जब दलित दीप चंद शाह की बारात 22 दिन तक जंगल में भटकती रही।
(वरिष्ठ पत्रकार शीशपाल गुसाईं की कलम से)
बात 1974 की है। भिलंगना ब्लॉक की हिंदाव पट्टी में दलित श्री दीप चंद शाह की बारात निकली, तो सवर्णों के विरोध के चलते बारात 23 वे दिन घर पहुँची। दीप चंद अपनी दुल्हन को सवर्णों के गांव पालिकि में ला रहा था। स्वमं घोड़े में। सवर्णों के गांव से बारात लौट रही थीं। बहुत विरोध हुआ। बारात लौटने के लिए, दरांती, थमाले, भाले बाहर निकल आये।दीप चंद की बारात 22 दिन तक जंगल में भटकती रही। जो कलंक के रूप में ऐतिहासिक घटना थीं। जंगल के कंद मूल फल , खाकर , दूल्हे, दुल्हन, और मेहमानों ने इतने दिन काटे। जंगल में भट्टी लगी। जब तक सुबह को किसी, कोने से बारात निकालने की सोचते, गांव , और पट्टी वाली घात लगा कर खड़े रहते। और विरोध कर बारात जंगल को लौट जाती।
तब जंगल जंगल था। सब कुछ जंगल मे मिलता था।
वे हर छन सोचते कि ठाकुरु के गुस्सा कब कम होगा।?आखिर में वह अपनी वियोली को पैदल ही गांव लाया। दरअसल तब दलित धोड़े में चढ़ने का सवर्ण अपमान समझते थे। कुंवर प्रसून ने यह घटना, युगवाणी में छापी।तब यह मामला पूरे देश के सामने था। प्रसून ने दलितों के साथ अपमान बताते हुए, लोकल नेताओं को आईना दिखाया था। जो चुप रहे थे। दीप चंद शाह , तहशीलदार बन कर रिटायर्ड हुए थे।
हैरान करने वाला वाक्या था कि, जब हम दलितों की बारात रोक रहे थे तब अमेरिका ने दो साल पहले 1972 में अपना चांद पर अभियान खत्म कर दिया था। आखिरी यात्री सरेंनन अंतरिक्ष यात्री थे। 21 जुलाई 1969 को सबसे पहले नील आर्मस्ट्रांग ने चांद पर कदम रखा। और हम 1974 में दलितों की बारात रोक रहे थे।
और तब कहते हैं हम इंडिया पर बहुत पंख लग गए हैं। और बहुत समानता आ गई है। ये है समानता ?