Friday, November 22, 2024
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प्रसव काल में आखिर क्यों गौशाला में ही बच्चे जनने की परम्परा है पहाड़ी समाज में महिलाओं को!

(मनोज इष्टवाल)

आप भी सोच रहे होने कि संसार चाँद ही नहीं बल्कि हर उपग्रह में घर बनाने की सोच रहा है और यह है कि अभी भी उस मिटटी को खोदने का काम कर रहा है जिसे हम लगभग चार दशक पूर्व छोड़ चुके हैं! लेकिन यह मिटटी है ही ऐसी कि जिस पर भी इसका रंग चढ़ा वह इस से प्यार करने लगा! शायद यही कारण है कि हम अपनी मातृभूमि को माँ का दर्जा देते हैं और जहाँ भी कभी जिक्र होता है तो वह गाय और माई दो माँओं का जिक्र हमेशा होता है! माँ हमें जन्म देती है तो गाय ने हमारी कई पीढ़ियों को जन्म दिया है वह हमारे पूर्वजों से लेकर वर्तमान तक सभी की एक क्षत्र माँ है इसमें संदेह नहीं जताया जा सकता!

बिशेषकर गढ़वाल की बात अगर की जाय तो आज भी ग्रामीण क्षेत्रों के लगभग 80 प्रतिशत गाँव ऐसे हैं जहाँ कोई भी माँ अपने बच्चे को जन्म देने के लिए गौशाळा ही ढूंढती है! शायद यह उस माँ को भी पता नहीं होता कि आखिर उसे गौशाला में ही क्यों रखा जाता है! फिर एक पुआल का गट्ठर (पूली) बच्चा जानने के समय व वही एक मृत्यु के समय घाट पर क्यों जाता है इसका अगर कहीं से कोई कारण पूछो तो सब कहते हैं ये परम्पराओं में है लेकिन क्यों है कभी किसी ने इस बात पर शोध नहीं किया!

आज मैं अपने शोध के कुछ ऐसे अकाट्य तर्क आपके सामने इस सम्बन्ध में रखना चाहूँगा जिस पर आपको भी यह महसूस होगा कि ये तर्क वास्तव में मजबूत हैं! पहले आपको पौड़ी जिले के राठ क्षेत्र लिए चलता हूँ जहाँ हमारी संस्था विगत 1998 के आस-पास रिप्रोडक्टविटी चाइल्ड हेल्थ (आरसीएच) पर कार्य कर रही थी और हमारा काम जन्म लेने व जन्म देने वाली माँ के स्वास्थ्य सम्बन्धी टिप्स देना था. माँ को किस तरह गर्भावस्था में आयरन का इस्तेमाल करना चाहिए क्या खाना चाहिए क्या नहीं बच्चे की देखभाल कैसे हो और क्यों हो यह सब के लिए हम ग्रामीण इलाकों का भ्रमण कर रहे थे! इसी दौरान हमें राठ के सबसे बड़े गाँव नौडी से लेकर कुंडिल कठुड का भी दौरा करना पड़ा! कुंडिल गाँव में लगभग तीन महिलायें तब गर्भवती थी और उनमें से दो पहली बार गर्भ धारण कर माँ बनने वाली बेटियाँ थी जो अब महिलाओं की श्रेणी में आने वाली थी! गाँव में पूछताछ पर पता चला कि वो तो गौशालाओं में रह रही हैं! मेरे साथ तब गीता भट्ट थी उसने आश्चर्य जताया कि आखिर अभी से यह सब क्यों? दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गयी और आप इस तरह प्रताड़ना देने जैसा कार्य कर रहे हैं! फिलहाल जब हम गौशालाओं में पहुंचे तो एक कमरे में गौ तो दुसरे में एक महिला थी! वह अभी 7वें माह की प्रसूता थी ! दो माह बाद उसका बच्चा जन्म लेने वाला था! उनके चेहरे से ही लग रहा था कि इन्हें खून की कमी है गीता ने आयरन की गोलियां दी और हम रात वहीँ उसी गाँव में रुके!

