(मनोज इष्टवाल)
अब तो सचमुच लगने लगा है कि प्रधानमंत्री मोदी के नाम के हौवे में क्या देश क्या विदेश सभी में अंदर खाने कहीं न कहीं इस नाम का लोहा तो है वरना टाइम नामक पत्रिका में छपे सिर्फ एक शब्द “DIVIDER IN CHIEF” ( प्रमुख रूप से विभक्त) पर वर्ड वाइड चर्चाओं का बाजार गर्म नहीं होता और भारत की चुनावी राजनीति में हर विपक्षी के मुंह से यह शब्द नहीं निकलता! काश….सबने टाइम पत्रिका के इस अंक में लिखे उस सच को पूरा पढ़ा होता जिसने यहाँ भी मोदी के नाम के कसीदे पढ़े हैं! क्योंकि टाइम मैगजीन का हौवा इसलिए पूरे देश में विपक्ष दिखा रहा है क्योंकि वह आम भारतीय की पहुँच से दूर है! मेरे द्वारा अपने एक ब्रिटेन में रह रहे मित्र के माध्यम टाइम पत्रिका के इस लेख पर जो जानकारी जुटाई वह इस बबाल से ज़रा हटकर दिखाई देती है!
सर्व प्रथम अगर “DIVIDER IN CHIEF” ( प्रमुख रूप से विभक्त) पर ही बिषय की प्रासंगिकता रखी जाय तो वह वक्त काल परिस्थिति के अनुसार रुचिकर भी होगा! टाइम पत्रिका यह खबर मुखपृष्ठ छापी है और बिना पढ़े ही इस का राजनीतिक लाभ लेने के लिए जो हो-हल्ला विपक्षी पार्टियां मचाने में जुट गयी उस से यह तो साफ़ हो गया है कि मोदी नाम उनके लिए किसी जिन्न से कम नहीं! सारी भारतीय राजनीति में पूरा विपक्ष सिर्फ और सिर्फ किसी पार्टी को नहीं बल्कि एक सूत्रीय एजेंडे में मोदी नाम पर फोकस है जो आम लोगों की नजर में विपक्ष के नाकारा होने को साबित करता है! क्या सचमुच नरेंद्र मोदी नाम इतना बड़ा हो गया है कि उसके आगे सब बौने हो गए हैं..! असली प्रश्न है भी यही!
टाइम पत्रिका के मुखपृष्ठ में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त राज्य अमेरिका संस्करण को छोड़कर, पत्रिका के सभी अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर थी। ऐसा भी नहीं है कि इससे पहले टाइम पत्रिका ने मोदी पर कभी कुछ छापा न हो! इसी पत्रिका ने 2015 में नरेंद्र मोदी को अपने कवर पर पहले भी स्थान दिया था और शीर्षक दिया था “क्यों मोदी मैटर्स” । इस पत्रिका ने उस दौर में भारतीय प्रधान मंत्री के साथ एक साक्षात्कार को छापा था! तब शायद हमारे पास मजबूत विपक्ष की बुनियाद नहीं थी या फिर उन्हें मोदी या देश के प्रधानमन्त्री की तारीफ़ पसंद नहीं थी इसलिए उन्होंने कोई हो हल्ला नहीं काटा!
