Friday, November 22, 2024
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कंधार विमान अपरहण काण्ड… पहाड़ की वह इकलौती बेटी जिससे पूछताछ करने अमेरिका से नैनीताल पहुंची एफबीआई..!


* डॉ. जोशी बोली- कम ऑन..इफ यु वांट टू किल अस..! स्टार्ट फ्रॉम मी!

*अरुण नैथानी के मौजे पहनकर चला गया आतंकी!

*आज भी ग्लानि होती है कि काश..कमांडो कार्यवाही होती और मारे जाते सारे आतंकी!

*आतंकी बोला – मोहतरमा आपको डर नहीं लगता क्या ? मैं बोली- क्या आप मार ही तो दोगे!

(मनोज इष्टवाल)                 

सचमुच वह क्या मंजर रहा होगा! वह तो सिर्फ और सिर्फ उस गाथा का बखान कर रही थी जो 24 दिसम्बर 1999 में प्लेन हाईजैक से जुडी थी लेकिन रोंगटे मेरे खड़े हो रहे थे जो सिर्फ सुन रहा था! वह बोली- कम ऑन..इफ यु वांट टू शूट अस..! स्टार्ट फ्रॉम मी! (आओ अगर तुम हमें मारना चाहते हो तो मेरे से शुरुआत करो)! यह घटना इन्डियन एयरलाइन्स  फ्लाईट 814 (वीटी-ईडीडब्ल्यू) (VT-EDW) का अपहरण से जुडी है जिसे शुक्रवार, 24 दिसम्बर 1999 को  लगभग 05:30 बजे नेपाल के त्रिभुवन हवाई अड्डे से टेक ऑफ होने के तुरंत लगभग 10 मिनट के अंदर पाकिस्तानी आतंकी इब्राहिम अतहर, बहावलपुर पाकिस्तान, शाहिद अख्तर सईद, कराची पाकिस्तान,सन्नी अहमद काजी, कराची, पाकिस्तान मिस्त्री जहूर इब्राहिम, कराची पाकिस्तान, शकीर, सुक्कुर, पाकिस्तान ने अपहृत कर दिया था!

इस पूरी घटना की जानकारी देने वाली उत्तराखंड की एक ऐसी महिला का नाम सर्वोपरी रहा जिसकी तलाश करती अमेरिका की सबसे जानी मानी खुफिया एजेंसी एफबीआई के लोग नैनीताल तक पहुँच गए और उस महिला ने निडरता के साथ हर सवाल का जबाब दिया! उस महिला का नाम है डॉ. अनिता जोशी!

डॉ. अनिता जोशी के साथ साक्षात्कार लेते समय मनोज इष्टवाल

मूलतः पौड़ी गढ़वाल की निवासी डॉ. अनिता जोशी बताती हैं कि उनका परिवार मुंबई रहता था इसलिए उनका पूरा बचपन वहीँ गुजरा लेकिन वह उतनी ही सुंदर गढ़वाली बोल लेती हैं जितनी ठेठ गढ़वाल में रहने वाला गढ़वाली! पांच भाषाओं की जानकार डॉ. अनिता मराठी, गुजराती, अंग्रेजी, हिंदी और गढ़वाली की बहुत अच्छी जानकार हैं! उन्होंने बताया कि वे तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नर आरएस टोलिया जी की पत्नी श्रीमती मंजुला टोलिया के साथ तब नेपाल में एक कांफ्रेस में शामिल होने गयी थी जो 21 से 23 दिसम्बर 1999 तक वहां की आईसी मॉड संस्था द्वारा आयोजित की गयी थी! तब उनका एक एनजीओ था जिसका नाम ग्राम भारती था लेकिन साथ में अनरोरी एग्रो हर्बो मेडिका लिमिटेड के नाम से उनके पत्नी श्रीमान जोशी जी द्वारा स्थापित कम्पनी की ओर से इस कार्यशाला में शिरकत कर रही थी जो जड़ी-बूटियों से निर्मित तेल बनाया करती है! हम तब इकोनोमी क्लास में सफर कर रहे थे!

