खबर का असर…बबली की मदद को आगे आये सोSहं हैरिटेज एंड आर्ट सेंटर के समीर शुक्ला!
(मनोज इष्टवाल)
विगत दिन छपी हिमालयन डिस्कवर की खबर “मौत परिवार निगलती रही…! और रजाई में लिपटी १४ बर्षीय बबली यह सब देखती रही!” का संज्ञान लेते हुए सोहम हैरिटेज एंड आर्ट सेंटर मसूरी के समीर शुक्ला ने ट्वीट किया “Manoj भाई, इतना पता करिए कि इस बच्ची का अब अभिवाहक कौन है? ताकि मैं सीमित संसाधनों में से इसकी शिक्षा के लिए कोई सीधा प्रबंध कर सकूं!” यह बात समीर शुक्ला द्वारा अपनी पत्नी कविता शुक्ला के “शक्ति इम्पावरमेंट थ्रू एजुकेशन” नामक पेज पर की गयी पोस्ट पर कही गयी! कविता शुक्ला स्वयं भी समाजिक गतिविधियों में अपना योगदान देती आई हैं और इस परिवार को उत्तराखंड इतना रास आया कि यह अपनी लखनऊ कानपुर की प्रॉपर्टी छोड़ छाड़कर मसूरी आ बसे!
समीर यहीं नहीं रुके उन्होंने लिखा- The lone survivor of Budha Kedar Cloud burst is our #Social_Responsibility.
I have requested Manoj Istwal ji for her contact person ( guardian) and some other gentleman from Ghansali to enquire and update the actual condition.
#I_take_responsiblity_of_her_education
कई दफा हम जब आक्रोश में आकर लिखते हैं कि उत्तराखंड में पहाड़ से बसने वालों के लिए कोई जगह नहीं तब ऐसे उदाहरण सामने आते हैं कि खुद ही शर्मसार होना पड़ता है! जाने पहाड़ी समाज में कितने अरबपति लोग पहाड़ से बाहर देश में व विदेश में जा बसे हैं लेकिन यहाँ के जज्बातों की पीड़ा के लिए उनके बढ़ते हाथ कहाँ थम जाते हैं इसका ज्ञान शायद ही हमें कम होता है! ऐसा नहीं है कि यहाँ आपदा काल में लोगों ने इंसानियत का फर्ज नहीं अदा किया ! दुबई रह रही पहाड़ की बेटी व सामाजिक कार्यकर्ता गीता चंदोला ने केदार आपदा के बाद कई बार आपदा प्रभावित क्षेत्रों का भ्रमण किया व वहां के कई बच्चों को शिक्षा देने का जिम्मा भी उठाया! लेकिन वह त्रासदी विश्व भर के मानचित्र में थी यह त्रासदी इसलिए छोटी नजर आई क्योंकि इसमें सिर्फ बेटी का पूरा परिवार तबाह हुआ!
उम्मीद की जा सकती है कि समीर शुक्ला की इस अपील का असर पड़ा होगा और और भी कई हाथ मदद के लिए आगे आये होंगे! सरकारी इमदाद अभी सरकारी कागजों में उलझी पड़ी है और उसका अनुमान जरुर लगाया जा रहा होगा कि क्या और कितनी घोषणा की जा सकती है! लेकिन समीर शुक्ला ने जिस तरह बबली की शिक्षा के लिए हाथ बढाने की बात कही है वह यकीनन समाज की नजर में ऐसे ब्यक्ति व परिवार के प्रति सहज ही सम्मान पैदा करवा देता है!
आपको जानकारी दे दूं कि समीर शुक्ला व कविता शुक्ला ने सोहम हैरिटेज एंड आर्ट सेंटर के माध्यम से मसूरी में उन सभी वस्तुओं का जमावड़ा किया है जो गढ़वाल की पुरातन लोक संस्कृति के द्योतक हैं! उन्होंने पलायन कर चुके प्रवासियों को सन्देश देने के तौर पर जहाँ सुदूर के किसी गाँव से पहाड़ के वैभव की बसावट रही तिबारी को मसूरी में लाकर स्थापित किया वहीँ यह सन्देश भी दिया कि संसाधनों की दौड़ खत्म हो गयी है तो लौट आओ पहाड़ क्योंकि यहाँ वह सब कुछ है जो विश्व के किसी क्षेत्र में नहीं मिल सकता!
समीर शुक्ला ने बबली की शिक्षा के लिए जिस तरह आगे आकर हाथ बढाए हैं क्या उत्तराखंड सरकार भी कोट गाँव बूढाकेदार की बबली के लिए उसकी मनोस्थिति के लिए कुछ बेहतर करने की सोच रही है? प्रश्न यह आकर खड़ा होता है!