सुप्रसिद्ध उपन्यासकार आतिश तासीर ने अपनी कवर स्टोरी का शीर्षक बनाया “क्या दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र मोदी सरकार के पांच साल पूरे कर सकता है?” उन्होंने लेख की शुरुआत करते हुए कहा कि 2014 में, भारत “लोकलुभावनवाद के पतन के महान लोकतंत्रों में से पहला” बन गया। उनके अनुसार, मोदी ने उन चुनावों में जीत की उम्मीद की सवारी की, लेकिन इस बार “जो कुछ भी कहा जा सकता है … उम्मीद उस दृष्टिकोण से दूर दिखाई देता है।”
DAWN अखबार लिखता है कि उपन्यासकार तासीर के उलट इयान ब्रेमर का एक दूसरा लेख, मोदी को और अधिक सकारात्मक रूप से मानता है, यह सुझाव देता है कि आर्थिक सुधार के लिए मोदी “भारत की सबसे अच्छी आशा” हैं। वहीँ आतिश तासीर ने सीधा सीधा मोदी पर ही वार नहीं किया बल्कि उन्होंने इसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व साध्वी प्रज्ञा को भी घसीटते हुए लिखा है कि:- ” 2014 में मोदी के स्वर्गारोहण से पता चला था कि “कुलीन वर्ग ने जो विश्वास किया था, उसके धरातल के नीचे, एक उदार समन्वित संस्कृति थी, भारत वास्तव में धार्मिक राष्ट्रवाद, मुस्लिम-विरोधी भावना और गहरी जाति-आधारित जातिगत कट्टरता का वाहक था”।
तासीर ने महिलाओं के मुद्दों पर मोदी के रिकॉर्ड को “धब्बेदार” बताया। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक एस गुरुमूर्ति की भारतीय रिजर्व बैंक के बोर्ड में नियुक्ति की भी आलोचना करते हैं, और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ को “भगवा के लुटेरों में घृणा करने वाले पुजारी” कहते हैं। तासीर ने मालेगाँव विस्फोटों की उम्मीदवारी का वर्णन भोपाल से लोकसभा चुनाव में प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर आरोप लगाया, जो “चरम राष्ट्रवाद और आपराधिकता के दर्शक” के उदाहरण के रूप में अविभाज्य है।
इस उपन्यासकार ने मोदी के नारे “सबका साथ सबका विकास” के बारे में भी DAWN पत्रिका में लिखा है कि “मोदी का आर्थिक चमत्कार न केवल विफल रहा है, बल्कि उन्होंने भारत में जहरीले धार्मिक राष्ट्रवाद का माहौल बनाने में भी मदद की है …” “बुनियादी मानदंडों और नागरिकता को पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है कि मोदी अब हिंसा की दिशा को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं।”
इन्हीं के उलट राजनीतिक वैज्ञानिक इयान ब्रेमर स्वीकार करते हैं कि मोदी को मुसलमानों के प्रति “दुश्मनी की लपटों” के लिए दोषी ठहराया जा सकता है, लेकिन साथ ही वह कहते हैं, “भारत में अभी भी बदलाव की जरूरत है, और मोदी सबसे अधिक संभावना वाले व्यक्ति हैं।” ब्रेमर की नजर से अगर देखा जाय तो भारत के लोकतंत्र में मोदी से अच्छा कोई विकल्प हो ही नहीं सकता! क्योंकि ब्रेमर ने चीन, अमेरिका और जापान के साथ संबंधों में सुधार का हवाला देते हुए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के विकास के एजेंडे का भी उल्लेख करते हुए लिखा है कि “लाखों लोगों के जीवन और संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए नरेंद्र मोदी ने सबसे अधिक काम किया है”।
उन्होंने नरेंद्र मोदी की राजनीतिक व सामाजिक सोच की तारीफ़ करते हुए लिखा है कि नरेंद्र मोदी ने गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स ने एक जटिल कर प्रणाली को सुव्यवस्थित किया और “अभूतपूर्व धनराशि” मोदी के शासन के तहत बुनियादी ढांचे की ओर बढ़ी। उन्होंने धोखाधड़ी को कम करने, उज्जवला योजना और स्वास्थ्य बीमा योजना में आधार की भूमिका की भी जमकर प्रशंसा करते हुए इसे मोदी की कामयाबी का बड़ा मानक माना है।
राजनीतिक वैज्ञानिक इयान ब्रेमर के अनुसार मोदी एक विश्वसनीय विकल्प की कमी से भी लाभान्वित होते हैं यदि सीधे शब्दों में कहा जाय तो उनका यह प्रहार वर्तमान राजनीति पर था जो चुनावी प्रक्रिया के अंतिम चरण में आगे बढ़ रही है! उनका सीधा का मानना है कि मोदी जैसा कोई विकल्प भारत बर्ष में बतौर प्रधानमन्त्री न उनके आगे न उनके साथ और न पीछे दिखाई देता है! इसलिए ब्रेमर लिखते हैं “मोदी के पास अन्य मजबूत लोगों की त्वचा पर हावी होने और पतली करने की वृत्ति है, लेकिन उनके पास इस तरह का सुधार प्रदान करने में एक वास्तविक ट्रैक रिकॉर्ड है जो विकासशील भारत को तत्काल जरूरत है!”
