Friday, October 18, 2024
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पूर्वी व पश्चिमी नयार तट व उससे जुडती नदियों पर लगते थे मौण (मछली मारने) मेले!

(मनोज इष्टवाल)

फाइल फोटो

उत्तराखंड में अगर मौण मेले की बात हो तब हर कोई एक ही बात करता है कि अगलाड़ नदी में जुटने वाला मौण अर्थात मछली मारने का मेला..! लेकिन बहुत कम जानते हैं कि उत्तराखंड में टिहरी राज्य स्थापना से पूर्व भी मौण मेले होते थे जो सामन्ती कहलाते थे ! इस पर राजा का कोई हुक्म रहा हो या उस से सम्बन्धित कोई बात रही हो ऐसे कोई दस्तावेज नहीं मिलते लेकिन कई वृत्ति के लोग (औजी बाजगी समाज) व फिर्त्ति के लोग (बद्दी/बेड़ा समाज के लोग) मानते हैं कि सबसे पुरातन मौण मेलों का प्रचलन 16वीं शताब्दी के आस-पास पूर्वी व पश्चिमी नयार व उस से सम्बन्धित लगभग पांच नदियों में लगते थे!

दूसरी ओर कुमाऊँ के पालीपछाऊँ क्षेत्र में भी इस त्यौहार को मनाने की परम्परा रही है जिसे ढोह/ढहो उठाना कहते हैं! सबसे अधिक मौण मेले तमसा व यमुना क्षेत्र के आर पार यानी हिमाचल, जौनसार बावर व रवाई जौनपुर में होते रहे हैं जो कई बंद भी हो गए लेकिन वर्तमान में बर्षों से बंद ऐसे मेले फिर से प्रारम्भ होने शुरू हो गए हैं!

मौण मेले मुख्यतः तीन प्रकार के कहे जाते हैं जिनमें मच्छ मौण, जातर मौण, ओदीमौण! लेकिन चोर मौण भी होता है जिसे इन में शामिल नहीं किया गया क्योंकि ये चोरी से आयोजित किया जाता है!

मच्छ मौण का आयोजन प्रतिबर्ष किया जाता है जबकि जातरु मौण 12 बर्षों में कई नदियों में किया जाता रहा है जिनमें जौनपुर व रवाई क्षेत्र के बर्नीगाड की नदी (उत्तरकाशी के रवाई क्षेत्र में बहने वाली नदी), केदारगाड़ (सर बडियार क्षेत्र उत्तरकाशी से बहने वाली नदी), डुंगयारा मौण (टाइगर फाल वाली नदी जौनसार) कुथनोई का मौण (क्वांसी के पास बहने वाली नदी जौनसार), नौणसाकु मौण (टोंस नदी में गिरने वाली हिमाचल की नदी) नौणसा कुमौण (टोंस नदी पार हिमाचल प्रदेश) इत्यादि के मौण मेले हुए जबकि ओदीमौण समान्तशाही जमीदारों द्वारा आयोजित किये जाने वाला मेला हुआ इसमें शालोई खड्ड (हिमालच-उत्तराखंड सीमा क्षेत्र जिला देहरादून) व कमल नदी (रवाई क्षेत्र उत्तरकाशी) में लगने वाला मेला प्रमुख माना जाता रहा है! हाल ही में 25 बर्ष बाद अमलाव नदी में कालसी के पास गोदीमौण का विगत बर्ष आयोजन किया गया था! इसके अलावा आराकोट बंगाण की हिमाचल लगी सीमा पर भी मौण मेले का आयोजन कालान्तर में होता रहा है!

शुद्ध रूप से अगर मौण का अर्थ लगाया जाय तो वह यह है कि जलचर प्राणियों के लिए तैयार किया गया ऐसा बिष जिसे पीते ही वे नशे में अपने स्थानों से बाहर निकलकर मदहोश होकर साफ़ जलकी तलाश में निकल पड़ती हैं! साफ़ जल मिलते ही वह धीरे धीरे होश में आने लगती हैं लेकिन यदि मौण अधिक उनके शरीर में चला गया तो वह मर जाती हैं! मौण एक तरह का पाउडर है जो टिम्बुर यानि बज्रदन्ती, महुआ, अटाल, रीठा, पांगर, बिष, अरेन्डा, खिन्ना या खिंडा, भीमल, अखरोट, सुराई इत्यादि की वृक्ष छालों, टहनियों, या दूध को कूट पीसकर पावडर बनाया जाता है! यह प्रक्रिया मौण के एक माह पहले से शुरू होती थी! कहीं कहीं जो परिवार मौण का पाउडर नहीं दे पाते थे उन्हें बदले में गेंहूँ कर में देने पड़ते थे! यह प्रचलन जौनपुर या जौनसार बावर में भी था कि नहीं लेकिन रवाई उत्तरकाशी क्षेत्र में था! यहाँ प्रत्येक ब्यक्ति को मौण के बदले दो कूड़ी यानी एक किलो गेहूं देना पड़ता था!

यह आश्चर्यजनक है लेकिन सत्य है कि पौड़ी गढ़वाल की चार नदियों में भी इसका प्रचलन रहा है जो पश्चिमी व पूर्वी नयार में मिलती हैं इनमें खरगढ नदी मौण जो असवालस्यूं पटवालस्यूं व कफोलस्यूं के बीच आयोजित होता था! इडगाड मौण जो कफोलस्यूं, खातस्यूं पैडूलस्यूं के बीच व मासौं गाड़ मौण जो चौन्दकोट, बारहस्यूं व राठ क्षेत्र अर्थात मवालस्यूं, खातस्यूं, घुड़दौडस्यूं के बीच व पूर्वी नयार पश्चिमी संगम पर बहुत बड़ा मेला दुनै यानी दुनाई में आयोजित होता था जिसमें बारहस्यूं, चौन्दकोट, व कडिया-लंगूर के थोकदारी जमावड़े जुटते थे! जबकि पश्चिमी नयार में मिलने वाली नदी मैदी गाड़ जिसे मधुगंगा नाम से जाना जाता है, में भी मौण मेले का आयोजन होता रहा है जिसमें कौडिया, लंगूर व गुराड़स्यूं पट्टियां शिरकत करती थी! जबकि दुनाई में लंगूर, कौडिया, मनियारस्यूं, असवालस्यूं, मौन्दाडस्यूं,रिंगवाडस्यूं इत्यादि के सामन्ती थोकदार! इनका काल ब्रिटिश काल से भी पुराना यानि श्रीनगर राजधानी काल से जोड़कर माना जाता है! जिनका सिर्फ अब जिक्र विर्त्ति व फिरती समाज के लोगों को ही कंठस्थ हो सकता है क्योंकि इन्हीं के मुंह से इन नदियों के मौण मेला गीत प्रचलित रहे!

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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