Friday, December 27, 2024
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जब जिन्दगी में पहली बार मैंने सर्वोदयी नेता के घर काढा पिया!

(मनोज इष्टवाल/यात्रावृत्त 20 से 22 नवम्बर 1992)

वक्त कब कहाँ से कहाँ पहुंचा देता है यह कहना उतना ही मुश्किल है जितना मुश्किल मेरा यह लेख! यह वह वक्त था जब मैं गढ़वाल की कई पहाड़ियों की ख़ाक छान रहा था! पिछले दिनों कोटद्वार स्थित घमंडपुर में सुप्रसिद्ध व्यक्तित्व गोकुलानंद बडथ्वाल जी के साथ चाय की चुस्कियों में जिक्र हुआ था कि वे बडेथ के बडथ्वाल हैं तब मैंने सुप्रसिद्ध साहित्यकार बद्रीश पोखरियाल जी से पूछा जोकि उनके पडोसी हैं और मैं उन्ही के आवास पर ठहरा था क्योंकि मैं मालन -कण्वाश्रम में स्थित दुष्यंत शकुन्तला प्रेम प्रसंग पर आधारित एक नृत्य नाटिका तैय्यारी दूरदर्शन के लिए कर रहा हूँ! बद्रीश पोखरियाल जी द्वारा मुझे एक नृत्यनाटिका सम्बन्धी प्रतिलिपि दी गयी जो किसी काल में उनकी टीम द्वारा दिल्ली में प्रदर्शित की जा चुकी थी!

यह मेरा भाग्य रहा कि इसी दिन सुप्रसिद्ध साहित्यविद्ध व कवि कन्हैयालाल डंडरियाल जी भी मेरे साथ उनके मेहमान थे! यह व्यक्ति दिल्ली में रहकर भी नंगे पैर चलते हैं और बेशभूषा से बेहद दीनहीन! मेरी मस्तक रेखा पढ़कर बोले! आप में ज्ञान भंडार रहेगा! यश अपयश के भागीदार रहेंगे ! प्रसिद्धी भी मिलेगी लेकिन पैंसा टिकेगा नहीं! मैं मुस्कराया तो वे तमतमा गए! उन्होंने शायद मेरे मन को पढ़ लिया था कि मैं क्या कहना चाह रहा हूँ! बोले- मेरे कपड़ों पर मत जाइए या मेरी भेषभूषा पर! जो कहा सत्य कहा आने वाले समय में आपको खुद ही ज्ञान हो जाएगा! खैर प्रसंगवश बिषय में यह सब जुड़ता रहा! मेरी भाभी का मायका भी ग्वील बडेथ यानि ढांगू-उदयपुर में था लेकिन उनके लिए गंगा तट सिंगटाली से झैड गाँव जाना सरल हुआ! मेरी उत्कंठा थी कि मैं गुमखाल पार भैरों गढ़ी/लंगूर गढ़ी ह्म्नुमान गढ़ी की शिखरें पार कर आगे बढूँ! लेकिन इस क्षेत्र में परिचय कम था! तार जुड़ते गए और गाड़ीघाट निवासी शेखरानन्द चमोली (पैत्रिक गाँव डांडा नागर्जा के पास/ जिन्होंने डांडा नागर्जा मंदिर जीर्णोद्वार के लिए उस काल में 3 लाख खर्च किये थे का साक्षात्कार करने उनके आवास पहुंचा! उनके पुत्र छात्र नेता हुए! परिचय में पता चला कि उनकी बहन भी ग्वील गाँव के कुकरेती परिवार में है ! उदार हृदय के शेखरानन्द चमोली जी बोले- पंडित जी, अगर उधर जाओगे तो रात्री बिश्राम के लिए चिंता नहीं है ! वहां रुक लेना! भला बहती हवा और मुझ जैसे नारद कोर कोई रोक पाया है! जेब कडकी के दौर में थी लेकिन दिल का राजा हुआ!

सर्वोदयी नेता मानसिंह रावत जी के साथ पूर्व मंत्री सुरेंद्र सिंह रावत, समाजसेवी विनोद नौटियाल, वरिष्ठ पत्रकार व उत्तराखण्ड पत्रकार फोरम के अध्यक्ष सुनील नेगी इत्यादि।

कोटद्वार से गुमखाल पहुंचा यहाँ से एक खटारा सी जीप में सवार होकर सिलोगी आ पहुंचा हूँ! यहाँ दो तीन दुकाने व एक इंटर कालेज ! चाय पानी व राशन पानी के अलावा कुछ कच्ची बेचने वाले सज्जन मिले ! खैर चाय तो मिली लेकिन पानी का यहाँ बड़ा धर्म संकट है! अच्छी-खासी ठंड..! चाय पी और जल्दी ही बडेथ गाँव के ढालदार रास्ते के लिए चल पड़ा! एक आध सज्जन से पूछा तो उन्होंने नीचे अंगुली करके बता दिया कि वो है बडेथ! अरे यहाँ के तो हमारे गुरु जी भी हुए – जगदम्बा प्रसाद बडथ्वाल! अब ध्यान आया लेकिन यह अब पछतावा करने जैसी बात हुई कि आखिर मैं बडेथ जा किस लिए रहा हूँ! तब तक एक ब्यक्ति बोला- जल्दी जल्दी निकल लो आजकल भालू लगा हुआ है! खैर बडेथ एक सर्व सम्पन्न गाँव है भले ही भी उसकी सरहद रिंगलपानी तक ही रोड खुदी है ईश्वर जाने कब आगे बढ़ेगी! गोकुलानंद बडथ्वाल जी के पारिवारिक जन बहुत हुए लेकिन पूर्व विधायक सन्तन बडथ्वाल व गोकुलानंद बडथ्वाल जी के कोटद्वार बस जाने के बाद अब उनकी धरोहरें ऐसी ही वीरान हो गयी थी!

