दो अलग अलग युगों को जोड़ता एक स्वप्न…! मोदी जी बोल-जरा मुख्यमंत्री जी को फोन लगाओ।
*गांधी जी व मोदी से लेकर क्षेत्र प्रदेश को सजग कर गया यह स्वप्न।
(समाजसेवी रतन असवाल की कलम से)
सपने देखना इंसान की फ़ितरत है और पूरे होना या न होना उसकी किस्मत… खैर कभी कभी आप ऐसे सपने देख लेते हैं जो अविश्वसनीय होते हैं। रात्रि के अंतिम पहर में मैने भी एक ऐसा ही सपना देखा.. एक अविश्वसनीय स्वप्न !!!
हुआ यह कि आज अलसुबह मेरे सपने मे गाँधीजी आ गए… जी हां बिल्कुल वही गांधी जी.. लाठी वाले, तीन बंदर वाले.. वही जो आपके जेब का वज़न बढाते हुये गुलाबी हरे नोटों पर विराजमान हैं। जी बिल्कुल सही पहचाना जो आजकल नेताओं, मंत्रियों और अफ़सरशाहों की दीवारों की शोभा बढ़ाते हुये नजर आते हैं… विश्व को शांति अहिंसा का पाठ पढ़ाने वाले उस कृशकाय व्यक्ति की तस्वीर के नीचे लोग देश और जानों का सौदा तक कर डालते हैं, और भी पता नहीं क्या-क्या हो जाता है… खैर वो अलग मुद्दा है उस पर फ़िर कभी…
हां तो सपने में अलसुबह पौड़ी जनपद में मुडनेश्वर इंटर कालेज के प्रवक्ता और बड़े भाई मुकेश बहुगुणा का मुझे फोन आया कि उनके विद्यालय मे गांधीजी आए है और मुझको बुला रहे हैं । अब भला गांधी जी मिलने को बुला रहे हों तो हर किसी के लिए हर्ष और गर्व की बात होगी ही… मेरे लिये भी थी.. आनन फ़ानन मे मैने तैयारी की… रिमझिम बरसती बरसात को देखते हुए मैने भी छाता उठाया और लग गया चढ़ाई पर मुंडनेश्वर के रास्ते ।
मार्ग में बड़े भैजी विद्यादात्त जी का मोतीबाग पड़ता है। मै उनके पास गया और उनको गाँधीजी से मिलने की बात कही तो उन्होंने भी सत्तू की एक पोटली बांधी और मेरे साथ हो लिए। चूंकि हमारे बहुगुणा भैजी के फ़ेसबुक पर गांधी जी के साथ पोस्ट हो रही सेल्फ़ियों के दौर के चलते हमको सन्देश देर से मिला था तो हम दोनों भाइयों के स्कूल पहुचने तक अंधेरा सा हो गया था। वहां पहुचने पर पता चला कि मुकेश भाई अपने मिर्चों के बागीचे में टहलने और उग आये खर-पतवार की सफ़ाई करने गये हैं… अत: वे वहां नहीं थे, अब बहुगुणा भैजी तो नही मिले लेकिन गाँधीजी से हमारी सीधी मुलाकात हो गई ।
मेरा स्वाभाविक व्यवहार है कि मैं किसी के पांव नही छूता । साक्षात गाँधीजी सामने खड़े थे तो स्वतः ही चरणो की ओर सिर और हाथ झुकते चले गए उन्होंने मुझे गले लगाया और बहुत सी बातें भी हुई। विद्यादत्त भैजी ने सत्तु बनाया हम तीनों ने खाया और जमीन पर बैठ गए । गांधी जी बहुगुणा जी के चरखे पर हाथ रमा करने लगे और इसी बीच देश के आजादी के समय के राजनैतिक सामाजिक हालातों पर चर्चा करने लगे… और फ़िर लंबी चर्चा के बाद हमने सोने के लिये प्रस्थान किया ।
सुबह नींद तब खुली जब बाहर कोई भीड़नुमा चहल पहल हुई । बाहर निकला तो मेरे सामने मोदीजी खड़े थे । मैंने उनका अभिवादन-अभिनन्दन किया । पास गांव के ही दिनेश खर्कवाल ने मोदीजी को मेरा परिचय विस्तार से दिया । मोदीजी ने गाँधीजी से मुलाकात कराने का आग्रह किया । मैने गाँधीजी को उनकी इच्छा से अवगत कराया तो गांधी जी बोले कि “….उन्हें अकेले अंदर ले आओ” । मै उन्हें आदर के साथ अंदर ले आया उन्होंने गाँधीजी के चरण छुए ।
गाँधीजी जमीन मे आसन लगाए हुए थे और हम उनके आगे बैठे उनकी बाते ध्यान से सुन रहे थे । बातों बातो मे उन्होंने हिमालय मे जाने की बात कही । इसी बीच विद्यादत्त भैजी ने उनको एक कटोरी सत्तु परोसा । उन्होंने सत्तु खाने के बाद हमे कहा कि वे अब थोड़ा विश्राम करेगे । उनकी यह कहने से हम सब बाहर निकल आए । स्कूल के प्रांगण मे मोदीजी और मैं इधर-उधर टहलने लगे । बातो बातो मे उन्होंने मुझ से पूछा कि
“आपके राज्य मे सरकार का कामकाज कैसे चल रहा है ?”
मैंने कहा… “ज़नाब जैसा देश मे चल रहा है वैसा ही अपने राज्य मे भी चल रहा है। ”
उन्होंने पूछा कि “….आप राज्य के मुख्यमंत्री को जानते है ?”
मैने कहा “… ज़नाब बहुत बढ़िया तरह से जानता हूं” ।
उन्होंने कहा… “कि आपकी उनसे मुलाकात होती है ?”
मैने कहा…. “… होती है पर कभी कभी…. सार्वजनिक जलसों में …
उन्होंने आगे पूछा… ” क्या आपके पास उनसे संपर्क का कोई मोबाइल आदि नंबर है ?…”
मैने कहा “… ज़नाब वैसे तो ये छोटा सा प्रदेश है, हर दूसरे व्यक्ति की जेब में साहेबान का नंबर होता है… मेरे पास भी है उनका BSNL वाला पुराना नंबर” ।
मोदीजी ने कहा ” अच्छा उनका नंबर मिलाओ और उनसे मेरी बात कराओ..।”
मैंने नंबर मिलाया ही था कि इतने मे मेरी पत्नी के मोबाइल का अलार्म बज गया और मेरी नींद खुल गई।
मुझे मलाल रहेगा कि मै अपने राज्य के मुखिया की मोदीजी से बात न करा सका …