(वरिष्ठ पत्रकार वेद विलास की कलम से)
हम हिंदू हैं। और हिंदू रितिरिवाज से रहते हैं। और इस धर्म की अच्छाइयों और कमियों सर्कीणताओं को भी अनुभव करते हैं। हमें खुशी है कि समय के साथ हिंदु धर्म की कुरीतियों का उन्मूलन किया गया ।
एक हिंदू होने के नाते जीवन के कई अनमोल क्षण हमने रफी साहब , नुसरत साहब , नूरजहां के अनमोल गीतों को सुनने में दिए। कई अनमोल क्षण हमने नौशादजी और खैय्याम साहब के संगीत को सुनने में दिए। मगर हमने मदन मोहन और शंकर जयकिशन को भी सुना । हम लक्ष्मी प्यारे की धुनो मे खोए तो साहिर नीरज को पढते जीवन की लय सीखे । बडे गुलाम अली साहब को सुना। गालिब फैज को पढा, निदा साहब को पढा । पढा ही नहीं गुणा भी। रसखान जायसी को भी पढा तो अमीर खान की शास्त्रीयता को भी सुना। दिलीप साहब की अदाकारी को सलाम किया, कादर खान के सामने नतमस्तक हुए। वीर अब्दुलहमीद के शौर्य गाथा पर सिर झुकाया। हमने मधुबाला के अभिनय को देखा मीनाकुमारी के अभिनय को सराहा। हमने ए आर रहमान के संगीत को चांद सितारों पर रखकर सुना । हम अजितपाल ही नहीं जफर इकबाल और शाहिद की हाकी को देख कर भी मचले। हमने सुफियाना कलाम सुने वाणी जयराम के गाए मीरा के भजन सुने। हमने तो रफी साहब की मक्का में दी गई अजान को भी मन लगाकर सुना । बिल्कुल वैसे जैसे हरिओम शरण के भजनो को सुनते है । हमने निर्मल वर्मा को भी पढा और कैफी आजमी के शब्दों से भी गुजरे।
हमने वो सब कुछ किया जो हमें एक सच्चे हिंदू और नागरिक के नाते करना चाहिए था और मन से किया। हिंदुओं ने अंतर न किया। डा. कलाम को संत माना । हिंदुओं ने रफी साहब और किशोर कुमार में अंतर नही किया। जितना सम्मान गुंडप्पा विश्वनाथ को दिया उतना ही अजहरउद्दीन को भी! जितना सम्मान रविशंकर के सितार को दिया उतना ही बिसमिल्लाह खान की शहनाई को भी । हिंदुओं ने लता मंगेशकर को स्वरकोकिला कहा तो नूरजहां को मल्लिका ए तरन्नुम।
लेकिन… क्या यही सम्मान हम मुस्लिम होने के नाते कसाब के लिए रखें, अफजल के लिए रखें। भारत के लिए नफरत फैलाते बाजवा और इमरान खान के लिए भी रखें। ओबेसी जैसो के लिए रखें । देश के फूंकते बसों को जलाते बच्चों को डराते दंगाइयों के लिए रखे।
मत कहिए हमें धर्मनिरपेक्ष……! हम जो हैं वही हैं। आपके सर्टिफिकेट हमें नहीं चाहिए। आपके सर्टिफिकेट अगर बस फूंकते दंगाइयों की वाहवाही से मिलते हों तो आपके सर्टिफिकेट हमारे जूते की नोक पर! आपके सर्टिफिकेट अगर आतंकियों के जनाजे में जाकर और भारत तेरे टुकडे होंगे नारों को लगाकर मिलते हों तो आपके धर्मनिरपेक्षता के सर्टिफिकेट हमारे जूते के नोक पर! बहुत खेल लिया आप लोगों ने इन शब्दों पर। लगभग सत्तर साल आपने हमसे इन्ही शब्दों पर खेला और जीवन की मौज ली। ये लिपे पुते चेहरे वाले फिल्मी जो आपदा भूकंप बाढ मे जेब से अठ्ठनी नही निकालते हैं हमे धर्मनिरपेक्षता और मानवता की परिभाषा बताने चले हैं ।
समय बदल चुका है। छूट न आपको देंगे न आपके विरोधियों को।
मगर हम अगर तीन तलाक को रद्द करने के पक्ष में हों ( जो मुस्लिम महिलाओं मां बहनों के हित में हो ) हम अगर नागरिकता संसोधित कानून के पक्ष में हों ( जिससे मुस्लिमों का कोई लेना देना नहीं ) तो हम लांछिंत हो जाते हैं। वोटों की मक्कारी करने वाली तथाकथित राजनीतिक पार्टियां जुमले कसती है, अनाप शनाप कहती हैं ।
हम चमचों और भक्तों दोनों से सताए जाते हैं और दोनों की खुराफात हम खूब जानते हैं।
हमें इनका डर नहीं न परवाह..! और हम कहने की स्थिति में हैं कि समय बदल चुका है अब डराना छो़ड दो। देश में राज करने के लिए सस्ती लंपडरी छोड दो। हम चमचो और भक्तों दोनों से सताएं जाते हैं और दोनों की खुराफात हम खूब जानते हैं।
हमें इनका डर नहीं न परवाह । हां … हम हिंदू हैं इसका हमें अफसोस नहीं । क्या किसी मुस्लिम को मुस्लिम होने, किसी ईसाई को ईसाई होने का कोई अफसोस है। एक नही अनेको मुस्लिम ईसाई पारसी हमारे दोस्त हैं। परिवार जैसे संबंध है । तुम जिनका जीवन हर सैकिंड वोट की गणित पर बीतता है हमें धर्मनिरपेक्षता सिखाने आ गए।