अब आते है टाइम पत्रिका पर जिसका अंक आगामी 20 मई को बाजार में आना है लेकिन भारत में हो रहे लोकसभा चुनाव को देखते हुए इस पत्रिका ने अपने निजी लाभ के लिए एक विवादास्पद स्टोरी को इस से पहले ही वायरल कर फिर से अपने को चर्चाओं में ला दिया है ! शायद यह साबित करने के लिए कि टाइम पत्रिका विश्व की नम्बर 1 है व रहेगी!
आपको बता दें कि अमेरिकी पत्रिका टाइम ने अपने अंतरराष्ट्रीय संस्करण के मुखपृष्ठ पर नरेंद्र मोदी की तस्वीर के साथ विवादास्पद हेडलाइन में प्रधानमंत्री को भारत का ‘डिवाइडर इन चीफ’ (फूट डालने वालों का मुखिया) करार दिया है। जिसे भारत में चल रहे लोकसभा के आम चुनाव को देखते हुए विपक्ष ने भुनवाना शुरू कर दिया है और इसे राजनीति में उतारकर जनता को गुमराह करने की कोशिश की जा रही है जबकि इस पत्रिका ने बड़ी बड़ी चालाकी के साथ मुख पृष्ठ पर ही एक दूसरी लाइन में लिखा है:- ‘मोदी द रिफॉर्मर’।
आपको बता दें कि टाइम पत्रिका का 20 मई, 2019 का यह अंतरराष्ट्रीय संस्करण यूरोप, मध्य पूर्व, अफ्रीका, एशिया और दक्षिणी प्रशांत में मुहैया करवाया जाता है और इसका भारत में बिशेष कोई प्रभाव है भी नहीं लेकिन स्वघोषित बुद्धिजीवी पत्रकार व मोदी विरोधी ऐसे आँख के अंधे हैं जिन्होंने ऊपरी हेडलाइन उठाकर इस से गर्माहट तो पैदा कर दी लेकिन निचली हेडलाइन को गायब कर गए और अब यही दांव उनको उल्टा पड़ने लगा है।
पत्रकार व उपन्यासकार आतिश तासीर ने नरेंद्र मोदी पर केन्द्रित लेख में उन्हें ‘डिवाइडर इन चीफ’ (फूट डालने वालों का मुखिया) लिखा है जबकि इससे पहले टाइम पत्रिका ने बर्ष 2012 फिर 2015 में मोदी को अपने कवर पेज पर पहले भी जगह दी थी। वहीं सन 2014, 2015 और 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया था। मई 2015 में इसी पत्रिका ने मोदी ‘व्हाय मोदी मैटर्स’ (‘Why Modi Matters’) अपनी कवर स्टोरी के रूप में प्रकाशित कर उन्हें “Reformer in Chief” घोषित किया था जो वास्तव में विश्व पटल के कई विकसित देश मानते भी हैं और खुद देशवासी भी!
