(डाॅ. वीरेंद्र बर्त्वाल की कलम से)
उत्तराखंड में इस बार का तीलू रौतेली पुरस्कार ऐसी महिला को दिया जा रहा है, जो लोकभाषा और लोकसंस्कृति के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के क्षेत्र में अहम भूमिका निभा रही हैं। ये हैं-उपासना सेमवाल पुरोहित। उपासना एक उच्च कोटि की कवयित्री, जागर गायिका हैं। उन्होंने गढ़वाल की संस्कृति के साथ ही अन्य कई समसामयिक मसलों पर काव्यात्मक अभिव्यंजना की है।
खास बात यह कि सणगु पाली (तल्ला नागपुर, गढ़वाल) की रहने वाली उपासना का जन्म कानपुर में हुआ और बचपन भी वहीं बीता। वे अपने दादा जी के साथ बाद में अपने गांव आने लगी और यहां के नैसर्गिक सौंदर्य और सांस्कृतिक समृद्धि ने उन्हें अपनी ओर खींचा और उनका मन यहीं रम गया। वे पहाड़ को अपनी दृष्टि में शब्दों के रूप में उकेरने लगीं। उनकी कई रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। मंचों पर अभिव्यक्ति देने के साथ ही उन्होंने जागर लेखन-गायन भी किया। उपासना का पहाड़ में न जन्मने के बाद भी पहाड़ के प्रति बेहद लगाव और छोटी-सी आयु में इतनी बड़ी उपलब्धियां हासिल करना बड़ी बात है। उपासना ने गढ़वाल की उस नागपुरिया भाषा का परिचय अनेक लोगों से कराया है, जिसे तरसने के लिए मुझ जैसे भाषा प्रेमी व्यक्ति तरस जाते हैं। गढ़वाली भाषा के अंतर्गत नागपुरिया ऐसी भाषा है, जिसकी लयात्मकता बरबस व्यक्ति को खींच लेती है। इसी शब्द संपदा भी आकर्षक है।
उपासना का विवाह उनका विवाह गुप्तकाशी के ह्यूण गांव के विपिन सेमवाल से हुआ है। उपासना सेमवाल को मिल रहा यह पुरस्कार वास्तव में लोकसंस्कृति का सम्मान और लोकसंस्कृति के प्रति उपासना की उपासना का परिणाम होगा। किसी पुरस्कार की प्रतिष्ठा और महत्त्व तभी है, जब वह योग्य व्यक्ति को मिले, परंतु सचाई यह है कि आज 75 प्रतिशत पुरस्कार जुगाड़बाजी के अंतर्गत दिए जाते हैं, चाहे उन्हें सरकार प्रदान करे या कोई संस्था।