावत टिहरी से और अनुसूचित जाति मे टमटा श्रीनगर गढ़वाल से सबसे अंतिम मे डंडाल गांव के बाद बड़कोट गांव आकर बसे थे।
गोरखा आक्रमण में यहाँ भी गोरखा सेना द्वारा खूब लूटपाट की गयी। दिसंबर सन 1815 में पुरानी टिहरी की स्थापना के बाद ही राजगढ़ी रंवाई परगना के रूप में अस्तित्व में आया। लेकिन बड़कोट गांव तब भी रंवाई घाटी के बड़े गांव के रूप में अस्तित्व में था। जिसमें छटांगा, डंडाल गांव, गुलाल गांव भी बड़कोट गांव के थोक थे। रंवाई की उपजाऊ धरती में तब तक बड़कोट गांव सबसे समृद्ध गांव बन चुका था।
सन 1930 में इसी बड़कोट गांव की धरती पर टिहरी राजशाही की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध विश्व प्रसिद्ध तिलाडी गोलीकांड घटित हुआ। इस जन आन्दोलन की पटकथा पर लिखी पुस्तक को लेखक कामरेड विद्यासागर नौटियाल द्वारा “यमुना के बागी बेटे” के शीर्षक से दुनिया में नई पहचान मिली।
क्रमशः जारी………