Friday, October 18, 2024
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ठोकरों से उठकर एवरेस्ट फतह  तक का पूनम राणा का सफर! क्या ऐसी बेटी के लिए किसी विभाग में नहीं है आउट ऑफ़ टर्म नौकरी!

ठोकरों से उठकर एवरेस्ट फतह  तक का पूनम राणा का सफर! क्या ऐसी बेटी के लिए किसी विभाग में नहीं है आउट ऑफ़ टर्म नौकरी!

(मनोज इष्टवाल)

जब वह मात्र 6 माह की थी तब माँ श्रीमती देवेंद्री देवी  का साया सिर से उठ गया! अभी वह चलना भी नहीं सीखी थी कि 5 बर्ष की उम्र में पिता धर्म सिंह राणा भी स्वर्ग सिधार गए! तीन भाइयों की इस बहन के काश… कि ऐसे झंझावत इतने में ही ख़त्म हो जाते! जाने ईश्वर को क्या मंजूर था या फिर इतनी निर्दयता के साथ क्यों उत्तराखंड के फलक को जमीं दिखाने वाली पूनम के साथ प्रकृति ने हर वह हद पार कर दी जिसकी पीड़ा की पनाह से यह बेटी जितनी भी कराही होगी यह उसका अंतर्मन जानता है लेकिन आप पढ़ते-पढ़ते यूँहीं तड़फ जायेंगे!

पूनम ने अभी अभी स्कूल का बस्ता कंधे से उतारा ही था कि उत्तरकाशी के होटल में कुक का काम करने वाला बड़ा भाई भगवान सिंह राणा जून 2015 में भगवान् को प्यारा हो गया! यहाँ वह अपने पीछे अपनी धर्मपत्नी व बच्चा छोड़ गया! जैसे तैसे दूसरे भाई रामकृष्ण राणा ने होटल में कुक व तीसरे भाई कमलेश राणा ने टैक्सी चलानी शुरू की व साथ ही हिमालय ट्रेकिंग प्रशिक्षण दबा शुरू किया! लेकिन हे रे विधाता तूने यहाँ भी सब्र की इन्तहां खत्म कर दी और नवम्बर 2015 में एक अक्सिडेंट में कमलेश को भी मौत के मुंह ने निगल लिया! अब परिवार में कमाई का मात्र एक जरिया दूसरा भाई रामकृष्ण व सदस्य दो भाभी दो भतीजे व साथ में पूनम की जिम्मेदारी! पूनम जाए तो जाए कहाँ…! बस उसका एक ही ध्येय बन गया कि मेरा लाडला भाई कमलेश एवरेस्ट नहीं चढ़ पाया लेकिन मैं चढ़कर दिखाउंगी! इसी उद्देश्य से वह 20 मार्च 2016 को एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल से मिली!

पूनम बताती है कि इतनी विपरीत परिस्थियों के बावजूद भी उसने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी व साथ ही अपने ध्येय पर मजबूती से अडिग रही, क्योंकि उसे अपने भाई कमलेश राणा का एवरेस्ट चढने का सपना पूरा करना था! पूनम कहती है- सर, बछेंद्री मैडम मेरे लिए भगवान निकली! उन्होंने बिना एक पल गंवाए मुझे अपने कैम्प में रख दिया क्योंकि वह यह जान गयी थी कि मैं कमलेश की बहन हूँ! अभी मैं मात्र 21 बर्ष की हूँ व यहीं बछेंद्री पाल मैडम के कैम्प में रहकर अपनी बीए की पढ़ाई जारी रखे हूँ!

उत्तरकाशी से लगभग 15 किमी. आगे गंगोरी के उपरी हिस्से ग्राम नाल्डगाँव, पट्टी-बाडाहाट, विकास खंड भटवाड़ी में जन्मी जब पूनम राणा कर्नल कोटियाल के आवास बसंत विहार में मुलाक़ात हुई तब यह समझना बड़ा मुश्किल सा हो गया कि यह फूल सी कोमल बच्ची भला एवरेस्ट कैसे चढ़ गयी! पूनम बताती हैं सर- मेरे लिए मेरा ईश्वर जहाँ जमीन पर बछेंद्री मैडम रही वहीँ टाटा स्टील ने हमारे ख़्वाबों को पूरा करने का जिम्मा उठाया जिसके हम आभारी रहेंगे!