रात्री बिश्राम के लिए ग्वील निकल आया और अगली सुबह यानि 21 को वापसी! दरअसल युवावस्था की यह भटकन जिस मकसद से थी वह सार्वजनिक इसलिए नहीं कर सकता क्योंकि वह बेमकसद साबित हुई! सिलोगी में टाटा सूमो या जीप आ इन्तजार करते करते बहुत समय हो गया लगभग दो बज गए! भूख से प्राण सूखने शुरू हो गए थे चाय बंद कितना जो खाता! फिर होटल वाला बोला- आपको एक तरीका सुझाता हूँ यहाँ से उतिंडा-बागौ होकर बाडयूँ पुल पहुँच जाओ वहां से आप सतपुली निकल सकते हैं! वाह…आईडिया अच्छा लगा ! दो महिलायें यहाँ से साथ हो ली तो पता चला उन्हें बाड़यूँ जाना है! बातों बातों में पता चला कि मेरी क्लासमेट उर्मी की बहन भी बाडयूँ रहती है! अब निश्चिन्त हो गया कि आसरा तो मिल ही जाएगा! गौंत्या जो ठहरा…! हा हा हा हा !उतिन्डा की धार से तीखा ढाल गाँव के लिए उतरता है! दोनों उम्र दराज महिलाओं ने सतर्क किया- भुलू, आराम से हिटी हो! नखरा गारा छन! मैं बोल पड़ा- फिकर मत कीजिये ! मैं ऐसे रास्तों पर चलने का आदि हूँ! लेकिन यह सब पूरा बोल भी नहीं पाया कि फिसलता लुढकता दूर जा पहुंचा! कोहनियाँ छिल गयी! शर्मसार मुझे होना था मैं दांत निपोड़ कर हंसने लगा देखा वो बेचारी शर्मिंदा हो रही हैं! सचमुच आप भी कभी इस रास्ते उतरें तो बेहद सावधानी से उतरें क्योंकि मैं पूरे रास्ते कई जगह दुबारा भी गिरते -गिरते बचा! लुटमिंडल़ा गाऱा (गोल-मटोल छोटे छोटे पत्थर) आपको पूरे रास्ते मिलेंगे!

रात्री बिश्राम आज यानि 21 नवम्बर 1992 बाडयूँ उर्मिला (उर्री) की बहन के यहाँ ही किया! परिचय कम था लेकिन अपने मुल्क के लोग अपने ही लगते हैं! भरपूर प्यार व ब्राह्मण कुलीन होने के साथ सत्कार भी मिला! 22 नवम्बर को अल सुबह ही निकलना उचित समझा क्योंकि आज किसी भी सूरत में यह रिस्क नहीं लेना चाहता था कि घर तक न पहुँच पाऊं! जेब में बमुश्किल 38 रूपये 35 पैंसे हैं! बाड़यूँ झूलापुल पार करते ही सर्वोदयी नेता मान सिंह रावत जी से मुलाक़ात हुई! वे मुझे यहाँ पाकर बड़े विस्मित और खुश भी हुए! दरअसल उनसे मेरा परिचय सुप्रसिद्ध साहित्कार भजन सिंह “सिंह” ने कोटद्वार बालासौड स्थित अपनी बेटी के आवास पर विगत मई माह में करवाया था! मैं आश्चर्यचकित था कि उन्होंने मुझे एकदम पहचान लिया! फिर क्या था घर पर ले गए और बोले- चाय तो न मैं पीता न बुढ़िया पीती! अगर काढा पीना चाहें तो बनवा देता हूँ! मैं अंदर से उत्सुक हुआ कि ये काढा आखिर बला क्या होती है ? उम्र के हिसाब से हिचक हुई लेकिन मान सिंह जी मेरा हृदय पढ़ गए बोले- नयार की ठंड है और जुखाम का डर भी ! यह आपके थके बदन को आराम देगा! इतना कहकर नीचे गए और कुछ ही देर में एक बॉल में लाल मटमैला रंग का गर्म गर्म पानी ले आये जिस से भाप उड़ रही थी!चुस्की क्या ली कि मजा आ गया! पहली घूँट में मुझे आयरलैंड की उस कम्पनी की वह चाय याद आ गयी जो मैंने बीफेब सेफलैंड में पी थी! इसमें तुलसी, मुलेठी, तेज-पत्ता, कालीमिर्च, लॉन्ग सहित जाने कितने स्वाद एक साथ थे! सचमुच यह अद्भुत थी! इधर मैं चाय निबटाता रहा उधर मानसिंह जी अपने मिनी बैंक का कामकाज! गाड़ी का हॉर्न बजा और विदाई के साथ यमकेश्वर विकास खंड की यह पहली यात्रा भी समाप्त हुई!

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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