Monday, April 28, 2025
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जीतू भरणा की प्रेम कहानी का मल्ली का सेरा…! जहां के अन्न पर पलती थी दो पट्टियां..!

(वरिष्ठ पत्रकार शीशपाल गुसाईं की कलम से)

प्रेम प्रसंगों में गढवाल के रजवाड़े पुरातनकाल से ही काफी चर्चित रहे हैं यह हम सब जानते हैं ! अब चाहे वह राजुला मालूशाही हो, भरपूर गढ़ी का अमरदेव सजवाण व तैडी की तिलोखा हो! या फिर बगुड़ी का जीतू बगड्वाल व भरणा! या फिर माधौ सिंह भंडारी के प्रेम प्रसंग! जीतू बगड़वाल पर यह लेख आपको ठेठ उत्तरकाशी व टिहरी की सीमा बंदी तक ले जाएगा जिसे गंगा आपस में विभाजित करती है!

जीतू बगड़वाल, ने बसाया था मल्ली गांव का सेरा उत्तरकाशी उन्हें बिसर गया, चमोली जिला आज भी पूछ रहा है। जीतू बगड़वाल यानी जीत सिंह बिष्ट , करीब 500 साल पहले गमरी पट्टी का भड़ राजा था। मल्ली सेरा उन्होंने ही बसाया था।


वे भड़ थे। और वीर थे। उनकी याद में 30 साल पहले तक बागोड़ी गांव में मेला लगता था। जो अब नहीं लगता। चमोली जिले के दिलों में जीतू आज भी जीवित है। जीतू पशु, और प्रकृति प्रेमी थे।
वह मल्ली के सेरा में रोपणी में मैया लगा रहे थे। आछरियो का दोष हुआ, और वही खेतों में डूब कर अनंत यात्रा में चले गए। गीतों, पवाडो में जीतू आज भी जीवित हैं। काफी कलाकार जीतू का अभिनय करते हैं।

दूसरे इतिहास में यह भी कहा जाता है कि गढ़वाल रियासत की उत्तरकाशी जिले के चिन्याली सौड़ की गमरी पट्टी के बगोड़ी गांव पर जीतू का आधिपत्य था। अपनी तांबे की खानों के साथ उसका कारोबार तिब्बत तक फैला हुआ था। एक बार जीतू अपनी बहिन सोबनी को लेने उसके ससुराल रैथल गांव पहुँचा। हालांकि जीतू मन ही मन अपनी प्रेयसी भरणा से मिलना चाहता था। कहा जाता है कि भरणा अलौकिक सौंदर्य की मालकिन थी। भरणा, सोबनी की ननद थी। जीतू और भरणा के बीच एक अटूट प्रेम संबंध था या यूं कहें कि दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने थे। जीतू बांसुरी भी बहुत सुंदर बजाते थे। एक दिन वो रैथल के जंगल में जाकर बांसुरी बजाने लगते हैं। रैथल का जंगल खैट पर्वत में है, जिसके लिए कहा जाता है कि वहां परियां निवास करती हैं। जीतू जब वहां बांसुरी बजाता है तो बांसुरी की मधुर लहरियों पर आछरियां यानी परियां खिंची चली आई।

जीतू को आछरियो ने खेट पर्वत में गुम किया या मल्ली के सेरे में….। लेकिन कहीं न कहीं इनके अंश मिलते हैं। बगोड़ी गांव में आज भी 200 परिवार रहते हैं। बागोड़ी चिन्याली सौड़ से 10 किलोमीटर दूर है। जीतू के वंसज बिष्ट लोग भी रहते हैं। गांव में चल रही करीब 11 वीं पीढ़ी भी उन्हें गीतों पवाडो के जरिये जानती है। इसमें भी अमेरिका से संचालित यूट्यूब की बड़ी मेहरबानी है।

मल्ली सेरा कभी पूरी गमरी पट्टी का सेरा था। गमरी से 60 के दशक में दिचली अलग पट्टी बन गई। सोचिये दो पट्टी इसी सेरे के अन्न पर निर्भर थीं। समय बितता गया, मल्ली सेरा छोटा होता गया। अब मल्ली सेरा 30 % ही रह गया। यह फोटो कल ही का है। नीचे सूखी गंगा नदी है।झील यहां नवंबर, दिसम्बर में मनोरम लगती है। और बचे खेत भी। फोटो कल की हो, लेकिन इतिहास 500 साल पुराना है जो जीवंत कर देता है। सोचेये कितने वीर थे तब के लोग, अन्न के लिए पहाड़ को मैदान बना देते थे। अन्न से पीढियां चलती थी। हम लोग जीतू के बनाये खेतों को बेच देते हैं। जीतू, जब -जब हम मल्ली का सेरा को नागराजधार से ,देखेंगे, तब तब आप हमारे स्मृति में ताजा होंगे।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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