(मनोज इष्टवाल)
उत्तरकाशी का सुदूरवर्ती क्षेत्र जिसे रुपिन सुपिन नदी घाटी सभ्यता से जोड़कर भी देखा जाता है और जिस पर प्रकृति ने अपनी ख़ूबसूरती का बेपनाह हुश्न लुटाया हुआ है उस पर्वत क्षेत्र की धार्मिक आस्था, लोक समाज, लोक संस्कृति की प्रकाष्ठा अगर देखनी हो तो 22 गाँव के समूह पर्वत क्षेत्र के सबसे बड़े गाँव जखोल पहुँच जाइए! जो लगभग यहाँ की लोक व धर्मसंस्कृति का प्रतिनिधित्व सा करता दिखाई देता है! यहीं स्थित है समसू यानि सोमेश्वर देवता! जिसकी 12 बर्ष में एक बार हिमालयी शिखर देवक्यार की यात्रा आयोजित होती है !
आपको बता दूँ कि जहाँ रुपिन सुपिन संगम क्षेत्र फोखु देवता मंदिर है वहां से आगे बढ़कर मोरी से यूँ तो तमसा नदी का उद्गगम माना जाता है लेकिन कुछ इसे हिमाचल आराकोट क्षेत्र से बहने वाली नदी के बाद तमसा मानते हैं! जहाँ रुपिन सुपिन घाटी में कर्ण महाराज, फोखु देवता व उनके अग्रज सोमेश्वर का क्षेत्र माना जाता है वहीँ तमसा नदी घाटी में महासू देवता का बर्चस्व है! फर्क इतना है कि महासू की आस्का गाई जाती है जबकि सोमेश्वर की कफुवा!
यह भी बड़ा आश्चर्यजनक है कि पर्वत क्षेत्र के सोमेश्वर पर गंगा व यमुना घाटी के दो सुप्रसिद्ध गायकों के बोल खूब गूंजे! शायद ठेठ पर्वतीय शैली के गायकों के गीतों की धूम इसलिए जन साधारण तक नहीं पहुँच पाई क्योंकि वह भाषा ठेठ पर्वतीय है! सुप्रसिद्ध गायक हिप्पॉप शैली में गढ़वाली गीतों को बाजार में उतारने वाले रजनीकांत सेमवाल ने सोमेश्वर देवता पर जो कफुआ गाया है वह ठेठ कफुवा तो नहीं है लेकिन उनकी यह संरचना कफुवा को बेहद करीब से छूती हुई आगे बढती है! जिसका बेहद खूबसूरत फिल्मांकन किया गया है ! यह ठेठ भाषाई कहा जा सकता है लेकिन ठेठ पर्वतीय शैली का कफुआ नहीं ! यह शायद रजनीकांत सेमवाल द्वारा जानबूझकर किया गया ताकि सोमेश्वर देवता तक आम उत्तराखंडी की पहुँच हो सके व सब उनकी महिमा जान सकें! जिसका फायदा उन्हें मिला भी व कफुआ या कफुवा एक माह में लगभग 67 हजार लोगों की पसंद बन गया!
जहाँ रजनीकांत गंगा घाटी के हुए वहीँ ठेठ जौनपुरी शैली की लोकगायिका रेशमा शाह यमुना घाटी की हुई जिसकी मरकसी आवाज के लोक में उभरने से उसके सुरों के बोल अन्तस तक पहुँच जाते हैं! सच कहूँ तो वह यह है कि रेशमा शाह जैसी गायिका को अभी वे कलमकार या संगीतकार नहीं मिल पाए हैं जो इस आवाज के साथ पूरा-पूरा इन्साफ कर सकें! रेशमा को कुदरत ने बख्शीस में जो स्वर, आवाज, लहर, मुर्की, कण, छड उनके गले में दिए हैं वह एक नेमत से कम नहीं हैं! वह रजनीकांत के बाद दूसरी ऐसी गायिका हैं जिन्होंने सोमेश्वर देवता को वृहद् बाजार देने की कोशिश की है!
सोमेश्वर देवता के अनुनय भक्त जखोल के गंगा सिंह रावत की अगर यहाँ बात न की जाय तो वह ठीक नहीं होगा! जखोल के इस शख्स को सोमेश्वर देवता ने मानों दूत बनाया हो ! जो भी व्यक्ति सोमेश्वर की बात कहता करता हो वह गंगा सिंह रावत को न जाने ऐसा भला कैसे हो सकता है! इस व्यक्तित्व ने सचमुच सभी को प्रभावित किया!
जौनपुरी शैली की लोकगायिका के रूप में पहचान बनाने वाली रेशमा शाह ने सोमेश्वर देवता पर जो गीत बनाया है वह साधारणत: बड़े सरल से शब्दों में पिरोया गया गीत कहा जा सकता है जिसमें उन्होंने अपने भक्ति भाव के साथ अपने कंठ के साथ गाते हुए पूरा इन्साफ किया है! गीत के फिल्मांकन की खूबसूरती यह रही कि यहाँ ठेठ पर्वत के समाज को दर्शाने की कोशिश की गयी है! लेकिन सम्पादन में विदेशी हिमालयी पर्वतों की जगह अगर सोमेश्वर जात्रा के अंश पर केन्द्रित हिमालय दिखाया जाता तो गीत की खूबसूरती और अधिक बढ़ जाती!
अपने शब्दों में पिरोये इस गीत में बहुत ही मार्मिक ढंग से रेशमा गाती सुनाई देंगी- “ओ देवा ले, मेरा मुलुक सजदू सोमेश्वरा!” ओ देवा ले मेरा पर्वत आयु सोमेश्वरा!
आगे वो लिखती हैं कि- आपको ब्रह्म कमल, ज्याण, केसर के फूल चढ़ते हैं! यहाँ के जनमानस के गले में मातृका/ परी/आंछरियों के चन्द्राहार सजते हैं! तेरी चांदी की डोली में सोने के झंवर लटके हुए हैं! तेरे शीश से रुपिन सुपिन नदियाँ बहकर पूरे क्षेत्र को पलावित करती हैं! ये सभी शब्द रचनाएँ भले ही प्रथम दृष्टा सरल शब्दावली लगती है लेकिन इन्हें जिस तरह पिरोकर रणजीत सिंह ने अपने संगीत में ढाला और रेशमा ने गाया है वे बहुत कर्णप्रिय लगते हैं! इस गीत के विजुलाइजेशन में सिनेमाफोटोग्राफी एनी शॉ की है जबकि नृत्य निर्देशन नीलम शॉ व नवी बर्थवाल, सहयोग- गंगा सिंह रावत व निर्माता एम.एस. कैंतुरा हैं!
मात्र एक हफ्ते में यह गीत फीचर लिखते समय तक 4,713 लोगों तक पहुँच गया है! आप भी निम्वत लिंक को क्लिक कीजिये व इस खूबसूरत गीत का आनंद लीजिये:-