डॉ. अनिता जोशी बताती हैं कि वह पल मुझे आज भी अच्छे से याद है जब हम ऊँची कंचनजंगा की हिमालयी शिखर के निहारते हुए आपस में बतिया रहे थे कि अचानक बिजिनेश क्लास से दो नकाबपोश युवा निकलते हैं और कहते हैं आप सबका अपहरण हो गया है इसलिए अपने सिर अपने घुटनों के नीचे डालो! हमें खाने के लिए कुछ पैक अभी अभी सर्व हुए थे जिन्हें फौरान गिराने का आदेश हुआ! हमने सोचा कि हो सकता है कल क्रिसमस डे है ये युवा कुछ शरारत कर रहे हों! लेकिन दूसरी बार चेतावनी देते हुए उनके हाथों में हथियार देख सबको सांप सूंघ गया! काफी देर तक घुटनों के बीच यूँहीं सिर डाले हम ऐसे दुबके हुए थे कि काटो तो खून नहीं! बस कानों में उनकी आवाज गूंजती कि जिसने भी ज्यादा चालाकी दिखाने की कोई की या कोई हरकत की वह अपनी मौत का जिम्मेवार खुद होगा! सचमुच ये युवा बमुश्किल 18-19 की उम्र के रहे होंगे! आखिर 15 मिनट बाद मैंने ज्योंहि हाथ ऊपर करके बोला- कि मुझे टॉयलेट जाना है ! तो वह दहाड़ता हुआ बोला- कोई टॉयलेट नहीं जा सकता! मैंने बोला- मेरे पेट में दर्द है तो उनमें से एक ने मुझे क्रोसिन पकड़ा दी! मैं उस पर चिल्लाती हुई बोली- बेवकूफ पेट दर्द है क्रोसिन क्यों दे रहा है! मैं एक डॉक्टर हूँ मैं जानती हूँ कि पेट दर्द में क्या दवाई खाते हैं! इसका यह असर हुआ कि मुझे वाशरूम जाने दिया गया!

इसके तुरंत बाद सबके लैपटॉप, पासपोर्ट, मोबाइल फोन जब्त कर लिए गए! तब चंद विदेशियों के पास मोबाइल हुआ करते थे! प्लेन की सारी विंडो नीचे गिरा दी गयी! सारा क्रू स्टाफ को पीछे की सीटों पर बैठा दिया गया! पूरा बिजनेशक्लास खाली करवा दिया गया और कुछ भारतीय व अंग्रेजों को लेजाकर वहां बंधक बना दिया गया! पूरे प्लेन में पिन ड्राप साइलेंस था! लखनऊ से दिल्ली जाने की जगह विमान आईसी-814 पर मौजूद मुख्य फ्लाईट अटेंडेंट अनिल शर्मा ने बाद में बताया कि एक नकाबपोश, चश्माधारी आदमी ने विमान को बम से उड़ा देने की धमकी दी थी और कप्तान देवी शरण को “पश्चिम की ओर उड़ान भरने” का आदेश दिया था!

डॉ. अनिता जोशी बताती हैं कि लगभग ढाई घंटे तक ऐसी ही पोजीशन में हम सिर टांगों के नीचे किये हुए रहे तो पता चला कहीं जहाँ लैंड हो रहा है! इस दौरान वे कहाँ किस से बात करते रहे और क्या क्या चलता रहा यह सब बिजनेशक्लास में होता रहा! बस आतंकियों से यही जानकारी मिलती रही कि आपकी सरकार इन्तजार करवाकर हमारा वक्त जानबूझकर जाया कर रही है! दरअसल लगभग 6 बजे यह जहाँ कुछ समय के लिए अमृतसर में लैंड हुआ जहाँ शायद इन्होने हथियारों की नोंक पर फ्यूल भरवाया और उड़ान भरकर लाहौर के लिए उड़ गए!

जानकार सूत्रों का कहना है कि यह अपहृत विमान लगभग 8 बजकर 7 मिनट पर लाहौर पहुंचा जहाँ उन्हें तेल नहीं मिला व उसे उतरने की इजाजत नहीं मिली! डॉ. अनिता जोशी बताती हैं किवे जबरदस्ती मुझे जबरदस्ती पकड़कर बिजनेश क्लास में ले गए जहाँ उनके अलावा दो 30-32 साल के और आतंकी थे व एक दरमियाने कद का चश्मा पहने आतंकी था जिसकी उम्र 40 के आस-पास रही होगी! वही इनका बॉस था व बाद में बताया गया कि यह मौलाना अजहर मसूद का भाई है!

