(मनोज इष्टवाल)
गढ़वाल के पर्वतीय आँचल में छठ पूजा…! आप कहोगे बात हजम नहीं हुई लेकिन यह होती है। जब इस मेले के बारे में सुना तो मुझे भी आश्चर्य हुआ क्योंकि छठ मूलतः सूर्य भगवान व उनकी बहन छटी को समर्पित मानी जाने वाली पूजा है लेकिन यहां आखिर गणेश चतुर्थी में यह मेला छट या छठ मेला कब से आयोजित होता आ रहा है? इस पर सभी पुराने लोगों का मत है कि यह तो हमारे पुरातन काल की परंपराआ का हिस्सा है।
विगत दिनों हिमालयी भू भाग से लौटी भेड़ों का ऊन निकालने की परंपरा भी इसका है क्योंकि आजकल मंडुवा व चौलाई की गुड़ाई निराई के पश्चात ग्रामीणों के पास विशेष कृषि कार्य नहीं होता। जौनसार क्षेत्र में तो मंडुवे की निराई गुड़ाई के साथ कोदो की नैठवाण नाम से एक त्यौहार का आयोजन होता है।
सुरेंद्र देवजानी बताते हैं कि विगत दिन भेड़ें व भेड पालक ऊंचे चारागाहों से घर लौट आये है। तीन माह जंगल में गुजारने के पश्चात भेडाल (भेड़ पालकों) के लिये यह मेला आयोजित होता है जिसमें राज्य पुष्प ब्रह्मकमल, लेसर, ज्याण इत्यादि पुष्पों को ऊँचें थाचों/थातों से चुनकर लाया जाता है व उन्हें देवताओं को चढ़ाने के बाद सिर्फ माथे लगाया जाता है।
पर्वत क्षेत्र के जीवाणु गांव में देवता के आंगन में आयोजित होने वाला यह छट मेला मूलतः जीवाणु, देवजानी, बिंगसारी व देवरा गांव के चार समूह के द्वारा आयोजित होने वाला मेला है जिसमें आस पास के कई गांवों के लोग मेले में शिरकत करने के लिए पहुंचते हैं। देवता की पूजा अर्चना के बाद ढोल की धुन के साथ लोग तांदी गीत नृत्य कर खुशियां मनाते हैं व अपनी फसलों व जानवरों की रक्षा हेतु पर्वत देव से कामना करते हैं।
इस बर्ष मेले का आयोजन विगत 2 सितंबर को आयोजित किया जो हर बर्ष इसी माह गणेश चतुर्थी के अवसर पर आयोजित किया जाता है।