ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
हिमालय की तलहटी पर बसें तमाम गांवों के लिए बुग्याल आंगन है। सुबह जब लोगों की आंखें खुलतीं हैं, उन्हें ठीक सामने बुग्याल नजर आते हैं। ये बुग्याल पहाड़ के वाटर टैंक हैं साथ ही प्रकृति का अमूल्य खजाना हैं। प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ ये औषधियों का भंडार भी हैं। लेकिन विडंबना ही है कि प्रकृति में जो कुछ भी सुंदर है, वह इंसान के उपभोग से बच नहीं पाया है। करना तो प्रकृति का उपयोग था, लेकिन इसने उपभोग की शक्ल ले ली। जिस तेजी के साथ अब सबसे नर्म और उपजाऊ घास के ये मैदान नष्ट हो रहे हैं, वो भविष्य के लिए बेहद शुभ संकेत नहीं है।
उत्तराखंड में कभी पर्यटन तो कभी विशेष आयोजन व धार्मिक आयोजनों के नाम पर इन बुग्यालों का लगातार दोहन किया जाता रहा है। दयारा, वेदनी, औली और आली राज्य के कुछ प्रमुख बुग्यालों में से है, लेकिन इन सब पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। माननीय उच्च न्यायालय ने वेदनी, आली, बगजी बुग्याल सहित अन्य बुग्यालो में तो रात्रि विश्राम के लिए प्रतिबंध लगाया है। लेकिन औली में निजी शादी हेतु चार दिन के लिए जो शहर बसाया जा रहा है वो बेहद चिंताजनक है। एक ओर जहां बुग्यालो में स्थानीय लोगो को एक भी टेंट नहीं लगाने दिया जा रहा है वही एक शादी के लिए दर्जनों टेंट की अनुमति मिलना वाकई दुःखद है। सभी लोगो के लिए एक ही नियम कानून होने चाहिए।
गौरतलब है कि बुग्यालों में मानवीय हस्तक्षेप के चलते यहां के पारिस्थितक तंत्र को भारी नुकसान पहुंचा है। कुछ साल पहले शीतकालीन खेलों के लिए की गई तैयारियों से औली बुग्याल भूस्खलन का शिकार हो गया, जिसका असर जोशीमठ शहर तक हुआ है। आज भी भारी बारिश में जोशीमठ शहर के लोग सो नहीं पाते हैं जानें कब औली का नाला तबाही मचा दे। जबकि बुग्यालों की खासियत यह है कि इनकी ऊपरी सतह 10 से 12 इंच तक मोटी होती है और उसके नीचे नमी से भरपूर अत्यधिक उपजाऊ मिट्टी होती है। सतह के नीचे एक से डेढ़ फुट तक की परत भूरी मिट्टी की होती है। इस परत को बनने में दो सौ से दो हजार तक साल लगते हैं। बुग्याल चूंकि अधिकतर बर्फ से ढके रहते हैं, इसलिए उनकी सतह के नीचे का तापमान हमेशा शून्य डिग्री ही बना रहता है। बुग्याल की सतह का तापमान 4 डिग्री से ज्यादा नहीं होता। जानकार मानते हैं कि प्राकृतिक रूप से इतने संवेदनशील क्षेत्र में किसी भी तरह का निर्माण कार्य और आयोजन भूस्खलन का खतरा पैदा करेगा। ऐसे में औली बुग्याल में इस प्रकार के बड़े आयोजन में न केवल औली बुग्याल को नुकसान पहुंचने की संभावना है, अपितु पर्यावरणीय दृष्टि से भी ये कोई शुभ संकेत नहीं है। बुग्याल के साथ इंसानी खिलवाड़ दरअसल खुद के साथ खिलवाड़ भी है।
पूरे विश्व को चिपको आंदोलन के जरिये पर्यावरण संरक्षण का मूल मंत्र देने वाली गौरा देवी की धरती पर हो रहे इस प्रकार के आयोजन पर पर्यावरणविद्धो का मौन और चुपी साधना समझ से परे है–??? इन सबके बीच सवाल ये है कि हम जानते तो हैं कि हम क्या कर रहे हैं और भविष्य में इसके कितने खतरनाक नतीजे होंगे–?? फिर भी प्रकृति के विरूद्ध इस प्रकार के आयोजनों से बचा जाना चाहिए था। बुग्यालो में इस तरह के बडे आयोजन बुग्यालो को कहीं बदरंग न कर दें–?? इस दिशा में गंभीरता से सोचने की दरकरार है। औली बुग्याल में शादी के लिए चार दिन का शहर बसाने की ज़िद कहीं भारी न पड़े..?? अब समय आ गया है कि समय रहते प्रकृति का उपभोग छोड़कर सिर्फ उपयोग करना शुरू करे–? वरना इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे–??