वहां जाकर देखा तो मेरे होश फाख्ता हो गए क्योंकि वहां कुछ अंग्रेजों के हाथ, मुंह, पैर आँख बंधे हुए थे, साथ ही कुछ भारतीय भी थे उनमें एक युवा का गला रेता हुआ था जिसकी गर्दन से खून बह रहा था! यह 25 बर्षीय रूपन कात्याल था जो बेचारा हनीमून ट्रिप पर काठमांडो घूमने गया था! मुझे कहा गया कि इसका फर्स्ट ऐड करो! मुझसे जो बन पाया मैंने किया साथ ही सलाह भी दी कि यदि इसे तुरंत हॉस्पिटल नहीं ले जाया गया तो इसका बचना सम्भव नहीं है!

मैं समझ गयी थी कि ये पाकिस्तानी हैं फिर भी मैंने बेहद निडरता के साथ चश्मे वाले से प्रश्न  किया- क्या तुम पाकिस्तानी हो? उसने कहा- नहीं हम कश्मीरी हैं! फिर उसने उल्टा मुझसे पूछा- मोहतरमा, आपको डर नहीं लगता क्या! मैं इस से पूर्व सडक दुर्घटना में डेढ़ बर्ष पूर्व अपने पति की मौत देख चुकी थी व तब इसी असंजस में थी कि मौत कब आनी है कोई नहीं टाल सकता! उस दौरान मेरा बेटा मात्र 10 साल कुछ माह का था जो ऋषिकेश में बहन के पास था और मैं उसी से मिलने जा रही थी! मैंने जवाब दिया- क्या आप मार दोगे लेकिन इसके जबाब के स्थान पर उन्होंने एक आतंकी जिसका नाम शायद जहूर इब्राहम था की मुझसे फर्स्ट ऐड करवाई! जिसका पैर जख्मी था! उन्हें देखकर मुझे लग रहा था कि ये चलते फिरते मानव बम हैं क्योंकि उनके अंदर कोई भाव व भावनाएं नहीं दिखाई दे रही थी! उनका ब्रेन वाश जिहाद के नाम पर ऐसा किया गया था कि उन्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था!

अब मुझे कॉकपिट का वाशरूम जाने की इजाजत मिल गयी थी व मैं वहां इसलिए आ जा सक रही थी क्योंकि शायद उन्हें भी लग रहा था कि इसकी हमें जरुरत है! मैं जब बिजिनेश क्लास से फर्स्ट ऐड करके बाहर आई तो एक न्यूली मेरीड हाथ ने मेरी कलाई थाम ली! देखा तो वह रचना कत्याल थी ! रुपन कत्याल की हाल ही में शादीशुदा पत्नी! उसके चेहरे पर दयनीय भाव थे- मुझसे बोली- मैडम, मेरे पति कहाँ हैं! मैंने ढांडस बंधवाते हुए कहा – चिंता न करो वे ठीक हैं और दूसरे अन्य लोगों के साथ बिजनेशक्लास में हैं!

रात के पौने दो बजे हमें दुबई में लैंड करवाया गया जहाँ 180 यात्रियों में से 27 ऐसे लोगों को दुबई एअरपोर्ट पर उतारा गया जिनमें बूढ़े, बच्चे व अपंग शामिल थे! मुझे भी कहा गया कि तुम्हे भी जाना है तो जा सकती हो! मैंने कहा मेरे साथ मेरी सहेली भी हैं उन्हें भी मेरे साथ उतरने दीजिये! उन्होंने सख्ती से मना कर दिया तो मैंने भी सोचा देखी जायेगी! बिना मंजुला टोलिया मैडम के तो मैं उतरने से रही! मैंने अब तक अपने को मजबूत कर लिया था! मैंने यह जानबूझकर भी नहीं बताया था कि मंजुला मैडम कमिश्नर की पत्नी हैं वरना वे उन्हें ही उठा लेते!

