मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने प्रो. जी.डी. अग्रवाल के निधन पर गहरा दुख व्यक्त किया है। अपने शोक सन्देश मे मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि गंगा के विभिन्न मुद्दों के लिए अनशनरत प्रो.जी.डी.अग्रवाल के निधन से उन्हें गहरा दुख पहुंचा है। उनकी मुख्य मांग थी कि गंगा के लिए अलग से एक्ट बनाया जाए और राज्य में तमाम जलविद्युत परियोजनाओं को रद्द किया जाए। इस कार्य के अध्ययन और उस पर योजना बनाने में थोड़ा समय लगता है। हमारी सरकार और केंद्र सरकार लगातार उनसे संपर्क में थी, बातचीत होती थी। केंद्रीय पेयजल मंत्री सुश्री उमा भारती ने उनसे मुलाकात की थी। उसके बाद जल संसाधन मंत्री नितिन गड़करी ने भी फोन पर प्रोफेसर साहब से बातचीत की थी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार की तरफ से भी इस मुद्दे पर पूरी संवेदनशीलता दिखाई गई थी। सरकार के प्रतिनिधि लगातार उनके संपर्क में थे। हरिद्वार के सांसद श्री रमेश पोखरियाल ‘‘निशंक‘‘ भी उनसे मुलाकात करने पहुंचे थे। हमारी कोशिश थी कि किसी तरह से उनकी जान बचायी जा सके। लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी उन्होंने उनशन तोड़ने से इनकार कर दिया। जैसे ही उन्होंने 9 अक्टूबर को जल का त्याग किया, उन्हें फौरन ऋषिकेश एम्स में भर्ती कराया गया था। एम्स के डाक्टरों ने भी उनकी जान बचाने का भरसक प्रयास किया।
ज्ञात होकि गंगा पुत्र स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद 22 जून से मातृ सदन हरिद्वार में आमरण अनशन पर थे। गंगा की अविरलता और निर्मलता के नाम पर गंगा एक्ट बनाने की दुहाई देने वाली मोदी सरकार के सामने ही गंगा एक्ट की माॅग के लिये पिछले 112 दिन से उपवास पर बैठे स्वामी सानंद ने अपना प्राण न्यौछावर कर दिया है। उनके प्राणो की बलि ऐसे वक्त ले ली गई है। जब देश में नमामि गंगे के नाम पर करोडो रूपये खर्च हो रहे है। ऐसे ही समय में गंगा को बचाने के प्रयासों को बहुत ही झटका लगा है। स्वामी सानंद शान्ति और अहिंसा के बल पर उपवास कर रहे थे। गाॅधी के इस हथियार के बल पर वे 112 दिन से सरकार को कैबिनेट में गंगा एक्ट पास कराने के लिये कह रहे थे। गंगा के नाम पर भक्त बने राजनेताओं को स्वामी सानंद की माॅग अच्छी नही लगी है, और पुलिस के बल उन्हें जबरन उठाकर स्वामी की तपस्या को भंग किया गया है। इसका परिणाम यह हुआ कि उनके प्राण पखेरू गंगा के चरणो में लीन हो गये है।
वहीँ दूसरी ओर पर्यावरणविद्ध सुरेश भाई बताते हैं कि उन्होंने 2008 में गंगा भागीरथी की अविरलता में बाधक लोहारीनाग -पाला और भैरोंघाटी (लगभग 900 मे0वा0) की जल विद्युत परियोजनाओं को रोकने के लिये अनशन किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री डाॅ0 मनमोहन सिंह, वन एंव पर्यावरण मन्त्री जयराम रमेश, वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी के द्वारा इन परियोजनाओं को हमेशा के लिये रोक दिया गया था। जिसमें उत्तराखण्ड के तत्कालीन मुख्यमंत्री डाॅ0 रमेश पोखरियाल निशंक ने भी सिफारिश की थी। इसी दौरान केन्द्र द्वारा गंगा बेसिन प्रधिकरण बना दिया गया था। इस प्रधिकरण में जल पुरूष राजेन्द्र सिंह भी सदस्य थे, जिनकी मेहनत से स्वामी सानंद का संदेश मजबूती से आगे बढा था। इसी सिलसिले में केन्द्र ने दिसम्बर 2012 में गंगोत्री से उत्तरकाशी तक संवेदी क्षेत्र घोषित करके, यह संदेश दिया था, कि भागीरथी घाटी की धरती में बडे निर्माण कार्यो को सहन करने की क्षमता नही है। इसकी सच्चाई की जांच यहाॅ लगातार आ रहे बाढ, भूस्खलन, भूकम्प से की जा सकती है। लेकिन आश्चर्य यह है कि संवेदी क्षेत्र की घोषणा के 6 वर्षो बाद भी जन अपेक्षाओं के अनुरूप मास्टर प्लान नहीं बनाया जा सका। यदि यह बन गया होता तो इस क्षेत्र में रोकी गई बडी जल विद्युत परियोजनाआंे के विकल्प के रूप में पूर्व मुख्यमन्त्री हरीश रावत द्वार बनायी गई लघु पनबिजली की नीति को लागू किया जा सकता था। इस नकारापन के कारण आज भी भागीरथी घाटी के लोगो के सामने संवेदी क्षेत्र का चेहरा विकास विरोधी बनाया गया है, जबकि यह सच्चाई नही है।
अब गंगा बेसिन प्रधिकरण की बैठक भी नही हो पा रही है। लेकिन जब सन् 2014 के बाद एनडीए की सरकार ने नमाॅमि गंगे योजना लान्ॅच की है, तब से साधु- महात्माओं, वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों के बीच एक खास उत्साह भी देखने को मिला था। स्वामी सानंद को भी नयी व्यवस्था से उम्मीदें जगी थी, कि अब गंगा के उपर हुये सारे अत्याचारों का निपटारा हो जायेगा। वे इसकी इंतजारी 4 साल से कर रहे है। उन्होंने आईआईटी के आधा दर्जन वैज्ञानिको के साथ मिलकर गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिये एक रिपोर्ट भी सरकार को सौपी है। परन्तु उन्हें इसका कोई जबाव नही मिला है। अभी उपवास पर बैठने के पूर्व भी प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को पत्र भेजा था। यह अवश्य है कि 30 जून को उपवास समाप्त करने की अपील के साथ स्वामी सानंद को जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने कानपुर का उदाहरण देकर लिखा है कि वहाॅ शीशमउ से गंगा में प्रवाहित हो रही 140 एमएलडी प्रदूषित पानी में से 80 एमएलडी सीवर टीटमेंट प्लाॅट में जाने लगा है। निश्चित यह उपलब्धि है, लेकिन जिन बातों की तरफ इशारा कर रहे है उस ओर सरकार के कदम कब पडेंगे ?
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