Sunday, September 8, 2024
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तालुका में चायनीज वुड का ये करोड़ों का आशियाना!


(मनोज इष्टवाल)

चीन की भारत के प्रति असंवेदनायें जितनी भी हों लेकिन उसकी तकनीक के आगे अभी भी हम बौने साबित हैं यह बात अक्षरत: सत्य है क्योंकि चीन ने अपनी तकनीकी को दिनों-दिन विकसित किया है जबकि भारत के तकनीकी अभियंताओं ने सिर्फ सैलरी के लिए हर दिन हर मंच पर धरना प्रदर्शन! यह काफी हैरान कर देने वाली बात है कि ऐसे में भी हम विश्व गुरु बनने की राह में हैं जहाँ देश का हर नागरिक लोकतंत्र की बात करता हुआ अपने लोकतांत्रिक स्वंत्र स्वरूप की परिभाषा तो नहीं जानता लेकिन अपनी बोलने की स्वतन्त्रता की आजादी को बखूबी पहचानता है! कुछ दिन पहले तक चीन से आयातित सामग्री के बहिष्कार को लेकर पूरा देश गुस्से में दिख रहा था लेकिन चीन के वैश्विक बाजार में क्या अपना देश पूरा विश्व ऐसे नहाया हुआ है कि हम चाहकर भी उन सबका परित्याग नहीं कर सकते जो हमारी दैनिक दिनचर्या की चीजों में शामिल हैं और उनका प्रतिशत 80 परसेंट से भी उपर है!

यहाँ बात करते हैं उत्तरकाशी जनपद के रुपिन सुपिन घाटी स्थित पर्वत क्षेत्र के तालुका की जहाँ सडक का आखिरी छोर समाप्त होता है! बर्ष 2013-14 में गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा यहाँ सिर्फ और सिर्फ लकड़ी का भूकम्परोधी भवन बनाया जा रहा था जो अब पूर्णत: बनकर तैयार है! मैंने उस दौर में ख़ुशी से जाने इस भवन की कितनी फोटो खिंची! उसके अंदर बाहर घूम-घूमकर उसकी ख़ूबसूरती की मन ही मन प्रशंसा की! मुझे गर्व भी हुआ कि देखिये इस क्षेत्र के कास्तकारों में कितना हुनर है जिन्होंने जंगलात की गल सड रही बेशकीमती देवदार की लकड़ी से यह महल खड़ा कर दिया है! फिर सोचा इस पर देवदार जैसी खुशबु क्यों नहीं है! वहां के कारिंदों से पूछा तो वो बोले- साहब, देवदार की खुशबु कहाँ से आएगी ये लकड़ी तो चाइना वुड है! मैंने कहा- क्या यह चीन से आ रही है! बोले- यही समझ लीजिये तभी तो इस पर कुल लागत 2.80 करोड़ के लगभग अभी प्रथम दौर में आ रही है!

दिमाग में चीन का सामान घूम गया बस सोच लिया कि इसकी मियाद भी उसी सामान की तरह होगी जिसे इस्तेमाल करों और फेंक दो लेकिन आज भी इसे खड़ा देख बड़ी ख़ुशी हुई! 18 जुलाई 2013 का वह ट्रेवलाग आखिर मुझे मिल ही गया जिसमें मैंने इस बंगले के निर्माण सम्बन्धी एक लेख लिखा था जो इस प्रकार है:-