पूनम ने माउंट एवरेस्ट फतह करने के लिए अपने पिछले सारे दु:स्वप्न भुला दिए! और मात्र अपने भाई कमलेश की मौत के 11 माह बाद ही अपनी मेहनत के डीएम पर अक्तूबर 2016 में बेसिक कोर्स में बेस्ट ट्रेनी का सम्मान हासिल कर लिया! वहीँ जून 2017 आते आते एडवांस कोर्स में भी बेस्ट ट्रेनी होने का गौरव हासिल किया! प्रथम महिला एवरेस्टर बछेंद्री पाल की निगरानी में उड़ीसा की स्वर्ण लता दलाइन व सीनियर इंस्पेक्टर संदीप टोलिया के साथ नेपाल स्थित माउंट एवरेस्ट बेस कैम्प छोला पास, कालापत्थर इत्यादि फतह करने के पश्चात अगस्त 2017 में हिमाचल प्रदेश की स्पीती वैली की कनामो पीक जिसकी उंचाई 19, 600 फीट है पर फतह हासिल कर डाली! इस से प्रसन्न बछेंद्री पाल ने उनकी ट्रेनिंग और ज्यादा सख्त कर दी! पूनम बताती हैं कि उन्हें अपने कैम्प कपलौं से रोज 28-30 किमी. स्यारी टॉप पूरे सामान के साथ चढ़ना पडता था और फिर उसी दिन वापस लौटना पड़ता था! इस दौरान हम रोज की इस एक्सरसाइज से परेशान से हो जाते थे रोज चढना रोज उतरना साथ ही उतना ही सामान भी लादकर चलना जितना किमी. पैदल चलना पड़ता था! यह सारी गतिविधियाँ एवरेस्ट फतह में मेरे काम आई !

वह बताती हैं कि विगत 12 अप्रैल 2018 को हम एवरेस्ट के बेस कैम्प पहुंचे! वैसे वे तीन लोग नेपाल 29 मार्च 2018 को पहुँच गए थे ! टाटा स्टील ने उनकी सारी व्यवस्थाओं  की जिम्मेदारी अपने आप ली थी! गाँव व उत्तरकाशी से दी हुई विदाई आँखों के आगे तैर रही थी! मैं उन सबके ख्वाब किसी भी हालत में पूरे करना चाहती थी! अब एवरेस्ट चढने के लिए यहाँ हमारा प्रशिक्षण शुरू हो चुका था क्योंकि बेस कैंप जीरी से हमें 8 दिन लोकलुकला (लुक-लुक पीक) पहुँचने में लगते हैं ! यहाँ तक ज्यादात्तर एवरेस्टर फ्लाइट से आना पसंद करते हैं लेकिन यह हमारे लिए अच्छा अनुभव रहा! यहाँ से हम रोज लुक-लुक पीक जिसकी उंचाई 23,600 फीट है चढ़ते और फिर कैंप वापस लौटना होता! इस तरह यहाँ कैम्प 1, कैम्प 2, कैम्प 3-4 होते! जहाँ हमें अंडा सूप सभी मुहैया करवाया जाता!

