Saturday, July 12, 2025
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क्या नरेंद्र सिंह नेगी 21 साल पहले ले आये थे गढ़वाली गजल प्रयोग में।

क्या नरेंद्र सिंह नेगी 21 साल पहले ले आये थे गढ़वाली गजल प्रयोग में।
(मनोज इष्टवाल)
मौसम की हटधर्मिता देखिये बाहर झमाझम बारिश और इधर अभी अभी काम पूरा करके अंगड़ाई ली तो देखा सुबह के 00:57 बज गए हैं। उफ्फ लाइट भी गई कुर्सी खींची और मुकेश कुमार गुजराती ने फेसबुक पर जो लिंक भेजा उसमें सिर्फ तबला व ढोलक दिखाई दिया। क्या है कौन बजा रहा है पता नहीं।
कुर्सी खींचकर बाहर बरामदे में आकर जब उस लिंक को क्लिक किया तो दिमाग का बल्ब फ्यूज हो गया। फिर सुना और फिर तो रहा नहीं गया । बहुत दिनों बाद कांच का ग्लास बाहर निकल आया। फ्रीज से आइस और अलमीरा से जॉनी वॉकर का काला ठप्पा। आइस आधी गिलास व मात्र 30 एमएल खुराक । अरे भाई इस समय आप भी ऐसे मौसम में ऐसी अदाओं से भरे इस गीत को सुन लो तो रंगत ही कुछ और हो।


1993 में यह गीत नेगी जी ने काशी विश्व्नाथ की तपस्थली उत्तरकाशी में उस दौर में लिखी जब वे सूचना विभाग में यहां कार्यरत थे और इसी दौर में उनकी एक कालजयी रचना “तेरु भाग त्वे दगड़ी, मेरु भाग मैं दगड़ी! दगड़ू नि रेणु सदानी दगडया।” भी आई थी जो उन्होंने अपनी अर्धांगनी श्रीमती उषा नेगी के पौड़ी में सख्त बीमार होने पर लिखी थी। लेकिन जब आज यह गाना सुना और उसका अंदाजे-बयां देखा तब महसूस हुआ कि यह गीत नहीं एक ऐसी मौशकी है जो गजल कही जा सकती है।

हो न हो ऐसा पहले भी कोई गीत हमसे फिसल गया हो जो गजल के स्वरूप में उनके द्वारा पहले गायी गई हो क्योंकि उनके लैंसडाउन के मित्र कहते थे कि नरू (नरेंद्र सिंह नेगी ) पहले गायक नहीं बल्कि तबला वादक थे और हिंदी गजल अपने अंदाज में जब गाते थे तब शमां ही कुछ अलग होती थी। उनकी पहली कैसेट भी यहीं से बनी थी।
लयूँ छौ भाग छांटी की, देयूँ छौ व्हेकु अंज्वळयूँन, सलाह बिरणी सगौर अपुडु नि खै जाणि क्य कन तब।” अहा पंक्तियां क्या कहनी। सिर्फ यह स्थायी नहीं बल्कि इसकी हर आन्तरा जीवन का वह सच बयान करती हैं जिसे सुनने के लिए यकीनन ऐसा मौसम, ऐसी मौश्कि व ऐसा सऊर चाहिए जहां आप दिल की बात दिल से करें व वह मुंह के रास्ते बहती हुई फिजाओं को महका दे। बशर्ते लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी को ऐसे हाव भाव भंगिमा के साथ आप गाते देख सको।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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