क्या प्रदेश में होम स्टे योजना सरकार की ईमानदार पहल समझी जाय! यदि हाँ तो किन कारणों से लाभान्वित नहीं हो पा रहे ग्रामीण!
(मनोज इष्टवाल)
सब्जबाग़ दिखाने और जमीनी हकीकत में जमीन आसमान का अंतर होता है! जब प्रदेश सरकार ने घोषणा की थी कि सन 2020 तक प्रदेश भर में 5000 होम स्टे बनाने का लक्ष्य रखा था तब लग रहा था कि प्रदेश भर में 5000 परिवार लाभान्वित होंगे तो सीधी सी बात है कि कम से कम 20 से 25 हजार लोग सीधे प्रथम चरण में रोजगार से जुड़ेंगे ! धीरे धीरे यही आंकडा पंचवर्षीय योजना की भांति लाखों में पहुंचेगा और फिर से गाँव आबाद होंगे पहाड़ की रौनक बहुरेगी! लेकिन अभी तक ये सारे आंकड़े किताबी लग रहे हैं व यह योजना उस गरीब से कोसों दूर लग रही है जिसे इसकी आवश्यकता है!
(फाइल फोटो)
होम स्टे योजना की फोर्मल्टीज इतनी हैं कि आम आदमी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते काटते महीनों गुजार दे फिर बैंक में जाए तो बैंक उसकी आय के सोर्स तलाशना शुरू करता है! कहाँ 25 लाख की योजना और कहाँ बमुश्किल तीन से पांच लाख बैंक ऋण मंजूरी मिलती है उसमें भी जूता रगड़ाई कमीशनबाजी इत्यादि पर एक से तीन माह योंहीं गुजर जाते हैं ! औसतन प्रतिव्यक्ति ध्याड़ी अगर जोड़ी जाय तो वह 500 रूपये बैठती है! अर्थात 45 हजार तीन माह की कमाई से भी आम आदमी जुदा रहता है! कागज़ बनाने में खर्चा पांच हजार व फिर बैंक व सरकारी अफसर दफ्तर कमीशन लगाकर 10 हजार और खर्च! इसके बाद भी यह जरुरी नहीं कि आपको आपका होम स्टे लोन मिल ही जाय क्योंकि यह सब प्रक्रिया अगर देखि जाय तो सरकारी दफ्तरों के उन मातहतों द्वारा तैयार की हुई लगती है जिन्होंने ग्रामीण परिवेश कभी देखा ही नहीं! उपर से आपको जो होम स्टे फोर्मेट दिया जाता है उसमें आपके पास बिजली पानी कनेक्शन ही नहीं बल्कि पूरा होम स्टे मैप पहले अप्रूव करवाना होगा! जितने भी मानक सरकार द्वारा तय किये गए हैं वे पूरे करने होंगे वरना आपको मिलने वाला ऋण आपसे वापस लिया जाएगा! अब ये बताइये कि यह फोर्मेट आम जनता के लिए बना है या उस व्यक्ति के लिए जो पहले ही साधन सम्पन्न है व वह कहीं भी कभी भी कोई भी प्रॉपर्टी खरीदकर सरकारी ऋण के 25 लाख में से 25 लाख आराम से बैंक से ले सकता है क्योंकि उसके आजू-बाजू इतने मजबूत होते हैं कि बैंक को उसे फाईनेन्स करने में जरा भी तकलीफ महसूस नहीं होती!
(फाइल फोटो)
ज्ञात हो कि प्रदेश सरकार द्वारा होम स्टे योजना वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली स्वरोजगार एवं 13 डिस्ट्रिक 13 न्यू-डेस्टीनेशन योजनाओं को उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों से हो रहे निरंतर पलायन को देखते हुए बनाया गया है लेकिन पलायन की सतत प्रक्रिया जारी है क्योंकि यह सभी योजनायें जरुरतमंदों की पहुँच से कोसों दूर हैं! वहीँ प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली पर्यटन स्वरोजगार योजना में लाभार्थियों का लक्ष्य 400 रखा गया था, जिसमें 334 आवेदन 13 जनपदों में प्राप्त हुए, जिनमें से 269 आवेदन पर जिला चयन समिति द्वारा संस्तुति की गई तथा बैंको द्वारा 104 आवेदन पर ऋण स्वीकृत किये गये। मुख्य सचिव ने बैंको में लम्बित 144 आवेदन पत्रों में बैंको से समन्वय कर ऋण स्वीकृत कराने के निर्देश दिये। लेकिन नतीजे सिफर क्योंकि बैंकों ने अपने नियमों में ज़रा भी ढील नहीं दी जिसका परिणाम यह है कि सिर्फ एक चौथाई लोगों तक ही इस योजना का लाभ पहुँचने की सम्भावना है और ये एक चौथाई वे लोग हैं जिन्हें अपने अन्य धंधों में इन पैंसों की जरुरत है और मात्र सब्सिडी खाना खिलाना ही उनका लक्ष्य होता है जरूरतमंद को यहाँ भी ठेंगा ही मिलता है!
