Thursday, August 21, 2025
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गढ़-कुमाऊँ में बोली जाने वाली बोलियाँ

(मनोज इष्टवाल)

क्या हम जानते हैं कि गढ़-कुमाऊं को अभी तक लोकभाषा का दर्जा क्यों नहीं मिला, जबकि गढ़ राजकाल में यह हमारी लोक भाषा के रूप में पूरे भारत बर्ष में मान्य थी। दरअसल गढ़-कुमाऊँ के हर क्षेत्र में बोली जाने वाली गढ़वाली या कुमाऊनी अपने-अपने क्षेत्र में जाकर अपने शब्द बदल देती है। जिसके फलस्वरूप गढ़वाल में नौ तरह की गढ़वाली बोली व कुमाऊं में 10 तरह की कुमाउनी बोली प्रचलित हैं।

गढवाल क्षेत्र की बोलियाँ 

गढ़वाल की लोक बोली जिसे गढ़ राजवंश की लोकभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ, वह श्रीनगरी बोली कहलाई। यह बोली  श्रीनगर, देवलगढ़पौड़ी क्षेत्र में बोली जाती है, इसे सबसे मीठी व मधुर उपबोली माना जाता रहा है। इसके बाद दूसरी नागपुरिया बोली गढ़वाल में प्रचलित है जो चमोली जनपद के नागपुर में बोली जाती है । तीसरी दसौल्य या दसौली बोली हुई जो नागपुर से लगी चमोली गढ़वाल की ही एक पट्टी है। चौथी राठी बोली हुई जिसका क्षेत्र दूधातोली, बिनसर और थैलीसैण है। पांचवें नम्बर पर बधाणी बोली है, जो पिंडर व नंदाकिनी के आस-पास बधाण पट्टी कहलाती है, वहां बोली जाती है। छटे नम्बर पर लोह्ब्या बोली आती है, जो राठ से संलग्न बिनसरगैरसैण में बोली जाती है। सातवें नम्बर पर सलाणी बोली आती है, जो मैदान व पहाड़ का मिलान करती हुई बोली जाती है। इसे बावर क्षेत्र में कठमाली भी कहा जाता है। आठवें नम्बर पर गंगपरिया बोली आती है, जो टिहरी गढ़वाल में उपबोली के नाम से प्रचलित है। अंतिम बोली मांझ कुमैय्या व कच्च  कुमैय्या कहलाती है इस बोली में गढ़वालकुमाऊँ दोनों क्षेत्र की बोलियाँ शामिल हैं।
इसके अलावा जौनसारी, रवांळटी, जौनपुरी, भोटिया, बंगाणी, बावरी इत्यादि लगभग दर्जन भर और बोलियाँ हैं जो हर क्षेत्र में अपनी बोली बदल देती हैं जिन्हें बोली में शामिल नहीं किया गया।

कुमाऊं क्षेत्र में बोली जाने वाली बोलियाँ 

वहीँ कुमाऊँ में अस्कोटी बोली पिथौरागढ़ के सीरा क्षेत्र के आस-पास बोली जाती है। इस पर सीराली, नेपाल और जोहरी बोलियों का अधिक प्रभाव है। दूसरे नम्बर पर सीराली बोली आती है, जो पिथौरागढ़ के अस्कोट के पश्चिम और गंगोली के पूर्व के क्षेत्र में बोली जाती है। तीसरी बोली सोर्याली कहलाती है जो पिथौरागढ़ जनपद के पूर्व में काली नदी, दक्षिण में सरयू, पश्चिम में पूर्वी रामगंगा और उत्तर में सीरा क्षेत्र में बोली जाती है। इस पूर्वी कुमाऊं की सबसे प्रचलित बोली भी कहा जाता है। चौथे नम्बर पर कुमैय्या बोली आती है, जो काली कुमाऊँ क्षेत्र की मानी जाती है, जिसे कुमैय्या या कुमाई भी कहा जाता है। यह बोली पश्चिम क्षेत्र में देवीधुरा, उत्तर क्षेत्र में पनारसरयू पूर्व में काली नदी आर पार, दक्षिण में टनकपुर लोहाघाटचम्पावत तक बोली जाती है। यह मध्ययुगीन काल या कुमाऊं के चंद राजवंश की राजभाषा का दर्जा प्राप्त मानी जाती है। पांचवे नम्बर पर गंगोली बोली गंगोलीहाट के आस-पास पश्चिम में दानपुर, दक्षिण में सरयू, उत्तर में रामगंगा, पूर्व में सोर घाटी तक फैली है। छटे नम्बर पर हम दनपुरिया बोली रख सकते हैं जो बागेश्वर जनपद के दानपुर परगने की बोली कहलाती है। इसके उत्तर में जोहारी, पश्चिम में गढ़वाली, पूर्व में सोर्याली तथा दक्षिण में खसपर्जिया बोली के क्षेत्र पड़ते हैं। सातवें नम्बर पर खसपर्जिया जिस पर कुमाऊँ के खस जाति का प्रभुत्व रहा है, यह बारामंडल परगने की खसिया बोली भी कही जाती है। आठवें नम्बर पर हम चोगर्खिया बोली शामिल कर सकते हैं जो काली कुमाऊँ के उत्तर पश्चिम से लेकर पश्चिम में बारामंडल परगने व उत्तर में गंगोली क्षेत्र तक बोली जाती है। नवीं बोली के रूप में पछाई आती है, जो पाली-पछाऊँ, फल्दाकोट, द्वाराहाट, मासी, चौखुटिया इत्यादि की प्रमुख बोली रही है। इस पर गढ़वाली बोली का ज्यादा प्रभाव रहा है। अगर यह कहा जाय कि गढ़ कुमाऊं सीमावर्ती क्षेत्र में यह बोली दोनों तरफ बोली व समझी जा सकती है तो कोई दोराय नहीं है। अंतिम बोली के रूप में रौ आती है इसे रौ-चौभेंसी भी कहा जाता है जो पूर्वी नैनीताल के रौ और चौभैंसी क्षेत्र में बोली जाती है।

इसके अलावा मैदानी व पहाड़ी क्षेत्र में अल्मोडिया, बाउरी तथा पिथौरागढ़ के मुनस्यारी, धारचुला इत्यादि क्षेत्रों में बोली जाने वाली रजबारी, भूटिया, नेपाली इत्यादि कई अन्य बोलियाँ हैं, लेकिन इन्हें बोली का दर्जा क्यों नहीं मिला यह हैरत की बात है।

इसके अलावा गढ़वाल व कुमाऊं के तराई में बोली जाने वाली बोली थारू, भांवरी, कुमैय्या व भाषा हिंदी, उर्दू और अवधि है

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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