सुबह 8 बजे अगले दिन जब हमारे जहाज को अफगानिस्तान के कंधार में उतारा गया तब ये आतंकी एके47 व ग्रिनेड लेके हमें चेतावनी देते रहते कि तुम्हारी सरकार हमारी मांगे नहीं मान रही है ! हम बारी बारी करके एक एक को मार देंगे! हमारे मासूम भाई जेल में बंद हैं उनके बारे में तुम्हारी सरकार कुछ नहीं कर रही है! यह घोषणा दहशत पैदा करने के लिए हर मिनट बाद हो रही थी! हम दो दिन भूखे प्यासे थे! सिर्फ और सिर्फ मौत हमारा पहरा दे रही थी! वह कब किधर से किसको आ जाए कोई नहीं जानता था! हमारे लिए बाहर क्या हो रहा है इस बात की कोई जानकारी नहीं थी बस गाड़ियों के चलने व शोर-शराबे की गूँज सुनाई दे रही थी! यह नारकीय जिन्दगी ऐसी थी कि न पानी न शौच इत्यादि! खाना तो बहुत दूर की बात थी! हां आज हमें तालिबानियों द्वारा ब्रेड दिए गए थे!

शायद इन लोगों की कार्यप्रणाली में दहशत डालने की भी एक ट्रेनिंग थी क्योंकि हर मिनट बाद कोई न कोई आकर हमें धमकाने लगता! अब तक हमें घुटनों के बीच से सर ऊपर करने की इजाजत मिल गयी थी!

डॉ. अनिता जोशी

डॉ. अनिता जोशी बताती हैं कि भले ही हमें खाने के लिए तीसरे दिन से कुछ न कुछ मिल रहा था और अब जहाज के दरवाजे खोल दिए गए थे लेकिन विंडो तब भी बंद थी! किसी को उठने की इजाजत नहीं थी! मैं डॉक्टर होने के नाते आ जा सकती थी! लेकिन जब आतंकी आकर एके 47 लहराते हुए कहते कि तुम्हारी जगह कोई वीवीआइपी होता तो अब तक तुम्हारी सरकार हमारी हर मांग मान लेती! तब मुझे आत्मग्लानी होती कि यह हमारी सरकारी द्वारा बहुत बड़ी गलती हो गयी क्योंकि इनकी शर्ते मानने की जगह अगर फ़ौरन कमांडो कार्यवाही हो जाती तो ये आतंक के बीज ज़िंदा नहीं बचते चाहे हम में से कई को अपनी प्राणों की बलि देनी पड़ती! मैं बस इसी उधेड़बुन में थी कि हमारी जिन्दगी की कीमत पर हमारी सरकार का यह फैसला गलत है! इन्हें तो तभी उड़ा देना चाहिए था जब ये चंडीगढ़ उतरे! शायद तभी आतंक खत्म हो जाता! आज भी में उस फैसले को पचा नहीं पाती कि हमारी जान की कीमत पर भारत सरकार ने यह फैसला लिया था या फिर विदेशी नागरिकों की जान की कीमत पर प्रेशर के कारण!

वह कहती हैं- मनोज, मैं सबसे बड़ा धर्म जाति मजहब इंसानियत मानती हूँ! उस से बढ़कर कुछ नहीं ! और अगर उस से बढ़कर कुछ है तो वह है देश जहाँ हमने जन्म लिया ! आई एम् एन इंडियन सबसे पहले! हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई सबको राष्ट्रहित में एक होना चाहिए! जिन्दगी और मौत जब आणि होगी आएगी क्योंकि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता! डॉ. अनिता जोशी भावुक होकर कहती हैं, सच कहूँ जिंदगी अब आकर बोझ सी लगती है क्योंकि सोचती हूँ कि काश…उन तीन आतंकियों को हमारी कीमत पर न छोडा होता तो आतंक की जड़ें कभी हरी नहीं होती!