गढ़वाल मंडल विकास निगम की नै योजना में एक नया आयाम शुरू होने जा रहा है. उत्तरकाशी जनपद के तालुका में निगम अपने पुराने बंगले की ही बगल में लगभग २.८० करोड़ राशि से एक लकड़ी का महलनुमा बंगला बना रहा है, जिसके लिए लकड़ी विदेश से आयात की जा रही है.
यह आश्चर्यजनक सच है कि स्थानीय लोग इस लकड़ी को चाईनीज टीक के नाम से पुकार रहे है. यह बेहद हल्की बादामी रंग की लकड़ी देवदार की लकड़ी से ही मिलती जुलती दिखाई देती है. आपको प्रथम दृष्टा यह देवदार की ही लकड़ी लगेगी. हरिद्वार तक रेल से चलकर यहाँ तक पहुँच रही यह लकड़ी कहाँ से आयात की जा रही है इसके बारे में ज्यादा जानकारी तो नहीं मिल पा रही है लेकिन उत्तरकाशी जनपद का यह क्षेत्र जहाँ कीमती और इमारती लकड़ियों के लिए मशहूर है वहीँ यह चाईनीज वुड बड़ी प्राथमिकता के आधार पर यहाँ तक पहुंचाई जा रही है. स्थानीय लोग आश्चर्य ब्यक्त करते हुए कहते हैं कि यह क्षेत्र इमारती लकड़ियों के लिए मशहूर है फिर भी निगम इस चाईनीज वुड को ज्यादा तरजीह दे रही है.


सूत्र मानते हैं कि इतनी भारी भरकम राशि से बन रहा निगम का यह बंगला कितना आकर्षक बनेगा यह तो कहा नहीं जा सकता लेकिन इतना जरुर कहा जा सकता है कि इस बंगले के निर्माण में लाखों की कमीशन के वारे न्यारे हुए हैं. बंगले पर लगाई जाने वाली यह लकड़ी कितनी टिकाऊ होगी इस प्रश्न के जवाब में स्थानीय काष्ठशिल्पी का मत है कि यह लकड़ी कहाँ की है और कौन सी है पहचानना मुश्किल है लेकिन इसकी मजबूती देवदार जैसी होगी उस पर संदेह है. 


उत्तरकाशी जनपद के सीमान्त क्षेत्र की तालुका तक ही सड़क है जिसके दायीं चोर पर बन रहा यह बंगला एक संकुचित स्थान में निर्मित किया जा रहा है. बंगले के पिछले भू-भाग से सटी ऊँची पहाड़ी कभी भी भू-स्खलन से निर्माणाधीन इस बंगले को हानि पहुंचा सकती है. इस बंगले में आगामी समय में कितने पर्यटक रुकेंगे यह कहना संभव नहीं है क्योंकि सिर्फ ४-५ महीने के लिए ही इस क्षेत्र में पर्यटक आते हैं जो हर-की-दून सहित इस इलाके के अन्य ट्रेक जैसे बाली पास, केदार-कांठा, रुइनसारा ताल, ब्लैक पीक, मनिन्दा ताल, ज्युंधार ग्लेशियर, बन्दरपूछं और स्वर्गारोहिणी पर्वत श्रृंखलाओं की तलहटी तक ट्रेक करते हैं. करोड़ों की लागत से निर्माणाधीन यह बंगला आगामी कुछ महीनों में बनकर तैयार होने की स्थिति में तो है लेकिन यह कब तक प्रचलन में लाया जाएगा यह कहा नहीं जा सकता. 


गढ़वाल मंडल विकास निगम के जिन अभियंताओं ने इस बंगले का प्रारूप तैयार किया है शायद वे इस जमीन की भोगोलिक प्ररिस्थिति एवं वास्तुज्ञान से अनभिज्ञ थे क्योंकि जहाँ यह बंगला बन रहा है उसके आस-पास फ्कैले छोटे बड़े भवनों ने उसके खूबसूरत प्रारूप को पूरी तरह से ढक रखा है. बंगले के पिछले हिस्से से सटी चट्टाननुमा पहाड़ी बरसात में कभी भी भू-स्खलन से भवन को नुकसान पहुंचा सकती है. बहरहाल निगम का यह प्रयास जहाँ एक ओर लकड़ी के भवनों के निर्माण में पहला सराहनीय कदम लगता है वहीँ यह बंगला पूरी तरह भूकंपरोधी भी है.

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