Sunday, September 8, 2024
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गढ़ चाणक्य गढ़ नरेश के सेनापति पुरिया नैथानी के जन्मदिन पर उनकी तलवार पूजी गई।

देहरादून 23 अगस्त 2018।
पुराना दरबार ट्रस्ट व श्री पुरिया नैथानी ट्रस्ट द्वारा देहरादून स्थित टिहरी हाउस में सोलहवीं सदी के पुरोधा जिन्हें गढ़ चाणक्य के नाम से भी जाना जाता है, गढ़वाल नरेश के सेनापति पुरिया नैथानी के जन्मदिवस पर उन्हें याद किया गया व उनकी तलवार की पूजा कर उनकी ऐतिहासिक गढ़ गाथा पर चर्चा की गई।
श्री पुरिया नैथानी ट्रस्ट के अध्यक्ष व उन्हीं के वंशज निर्मल नैथानी ने कहा कि उन्हें गर्व है कि इतिहास में वे पहले ऐसे पुरोधा हैं जिन्होंने अंतिम अंतिम लड़ाई 100 बर्ष की उम्र में लड़ी और राजा प्रदीप शाह ने उनके अनुरोध पर उन्हें उपहार स्वरूप नैथाणा गढ़ नामक किला बनाकर उनकी सेवानिवृत्ति का तोहफा दिया।
वहीं पुराना दरबार ट्रस्ट के ठाकुर भवानी सिंह पंवार ने कहा कि उन्हें खुशी है कि ऐसे पुरोधा से सम्बंधित के दस्तावेजों का आज भी संरक्षण किया गया है जिन्होंने राजधर्म की रक्षा करते हुए विभिन्न षडयंत्रो को नाकाम कर सिर्फ गढ़ नरेश की ही रक्षा नहीं की बल्कि गढ़वाल का सीमा विस्तार कुमाऊ की सीमाओं से हिमाचल की सीमा तक फैलाया।
गढ़ सेनापति पुरिया नैथानी के बारे में आपको बता दें कि गढवाल के महापुरुषों में गढ चाणक्य पुरिया नैथानी का जन्म 23अगस्त 1648 को पं गेंदामल नैथानी जी के घर ग्राम नैथाणा पट्टी मन्यारस्यूं पौडी गढवाल में हुआ था। इनकी माता का नाम विलोचना था, बच्चे का पालन पोषण उस समय श्रीनगर के राजा अजयपाल के दीवान शंकर डोभाल के घर हुआ और बाल विवाह प्रथा के कारण इनका विवाह बचपन में ही दीवान शंकर डोभाल की पुत्री से कर दिया ! इनकी काबिलियत के दम पर इन्हें घुड़साल का पहले रिसालदार नियुक्त किया गया और धीरे धीरे ये अपनी क्षमताओं के डीएम पर राज दरवार के सबसे सम्मानित कहे जाने वाले पद सेनापति/राजदूत नियुक्त हुए! इनकी मौत आज भी रहस्य है ! कुछ का कहना है कि राजा भर्तहरी की खिचड़ी खाकर ये भी अमरत्व प्राप्त कर गए हैं जबकि इनकी अंतिम यात्रा हरिद्वार के कुम्भ की मानी जाती है!
इस दौरान वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र जोशी व बद्री केदार सामाजिक एवम सांस्कृतिक संस्थान के संरक्षक सचिव सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित थे।
 
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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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