अब सोचने वाली बात यह है कि क्या आतिश ताहिर भी मोदी के हिंदुत्व मुद्दे को धार्मिक आईने से देखकर यह सब लिखते हैं ? और अगर लिखते भी हैं तो क्या उन्होंने कभी यहाँ के मुस्लिम समुदाय या ईसाई, सिख समुदाय के साथ बातचीत कर पुख्ता प्रामणिकता के साथ इस लेख को लिखा है! क्या आतिश ताहिर ने पाकिस्तान व भारत के मुस्लिमों की तुलनात्मक समीक्षा की है और यह ढूँढने का यत्न किया है कि मुस्लिम समुदाय कहाँ आतंकित है और क्यों! क्या यह ढूँढने की भी कोशिश की है कि विश्व में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश भारत में जी रहे अन्य समुदाय के लोगों को स्वंत्रता व अभिब्यक्ति की जितनी आजादी है वह विश्व के अन्य किसी भी देश में नहीं है?
टाइम पत्रिका की बेबसाईट में प्रकाशित लेख में कहा गया है कि “नरेंद्र मोदी लंबे समय तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहने के बाद साल 2014 में 30 सालों में अभूतपूर्व जनादेश के साथ भारत की सत्ता तक पहुंचे। तब तक भारत में आजादी के 67 सालों में से 54 सालों तक मुख्य रूप से इंदिरा और जवाहर लाल नेहरू की पार्टी कांग्रेस पार्टी का शासन रहा था।” अब इन्हें ये कौन बताये कि कांग्रेस पार्टी अकेली इंदिरा गांधी या जवाहर लाल नेहरु की पार्टी नहीं है ! लेख की अपरिपक्वता देखिये कि उसने कांग्रेस के फाउंडर मेम्बर्स ढूँढने की जगह सिर्फ इसे देश के दो पूर्व प्रधानमंत्री पंडित नेहरु व इंदिरा गांधी की पार्टी करार दे दिया!
आतिश ताहिर ने जिस तरह यहाँ अपने शब्दों का जहर उगला वह बेहद आश्चर्यजनक है और उनसे साफ़ जाहिर होता है कि यह लेख किस मानसिकता के आधार पर लिखा गया होगा ! लेख में लिखा है कि:- मोदी ने भारत के महान शख्सियतों पर राजनीतिक हमले किए जैसे कि नेहरू। वह कांग्रेस मुक्त भारत की बात करते हैं, उन्होंने कभी भी हिंदू-मुसलमानों के बीच भाईचारे की भावना को मजबूत करने के लिए कोई इच्छाशक्ति नहीं दिखाई। इस लेख में आगे लिखा है कि नरेंद्र मोदी का सत्ता में आना इस बात को दिखाता है कि भारत में जिस कथित उदार संस्कृति की चर्चा की जाती थी वहां पर दरअसल धार्मिक राष्ट्रवाद, मुसलमानों के खिलाफ भावनाएं और जातिगत कट्टरता पनप रही थी।
इन महाशय ने शायद कभी हलाला, तीन तलाक मुद्दे, उज्ज्वला योजना में रसोई गैस, स्वास्थ्य बीमा योजना इत्यादि मुद्दों पर कभी न सुना है न पढ़ा है ! अगर सुना या पढ़ा होता तो राजनितिक लेखक ब्रेमर को पढ़कर कुछ अच्छा लिख पाते! यह सब योजनायें मुस्लिम समाज के उस दबे कुचले तबके के लिए वरदान साबित हो रही हैं जो बर्षों से धार्मिक भावनाओं में बांधकर लोक-लुभावन वादों में उलझाया जाता रहा है! यह आतिश ताहिर जैसे लेखक की उस संकीर्ण मानसिकता को उजागर करता है जो सिर्फ और सिर्फ एक समाज को फोकस करके आगे बढ़ा है!
इसी में इन्होने आगे लिखा है कि नरेंद्र मोदी ने साल 2014 में लोगों के गुस्से के देखते हुए आर्थिक वादे किए। उन्होंने नौकरी और विकास की बात की, लेकिन अब ये विश्वास करना मुश्किल लगता है कि वह उम्मीदों का चुनाव था। आलेख में कहा गया है कि मोदी द्वारा आर्थिक चमत्कार लाने के वादे फेल हो गए। यही नहीं उन्होंने देश में जहर भरा धार्मिक राष्ट्रवाद का माहौल तैयार करने में जरूर मदद की। सचमुच यह सब पढ़कर ताहिर की सोच पर तरस आता है कि काश…इस समझदार बुद्धिजीवी ने भारत की सम्प्रभुत्तता को समझने की कोशिश की होती! क्या भारत बर्ष के लोग इतने नासमझ हैं कि कोई नेता मंच पर अपने गुस्से का इजहार करे और लोग उसके साथ खड़े हो जाए!