वहीँ दूसरी ओर 13 डिस्ट्रिक 13 न्यू-डेस्टीनेशन योजना मुख्यमंत्री जी की महत्वकांक्षी योजना जरुर कही जा सकती है लेकिन अभी धरातल में इसके परिणाम भी इन दो सालों में सिर्फ एक चौथाई से भी कम दिखाई पड़ रहे हैं क्योंकि अभी तकअल्मोड़ा के सूर्य मन्दिर थीम, नैनीताल के मुक्तेश्वर हिमालय दर्शन, पौड़ी के सतपुली एवं खैरासैण झील नौका विहार एवं पिकनिक, देहरादून के लाखामण्डल महाभारत सर्किट, हरिद्वार के बावन (52) पीठ भगवती 52 शक्ति पीठ थीम पार्क, उत्तरकाशी के मोरी हरकीदून पर्यटन एवं ट्रैकिंग, टिहरी के टिहरी झील वाटर स्पोर्ट्स, उधमसिंह नगर के द्रोण सागर हरिपुरा जलाशय जलक्रीडा एवं होली, चम्पावत के पाटी-देवीधुरा पर्यटन क्षेत्र, बागेश्वर के गरूड़ वैली हिमालय दर्शन, चमोली के गैरसैण- भराडीसैण कोरपोरेट डेस्टीनेशन इत्यादि पर अखबारी कागजों में योजनाओं का प्रारूप दिखने को मिल रहा है उन्हें धरातल तक लाने में कितने बर्ष लगेंगे कहा नहीं जा सकता।
सबसे महत्वपूर्ण जो योजना पहाड़ के पहाड़वासियों की दृष्टि से दिखाई देती है वह है होमस्टे योजना ! हर उस उत्तराखंडी व्यक्ति की पीड़ा थी कि शहर की भागदौड़ की जिन्दगी, प्रदूषण भरी जिन्दगी और पारिवारिक असुरक्षा की शहरी जिन्दगी से अब इस होम स्टे योजना के माध्यम से उन्हें निजात मिलेगी! वह गाँव लौटेंगे! गाँव में फिर से अपने ताने बाने बुनेंगे क्योंकि रोजगार उनके दरवाजे पर होम स्टे योजना के माध्यम से दस्तख देने पहुँच गया है ! हर उत्तराखंड का पहाड़ी जनमानस इस बात से बेहद खुश था व मन ही मन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार का शुक्रिया अदा कर उनके दृढ निश्चय व संकल्प की प्रशंसा करता दिखाई दे रहा था लेकिन सरकारी सिस्टम भला कहाँ सुधरने वाला है! पहाड़ का आदमी पहाड़ से दूर करना मानो इस सिस्टम में शामिल हो क्योंकि होम स्टे योजना के मापदंडों और मानकों को पूरा करते करते आम पहाड़ी की चप्पलें घिसती जा रही हैं लेकिन लाभ वो व्यवसायी ले जा रहे हैं जिनके पास पहले ही 36 व्यवसाय पाइप लाइन में हैं! आपको बता दें कि होम स्टे योजना में इस वर्ष का लक्ष्य 2 हजार निर्धारित था, जब की अब तक जनपदों में कुल 1151 आवेदन पत्र प्राप्त हुये जिनमें से 802 को पंजीकृत किया गया तथा 349 प्रकरण पर कार्यवाही गतिमान है। अब आप ही बताइये कि आप यहाँ भी 50 प्रतिशत पहुंचे हैं जबकि दो साल गुजर चुके हैं! और ये भी सरकारी आंकड़े हैं धरातल पर ये 50 प्रतिशत हों इसमें शंका ही शंका है समाधान की कहीं गुंजाइश नहीं दिखती क्योंकि ये आंकड़े मुख्यमंत्री या पर्यटनमंत्री सहित मंत्रीमंडल व विधायकों को थमाने वाला ऐसा कागजी झुनझुना हो सकता है जो कागजों में ही तस्वीर पेश करता हो!
शहर छोड़कर अपने गाँव उखीमठ में होमस्टे योजना क्रियान्वित करने वाले कैलाश पुष्पवाण सरकार के लिए आइना साबित हो सकते हैं जिन्होंने अपने दम पर अपने घर में होम स्टे योजना का बहुत पहले शुभारम्भ स्वयं के संसाधनों से कर लिया था व आज वह उस योजना से न सिर्फ अपना परिवार पाल रहे हैं बल्कि अन्य ग्रामीणों को भी रोजगार दे रहे हैं! कैलाश कहते हैं सर-सिर्फ रजिस्ट्रेशन नम्बर बढाने से क्या होगा, विगत जून माह में रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन हुए हैं लेकिन होम स्टे कैसे ढांचागत हो उसकी वास्तविक तस्वीर दिखाई नहीं दे रही है,कई बार मेल व फोन काल करने से भी फायदा नहीं हुआ इसलिए ज्यादा उम्मीद क्या करें!.
भले ही प्रदेश सरकार के निर्देशों के अनुसार नए गृह आवास विकसित करने के अतिरिक्त पूर्व से होम की स्टेट योजना के अंतर्गत पंजीकृत पुराने भवनों की आंतरिक साज सज्जा, उनका विस्तार, नवीनीकरण, सुधार एवं शौचालयों के निर्माण आदि के लिए योजना का लाभ अनुमन्य किया गया है। इसके बावजूद भी जितना आसान यह सिस्टम कागजों या खबरों में दिखाई देता है वास्तविक रूप में है नहीं! प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भले ही पंडित दीन दयाल होम स्टे योजना के प्रारूपों में संसोधन करने की बात कही है ताकि यह योजना ख़ास से आम को लाभ पहुंचा सके लेकिन विभागीय कर्मचारियों अधिकारियों व बैंकों की सांप जैसी कुंडली मारने से यह योजना आम जन तक नहीं पहुँच पा रही है यह अकाट्य सत्य है! रही बात होम स्टे योजना के सन 2020 तक 5000 होम स्टे बनाने की तो आज ही राज्य सरकार गोपनीय तरीके से समीक्षा करवा ले तो दूध का दूध पानी का पानी सामने आ जाएगा क्योंकि आंकड़ों की होम स्टे योजना भी ठीक उसी तरह है जैसे प्रदेश के कई जिले खुले शौचालय मुक्त या पूरे शौचालययुक्त कागजों में अपनी तस्वीर बयान करते हैं!