वह बताती हैं कि यही सब मैं दूसरी रात सोच रही थी क्योंकि एक तो मुझे रूपन कत्याल व उसकी नई नवेली दुल्हन के चेहरे मेरी आँखों के आगे मंडरा रहे थे ऊपर से उस मासूम रचना कत्याल का मेरी बांह थामकर पूछना कि मेरे हजबैंड कैसे है? मुझे बेहद बेचैन कर रहा था! ऊपर से रात्री पहर मैं जब कॉकपिट के वाशरूम में गयी थी तब मैंने उसी चश्मेवाले को एके 47 के साथ खर्राटे लेते हुए देखा था तब सोचने लगी थी कि इसकी राइफल उठाऊं और इसे कब्जे में लेकर हम सबको छोड़ने की बात कहूँ! लेकिन फिर रुक गयी! सबसे ज्यादा परेशान में इसलिए थी कि हमारी कीमत पर ये हमारे देश से सौदा कर रहे हैं ! क्या हमारी कीमत देश से ज्यादा हो गयी! यही सब मस्तिष्क में चल रहा था कि तीसरे दिन मेरा नर्वस ब्रेकडाउन हुआ! और जैसे ही वे फिर हमें वार्न करने आये मैं अपने को रोक नहीं पाई! आखिर मुझे लगा कि आगे पीछे मरना मरना है तो फिर यह दहशत क्यों झेलूं! मैं चिल्लाई व बोली- कम ऑन..इफ यु वांट टू किल अस..! स्टार्ट फ्रॉम मी!

यह सुनते ही वे मुझे उठाकर कॉकपिट पर ले गए ! मेरे हाथ पाँव मले ! मुझे पीने को पानी दिया! फिर जब मैं थोड़ा सा प्रोपर हुयी तो कॉकपिट से बाहर का नजारा देखा तो हिल गयी क्योंकि हमारा विमान सैकड़ों हथियारबंद तालिबानियों से घिरा हुआ था! डॉ. अनीता जोशी बोली- मनोज जी, मैं अकेली उत्तराखंडी इस विमान में सफर नहीं कर रही थी बल्कि मेरे साथ डॉ. मंजुला टोलिया, डॉ. कांता शर्मा व अरुण नैथानी जी का परिवार भी सफर कर रहा था! इन सबने भी यह दहशत देखी है!

वे आगे कहती हैं कि अब तक सभी यात्रियों का मुझसे भावनात्मक लगाव हो गया था क्योंकि मैं एक डॉक्टर की भूमिका में सबसे सुख दुःख बाँट रही थी! कई लोग ऐसे भी थे जो पूर्व में ही डिप्रेशन के शिकार थे! उनमें एक नेपाली कपल भी शामिल था जो अपनी पत्नी का डिप्रेशन का इलाज करवाने दिल्ली ले जा रहा था! उसकी पत्नी बस उसे गाली बके जा रही थी! वहीँ नेपाल के राजज्योतिष भट्ट जी जो डायबेटिक थे, वे भी देहरादून जा रहे थे और उन्हें लग नहीं रहा था कि वे ज़िंदा बचेंगे! उनकी देहरादून में पूरी भट्ट मार्केट है! वे एक वीआईपी सूटकेश मेरे हवाले करते बोले- डॉक्टर साहब, अगर मैं मर गया तो यह सूटकेश मेरे घरवालों तक अवश्य पहुंचाना! मैंने उन्हें ढांडस बंधवाया तो वह सम्भले! जाने कितनी आँखें रो रही थी और कितनों के आंसू सूख गए थे! एक स्विस नागरिक भी था जिसके पिता के अपने आईलैंड अपने एअरपोर्ट थे! शायद नाम था रॉबर्ट..! उसे भी लगा कि कहीं तो कोई भावनात्मक लगाव हो! उसकी कहानी यह थी कि वह अपनी प्रेमिका के साथ अपने चोपर से काठमांडू घूमने आया था! उसने सोचा क्यों न प्रकृति का आनन्द लिया जाय इसलिए वह आकर इस विमान में आ बैठा और एक साधारण से यात्री की तरह सफर का आनंद लेने लगा! वह बोला- मुझे क्या पता था कि यह सब हो जाएगा! डॉ. जोशी ने कहा- मैंने बहुत ही संयम शब्दों में उसे नार्मल रहने की सलाह दी व साथ ही वार्निंग भी दी कि अगर इन्हें जरा भी भनक लग गयी कि तुम कौन हो तो ये तुम्हारी एवज में हम सबको रिहा भी कर सकते हैं और तुम्हारी जान भी ले सकते हैं!