रही बात नौकरी व विकास की तो क्या 54 साल से कांग्रेस जो हर चुनाव में किसान और गरीब का रोना रोती रही है वह गरीबी रोक सकी है! आज भी उसका मुद्दा यही है जो 54 साल पहले था! नरेंद्र मोदी ने विकास के नाम पर देश को विश्व की पांचवीं शक्ति के रूप में खड़ा कर दिया है वह भी मात्र पांच बर्ष के कार्यकाल में! रोजगार जरुरी नहीं कि वह सिर्फ नौकरी करना हुआ स्वरोजगार के रूप में जितने मानक आज युवाओं के पास हैं वह पहले कभी नहीं थे! सड़कें, स्वच्छता क्या विकास की श्रेणी में नहीं आते? वहीँ यह आश्चर्यजनक तर्क क्या किसी के गले उतरेगा कि वे धार्मिक राष्ट्रवाद का जहर घोल रहे हैं ? मेरा कहना है कि ताहिर साहब क्या हिन्दुस्तान में हिन्दू अपने को हिन्दू कहना छोड़ दे ! हिन्दुओं पर पाकिस्तान में होते जुल्म आपको नहीं दीखते ! चीन में सैकड़ों मस्जिदें जमीदोज की जा रही हैं, दाड़ी रखने पर जेल है ! नमाज नहीं पढ़ सकते खुले आम मुस्लिम युवतियों को जबरन चीनियों से सम्बन्ध बनाने की बात होती है क्या वहां आपको कोई धार्मिक उन्माद या जहर नहीं दिखाई देता!
ये ताहिर साहब कहते हैं भारत के लोग इतने नासमझ है कि मंच पर ही नेता की ऐसी तैसी कर देते हैं? तो मियाँ ये बताइये उन नेताओं की आरती कौन उतारेगा जो झूठ और पाखंड की राजनीति कर रहे हों ! आपने यहाँ न सिर्फ देश के प्र्धानमंत्री को नीचा दिखाने की कोशिश की है बल्कि पूरे देश के हर वासी को नासमझ कहकर हमारी खिल्ली उड़ाने की भी जरूरत की है! क्या यह देश तब भी टाइम पत्रिका को शीर्षता देगा..!
यह लेखक जो बात असल में कहना चाहता था वह यहाँ कह गया :- ” नेहरू की विचारधारा सेक्युलर थी जहां सभी धर्मों को समान रूप से इज्जत थी। भारतीय मुसलमानों को शरिया पर आधारित फैमिली लॉ मानने का अधिकार दिया गया, जिसमें तलाक देने का उनका तरीका तीन बार तलाक बोलकर तलाक लेना भी शामिल था। जिसे नरेंद्र मोदी ने 2018 में एक आदेश जारी कर तीन तलाक को कानूनी अपराध करार दे दिया।” अब इन शब्दों का अर्थ आप ही लगा लीजिये ! सीढ़ी सी बात है कि हिन्दुस्तान के संविधान से ऊपर यहाँ मुस्लिम शरिया क़ानून है उसकी यहाँ का प्रधानमंत्री अक्षरत: पालन करे! यह किसी दिवालिये लेखक के अलावा और लिख भी कौन सकता है!