यहाँ एक और परम्परा है जिस भी बेटी की नयी शादी हो वह अपने घर में नहीं रहती बल्कि अपनी सहेलियों के साथ पंचायती आवास एन सोती हैं! इस पर विस्तृत बाद में लिखूंगा फिलहाल हम जब प्रधान जी के घर रुके तो मैंने जिज्ञासावश यह प्रश्न कर दिया कि भला इस तरह प्रसव के लिए महिलाओं को गौशालाओं में क्यों रखा जाता है! प्रधान जी के पास जवाब नहीं था लेकिन उनके घर की बुजुर्ग बोली- इसके पीछे यह कारण है कि महिला के गर्भावस्था में ग्रह बहुत कमजोर हो जाते हैं ऐसे में देवशक्तियां उन्हें अछूत जैसा समझती हैं जबकि राक्षसी शक्तियाँ हावी रहती हैं! गौशाला में जो गाय रहती हैं वहां ऐसी राक्षसी शक्तियां प्रवेश नहीं कर पाती जिससे जच्चा-बच्चा सुरक्षित रहता है! और हाँ..अगर वहां कोई भूत पिचास, डागिणी आ भी जाती हैं तो गौ माता उन्हें कहती है कि पहले मेरे बदन के बाल गिन ! अगर गिन देगा तो तू जो मर्जी कर लेना! सारी रात गौमाता उसे बाल गिनने में उलझा कर रखती है और सुबह होने तक जब वह बाल नहीं गिन पाता तो वह दुत्कार कर उन्हें भगा देती है!

यह तर्क सुनकर मैं जोर जोर से हंसा! एक स्टोरी टेलर के रूप में यह बिसमित कर देने वाली कहानी थी! जिस रहस्यमयी अंदाज में वह यह सब बयान कर रही थी उस से साफ़ जाहिर हो रहा था कि वह इस बात पर सौ प्रतिशत विश्वास करती हैं! खैर तब मैं भी उतना ही ना समझ सा था और उतना ही अविश्वासी स्वभाव का भी! लेकिन अब इस तर्क की मजबूती के लिए कुछ किताबी अध्ययन किया तो पाया यह कहानी सही हो न हो! लेकिन गौ माता में वास्तव में अकूत शक्ति भंडार है जिनका वर्णन शास्त्रों पुराणों में कुछ यों मिलता है:-

“मूत्रतश्चा सृजत कांश्चिच्छवरांश्चैव पार्श्वत:!

पौंड्रान् किरातान् यवनान् सिंहलान् बर्बरान् खसान्!!”

( महाभारत (१.१६५.३६)/ “ मानस-केदार के इतिहास में खस”)

(अर्थ- कितने ही शबर उसके मूत्र से प्रकट हुए! उसके पार्श्व भाग से पौण्ड्र, किरात, यवन, सिंहल, बर्बर और खसों की उत्पत्ति हुई!)

और (खसातु तू यक्षरक्षांसि….बिष्णु पुराण २१.२५ व अटकिन्सन १८८४:२९९)!

इसी प्रकार की एक परम्परा महाभारत (१.१६५.३५-३७ आदिपर्व: पांडे १९३७:५३३) में मिलता है जिसके अनुसार विश्वामित्र और वशिष्ठ के प्रथम टकराव में वशिष्ठ मुनि की पवित्र गाय नंदिनी को विश्वामित्र द्वारा बलात हरण करने पर उसके शरीर से उसके रक्षकों के रूप में खस, पह्लव, पारद, द्रविड़, यवन, किरात, पुलिंद, चीन, हूण आदि पैदा हुए!

रामचरित मानस में गौ का उल्लेख कुछ इस तरह भी मिलता है-

भूकम्प कहे गाय की गाथा! काँपे धरा त्रास अति जाता!!

जा दिन धरा धेनु न होई! रसा रसातल ता छन खोई!!

(भूकम्प गाय की गाथा कह रहा है! जब गौ माता को बहुत ही त्रास होता है तभी पृथ्वी कांपती है! जिस दिन पृथ्वी पर धेनु नहीं होगी! उसी क्षण पृथ्वी रसातल को चली जायेगी!)

ये तर्क ही पर्याप्त हैं कि बिना चिकित्सा के किस तरह दुरूह पहाड़ों में मानव जन्म लेता था उसके पीछे क्या वैज्ञानिक कारण रहे होंगे! क्यों गौ शाळा को ही मानव ने अपने से ज्यादा शक्तिशाली माना और क्यों गाय हिन्दू धर्म में आदरणीय है व उसे गाय माता कहा जाता है!

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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