क्या बदरीनाथ धाम में किया जा सकता है अस्थिकलश विसर्जन! कहीं हम पाप के भागी तो नहीं बनने जा रहे हैं!
यूँ तो देश के कई पूर्व प्रधानमंत्रियों के अस्थिकलश विसर्जन हर काल में किये जाते रहे चाहे वह प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू रहे हों या इंदिरा और राजीव गांधी! जाने क्यों हर काल में अस्थियों के विसर्जन की एक राजनैतिक परम्परा राजनैतिक लाभ लेने के लिए शुरू होती रही! पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की अस्थियों की राख हिमालय में हैलीकाप्टर के माध्यम से फैंकी गयी और अब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के अस्थिकलश की राख जाहिर सी बात है राजनैतिक लाभ के लिए देश की 100 नदियों में प्रभावित की जा रही है!
इसे अस्थिकलश राख बोलना ज्यादा भला रहेगा क्योंकि मानव शरीर पर कुल 206 हड्डियां होती हैं ऐसे में फिर चिता में जलने के लिए बचता क्या है! यकीनन जो अस्थि विगत दिनों हरिद्वार में प्रभावित की गयी वही पूर्व प्रधानमंत्री का अस्थिकलश कहा जाना उचित रहेगा बाकी जितने भी अस्थिकलश पूरे देश में नदियों में प्रवाहित होने के लिए जा रहे हैं उनमें अस्थियों की राख होगी और यह कहा भी जाना चाहिए ताकि जनता इस पर विश्वास व आस्था रख सके!
बहरहाल मुद्दा यह नहीं है कि यह अस्थिकलश राख है या अस्थियाँ! मुद्दा यह है कि विगत शुक्रवार को भाजपा के उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष की अगुवाई में ऋषिकेश, बदरीनाथ, बागेश्वर और हल्द्वानी में पूर्व प्रधानमन्त्री की अस्थियाँ विसर्जित होंगी! सब तो ठीक है लेकिन जहाँ आस्था का प्रश्न आता है वहां यह है कि क्या विष्णु द्वार पर अस्थि विसर्जन हो सकता है?
जहाँ तक मेरी जानकारी है वह यह है कि सिर्फ माणा गाँव के लोग सरस्वती व अलकनंदा के संगम पर अपनी अस्थिविसर्जित करते हैं या वही उनका शमशानघाट हुआ जबकि बामणी गाँव बदरीनाथ के लोग खीरों व अलकनंदा संगम से पहले व अन्य क्षेत्रवासियों का श्मशान बिष्णु प्रयाग में है! रावल की अगर मृत्यु हो जाती है तब उनकी चिता भी मंदिर से लगभग ५०० मित्र नीचे बामणी गाँव की ओर सजाई जाती है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार तप्त कुंड नारद कुंद व उसके आस-पास के क्षेत्र में यह क्रियाएं नहीं की जा सकती हैं!
ऐसे में प्रश्न बनता है कि क्या उत्तराखंड प्रशासन या बद्रिकेदार मंदिर समिति व पंडा समाज इस सब को दृष्टिगत रखते हुए अस्थिविसर्जन में सहयोग कर पूर्व प्रधानमंत्री की आत्मा की मुक्ति के लिए कार्य करेगा?
मुख्यतः यह लेख लिखने का अभिप्राय मेरा यही है कि सोशल साईट पर कई लोगों ने इस सन्दर्भ में टिप्पणियाँ करनी शुरू कर दी थी कि बदरीनाथ में यह नहीं हो सकता वह नहीं हो सकता! अत: मैं इस लेख के माध्यम से जितना मेरे संज्ञान में था सोशल साईट पर अपनी रूचि दिखा रहे भद्रजनों से अपील स्वरूप कहूंगा कि यह धर्म और आस्था से जुडा बहुत बड़ा मसला है और कोई भी सरकार कभी ऐसी लापरवाही नहीं बरतेगी जिस से उसका जनाधार खिसककर रसातल पर जाए! यों भी देश के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी धर्म व आस्था के साथ देवभूमि का सम्मान करते हैं अत: यह तय है कि बदरीनाथ में अस्थि विसर्जन से पूर्व सरकार उस हर पक्ष पर गौर करेगी जिस से कोई खामख्वाह का विवाद उत्पन्न न हो! यूँ भी कहा जाता रहा है कि-“जले बिष्णु, थले बिष्णु, बिश्नुर्बिष्णु हरे-हरे!”