आतिश ताहिर साहब आपके ‘डिवाइडर इन चीफ’ (फूट डालने वालों का मुखिया) ने यह जता दिया है कि आप एक बेहद संकुचित मानसिकता के साथ एक ऐसे लेखक हैं जो अपनी कलम के साथ इन्साफ करने की जगह मन मस्तिष्क में भरे जहर को उड़ेलने का काम करता है! टाइम पत्रिका के इस अंक से यह जरुर हुआ होगा कि इसकी प्रति की मांग भारत में भी बढ़ी होगी लेकिन यकीन मानिए अगर इस पत्रिका को अपने स्टैण्डर्ड का ज़रा भी ख़याल होगा तो वे इनकी विदाई इस पत्रिका से जल्दी ही करेंगे ऐसा मेरा विश्वास है! काश …आप भी ब्रेमर जैसे राजनीतिक वैज्ञानिक से कुछ सीख ले पाते!
राजनीतिक वैज्ञानिक इयान ब्रेमर इसी पत्रिका में मोदी के पांच सालों का ब्यौरा देते हुए उनकी प्रशंसा करते हुए कहते हैं:- “मोदी ही वो शख्स है जो भारत के लिए डिलीवर कर सकते हैं। ‘मोदी इज इंडियाज बेस्ट होप फॉर इकॉनोमक रिफॉर्म’ (‘Modi Is India’s Best Hope for Economic Reform’) शीर्षक के लेख में लिखा है कि भारत ने मोदी के नेतृत्व में चीन, अमेरिका और जापान से अपने रिश्ते तो सुधारे ही हैं, लेकिन उनकी घरेलू नीतियों की वजह से करोड़ों लोगों की जिंदगी में सुधार आया है।”
ब्रेमर अपनी समीक्षा में सचमुच मोदी के कार्यों पर अध्यनात्मक विवेचना के साथ लिखते हैं कि
नरेंद्र मोदी ने भारत की जटिल टैक्स प्रणाली को सरल और सहज किया है। आलेख में कहा गया है कि मोदी ने देश में बुनियादी ढांचे में जमकर निवेश किया है। नई सड़कों का निर्माण, हाईवे, पब्लिक ट्रांसपोर्ट और एयरपोर्ट ने देश की दीर्घकालीन आर्थिक संभावनाओं में आशा का संचार कर दिया है। कई ऐसे गांवों में बिजली पहुंची हैं जहां 70 सालों से अंधेरा था। नरेंद्र मोदी ये काम आर्थिक विकास के लिए वरदान साबित हुए हैं।
मैं पूर्व में भी यह स्पष्ट कर चुका हूँ कि ब्रेमर नरेंद्र मोदी द्वारा किये गए कार्यों के साथ उनकी प्रशंसा में क्या क्या कहते हैं इसलिए हर बात को दोहारना ठीक नहीं होगा! ऐसे में देश के कई राजनीतिक धड़े व सोशल साईट के मित्र बिना पढ़े जाने अपनी प्रतिक्रिया सिर्फ और सिर्फ इस बात को लेकर देते आ रहे हैं कि टाइम पत्रिका में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘डिवाइडर इन चीफ’ (फूट डालने वालों का मुखिया) कहा गया है! मुझे लगता है कि अब इस पर विस्तार से जानकारी प्राप्त होने के बाद आप ही तय कर सकते हैं कि आखिर यह लेख आतिश ताहिर के पहले लेखों से मिलाप क्यों नहीं खाता और ब्रेमर की तरह आतिश ताहिर ने क्यों बिना भारतीय सम्प्रभुत्तता व लोकतांत्रिक व्यवस्था के बिना अध्ययन के यह लेख लिखा होगा! इस लेख न कहीं न कहीं गिव एंड टेक की दुर्गन्ध आती दिखाई दे रही है वरना यह लेख 20 मई से पूर्व ही टाइम पत्रिका की सुर्खी नहीं बनता क्योंकि वे भी जानते हैं कि भारत में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की चुनावी व्यवस्था चल रही है! शायद लेखक को यह पता नहीं है कि भारतीय एक बार जिस बात पर अडिग हो जाते हैं उसे आंधी तूफ़ान तक नहीं हिला सकते ऐसे में भला उस पत्रिका की क्या मजाल जिसे 90 प्रतिशत भारतीय समाज जानता भी नहीं है!