तीसरे दिन तक हमारी हालत बेहद खराब थी! वाशरूम की सडांध और बदन विंडो ने हमें डिस्बैलेंस कर दिया था! भले ही तालिबानी सफाईकर्मी विमान में आये भी लेकिन फिर भी वहां के माहौल को नार्मल बनाने में सफल नहीं हो पाए! मैंने आतंकियों से कहा- आप हमें मार क्यों नहीं देते, क्योंकि अगर आप हमें छोड़ भी देते हैं तो हम में से ज्यादात्तर यहाँ से पागल होकर निकलेंगे! इसका यह असर हुआ कि इसके बाद हमसे वह दहशत हटा दी गयी! इस दौरान इनकी लगातार फोन पर वार्तालाप होती रही! हमारे बंधक होने का लगभग रोज भारत सरकार से सौदा हो रहा था इस दौरान हमारी कुशल क्षेम पूछने के लिए भारत के आला अधिकारी से मेरी दो या तीन बार बात करवाई गयी! शायद मेरी बात तब अजित डोवाल सर के साथ करवाई जाती थी जो हर बार कहते कि सरकार आप लोगों के लिए जल्दी ही बड़ा फैसला लेने वाली है संयम बनाए रखें! इस से मुझे भले ही तसल्ली नहीं हुई हो लेकिन मैं औरों को तसल्ली जरुर दिया करती थी! हालांकि विमान में ज़्यादातर यात्री भारतीय ही थे लेकिन इनके अलावा ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, इटली, जापान, स्पेन और अमरीका के नागरिक भी इस फ़्लाइट से सफ़र कर रहे थे!

अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के विदेश मंत्री जसवंत सिंह ख़ुद तीन चरमपंथियों अपने साथ कंधार ले गए थे! छोड़े गए चरमपंथियों में जैश-ए -मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर, अहमद ज़रगर और शेख अहमद उमर सईद शामिल थे!

ज्ञात हो कि इन तीनों आतंकवादियों में मौलाना मसूद अजहर नामक इस शातिर आतंकी ने साल 2000 में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद का गठन किया था! जिसका नाम 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले के बाद सुर्खियों में आया था! जिसे 1994 में पुर्तगाली फर्जी बीजा पासपोर्ट के कारण गिरफ्तार किया गया था!

वहीँ अहमद उमर सईद शेख नामक इस आतंकवादी को 1994 में भारत में पश्चिमी देशों के पर्यटकों का अपहरण करने के मामले में गिरफ्तार किया गया था! इसी आतंकी ने डैनियल पर्ल की हत्या की थी. अमेरिका में 9/11 के हमलों की योजना तैयार करने में भी उसकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. बाद में डेनियल पर्ल के अपहरण और हत्या के लिए पाकिस्तानी अधिकारियों ने उसे 2002 में गिरफ्तार कर लिया था!

मुश्ताक अहमद ज़रगर ये आतंकी रिहाई के बाद से पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में उग्रवादियों को प्रशिक्षण देने में एक सक्रिय हो गया था! भारत विरोधी आतंकियों को तैयार करने में उसकी खासी भूमिका थी!

आखिर वह दिन भी आ ही गया जब ठीक आठ दिन के बाद साल के आख़िरी दिन यानी 31 दिसंबर को सरकार ने समझौते की घोषणा की! प्रधानमंत्री वाजपेयी ने नए साल की पूर्व संध्या पर देश को ये बताया कि उनकी सरकार अपहरणकर्ताओं की मांगों को काफी हद तक कम करने में कामयाब रही है!

डॉ. अनिता जोशी बताती हैं कि हमारी रिहाई पर तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने ख़ुशी का इजहार करते हुए मुझे गले लगाने की कोशिश की भी लेकिन मैंने हाथ जोड़कर गले मिलने से साफ़ इनकार कर दिया तब जसवंत सिंह बोले थे कि आपने विश्व के मीडिया के आगे हमारी इन्सल्ट कर दी! तब मैंने बेहद विनम्र भाव से जबाब दिया था कि- सर, हमें पता है कि हमारी औकात क्या है! तब इंडिया टीवी में बरखा दत्त ने मेरा साक्षात्कार लिया था तो मानवेन्द्र जी ने पूछा कहा था – मैडम, आज जो आवाज कर रही हैं ! तब मैंने उन्हें जबाब दिया – उस दिन कमांडो एक्शन में मरते तो कम से कम इस देश में ऐसा आतंक तो नहीं पनपता!