पूनम बताती है कि आखिर वह दिन आ गी गया जब हमें माउंट एवरेस्ट सबमिट करना था! 17 मई को उन्होंने चढ़ना शुरू किया,आज मौसम बेहतर था वरना रोज एवरेस्ट पर एवलांच आते रहते हैं और उनके टूटने की आवाज से दिल सिहर उठता है! एक वक्त ऐसा आया जब मुझे यह लगने लगा कि इसी हिमालय में मेरी कब्र बन जायेगी यह मेरी गलती नहीं थी! एवरेस्ट के बेहद करीब लगभग 8,400 मीटर की उंचाई में स्थित बालकुनी नामक कैंप में ऑक्सीजन बदली जाती है! मेरी ऑक्सीजन भी खत्म हो गयी थी और शेरपा का दूर-दूर तक पता नहीं था! हिमालय में पहुँचने के बाद कोई आपका इन्तजार नहीं करता इसलिए आपको अपने धैर्य व परिश्रम के साथ अपने दिमाग को मजबूती के साथ दृढ निश्चयी बनाना होगा! दो घंटे तक जब शेरपा नहीं पहुंचा तो मेरी साड़ी उम्मीदें जबाब देने लगी थी! बस एक उम्मीद जो साथ थी वह थी अपनों के चेहरे! इस हालत में मुझे उत्तरकाशी से अपनी विदाई याद आ जाती तो मैं फिर अपने आप से कहती-पूनम तुझे किसी भी हालत में एवरेस्ट फतह करनी है! फिर बछेंद्री पाल मैडम के सिखाये गुर और मुझे दिया गया ढांढस याद आ जाता, मुझे लगता मैडम आकर मुझे चेतना शून्य होने से पूर्व झकझोर रही हैं!  फिर भाई का अक्स आँखों के आगे होता तो चेतना शून्य होने से मैं स्वयं को बचा लेती! आखिर शेरपा पहुंचा और मेरी मरणासन्न हालत देखकर फ़ौरन मुझे ऑक्सीजन सिलेंडर चढ़ाया और बोला- अब तुम्हारे बस का आगे चढ़ना नहीं है इसलिए तुम वापस चलो! मैंने शेरपा को जवाब दिया- चाहे कुछ हो मुझे एवरेस्ट चढ़ना है क्योंकि मैंने खुद से खुद का वायदा किया है! मेरी आँखों में एवरेस्ट कम और ज्यादा अपने वो चेहरे नजर आ रहे थे जिन्होंने मेरे शहर से मुझे एवरेस्ट फतह की उम्मीद के साथ भेजा था! और फिर वह समय भी आ गया जब 20 मई 2018 को हमने रात्री 10:30 बजे एवरेस्ट पर चढना शुरू किया व 21 मई को प्रात: 9:26 पर अपने देश का तिरंगा एवरेस्ट पर लहराया! मुझे लगा दुनिया आज क़दमों में है और हम आसमान में!

यह है एक 21 साल की ऐसी बेटी की कहानी जिसने पूरी जिन्दगी में ऐसे कडुवे अनुभव लिए जिनका कोई तोड़ नहीं है! बमुश्किल 4 फिर कुछ इंच लम्बी पूनम राणा बताती है कि वह एवरेस्ट विजेता बछेंद्री पाल  के साथ साउथ अमेरिका स्थित अंटागोअया शिखर फतह करने भी गयी थी लेकिन लगातार खराब मौसम के बाद उन्हें यूँहीं वापस लौटना पड़ा!

वह टकटकी लगाए कहती हैं – सर काश….उत्तराखंड सरकार के किसी विभाग में मुझे सरकारी सेवा में नौकरी मिल जाती तो मेरे अधूरे ख्वाब पूरे हो जाते! मैं अपने भतीजे/भतीजी को पढ़ा-लिखाकर काबिल बना सकूँ एक टूटे बिखरे परिवार के सपने सजा सकूँ इससे ज्यादा और क्या चाहिए ! मेरी आँखें सजल होनी लाजिम थी! आखिर इस बेटी ने दुःख के बड़े बड़े पहाड़ लांघकर एवरेस्ट फतह तो कर ही दी है लेकिन क्या उत्तराखंड का सरकारी जामा इसके इस ख्वाब को पूरा कर पायेगा? ऐसी बेटी के लिए पुलिस, एसडीआरऍफ़, पर्यटन, निम सहित दर्जनों ऐसे विभाग हैं जो आउट ऑफ़ टर्म पूनम को नौकरी दे सकते हैं लेकिन इस सबके लिए उनकी वकालत करे तो कौन करे! क्या गरीब के लिए स्वप्न सजाकर स्वप्न पूरे करने के बाद भाग्य में हमेशा के दुस्वप्न ही लिखे होते हैं!

(इस पोस्ट के माध्यम से आप सबसे गुजारिश है कि आइये इस बेटी के लिए एक सामूहिक प्रयास करें! आइये इसे इसकी काबिलियत के पारिश्रमिक देने के लिए हर सरकारी तंत्र से गुहार लगाएं! ताकि हम गर्व से कहें कि तुझसे सबक लेकर और बेटियाँ भी आगे बढ़ें और कहें- दिल है छोटा सा, छोटी सी आशा! चाँद तारों को छूने की आशा!! )

 

Himalayan Discover
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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