डॉ. जोशी बताती हैं कि आज भी उन्हें रूपन कत्याल की वह शक्ल जब भी याद आती है तो मैं विचलित हो उठती हूँ! उसकी बीबी का मेरी बांह पकड़ना व कहना कि मेरे पति कैसे हैं ! आज भी शूल का हृदय में चुभता है! वह शायद इतनी ही जिन्दगी लेकर आया था क्योंकि उसकी फ्लाइट तो तीन दिन पहले की थी लेकिन काठमांडो में अपने जिगरी दोस्त से मिलने के बाद ये दोनों तीन दिन और वहीँ रुक गए थे!

यहीं यह कहानी खत्म नहीं हुई क्योंकि डॉ. अनिता जोशी बताती हैं कि हमारी रिहाई के बाद हमें हयात रीजेंसी में ठहराने की व्यवस्था थी लेकिन मैं और श्रीमती मंजुला टोलिया सीधे उत्तर प्रदेश भवन आकर ठहरे जहाँ तत्कालीन कुमाऊं कमिश्नर आरके टोलिया ने हमें रिसीव किया! बात यहीं ठहरती तो ठीक था अब तक देश की गुप्तचर एजेंसी हम से पूछताछ करना शुरू कर दिए थी! मुझे कहा गया- आपने आतंकी की मरहम पट्टी क्यों की! मैंने जबाब दिया- सिर्फ हमरी नहीं बल्कि मेरे अलावा भी सबकी जान उनकी मुट्ठी में थी! उसके बाद जब मैं नैनीताल पहुंची तब देश के शीर्ष गुप्तचर एजेंसी के  दो लोगों के साथ अमेरिका की एफबीआई के गुप्तचर मुझसे पूछताछ करने मेरी पैथोलॉजी में आये जिनका मैं बेहद इत्मनान के साथ पांच घंटे तक सवाल जबाब देती रही! उन्हें दुःख इस बात का भी है कि आतंकियों की कैद से रिहा होते समय यात्री उनसे सोबिनियर के तौर पर कोई कैप तो कोई उनके नकाब लेकर आये! कई उन्हें अपने ईमेल भी दे दिए! मुझे भी वह गिफ्ट करना चाह रहे थे लेकिन मैंने उन्हें कहा- बस आप अपनी सारी बुलेट व बम हमारे जहाज से ले जाएँ यही हमारे लिए सोविनियर है! वे हंसती हुई बोली- जिस आतंकी को उन्होंने फर्स्ट ऐड दी थी वह तो हमारे उत्तराखंडी अरुण नैथानी जी के जुराब ही पहनकर साथ ले गया!

डॉ. जोशी बताती है कि इस घटना के तुरंत बाद  मुझे एयर इंडिया से जॉब ऑफर हुई, स्विस नागरिक ने कहा कि आप यहाँ आकर बस जाओ जितनी प्रॉपर्टी चाहिए मैं आपके नाम कर देता हूँ साथ ही जिन्दगी भर का खर्चा भी उठाएंगे! एफबीआई ने अमेरिका में नौकरी की पेशकश की लेकिन मैंने सभी को हाथ जोड़कर मुस्कराते हुए मना कर दिया क्योंकि माँ भारती के चरणों की धूल में जो कुछ भी ईमान की कमा लेती हूँ वह मेरे लिए काफी है!

सचमुच इस उत्तराखंडी बेटी के वृत्तांत को सुनकर इतना तो फक्र होता ही है कि आखिर क्यों देश की सर्वोच्च संस्थाओं में हम उत्तराखंडियों की इमानदारी का इतना लोहा माना जाता है! आप ही देख लीजिये वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल, थल सेनाध्यक्ष बिपिन रावत, अनिल धस्माना रॉ चीफ, राजेन्द्र सिंह तोमर डीजी कॉस्ट गार्ड, भास्कर खुल्वे सचिव प्रधानमंत्री  सहित ऐसे करीब 11 नाम ऐसे हैं जो देश के शीर्ष पदों पर अपनी जिम्मेदारी निर्वहन कर रहे हैं! और उन्हीं एक में यह नाम भी शामिल समझा जाना चाहिए जिस उत्तराखंडी महिला को एफबीआई जैसी गुप्तचर एजेंसी वाले भी सलूट करके वापस अमेरिका लौटे!

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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