ऐतिहासिक! — दम्फुधार(गमशाली) के १५ अगस्त में शरीक होंगे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत। आजादी के बाद ऐसे पहले मुख्यमंत्री।
— ग्राउंड जीरो से संजय चौहान।
हिमालय की तरह बुलंद हौंसलो वाली देश की द्वितीय रक्षा पंक्ति नीती घाटी में 15 अगस्त की तैयारी जोरों पर है। ग्रामीण हर साल की तरह इस बार भी दम्फूधार में 15 अगस्त धूमधाम से मनायेंगे। आजादी के 71 साल बाद दम्फुधार (गमशाली) का 15 अगस्त इस बार सीमांत के वाशिंदो के लिए ऐतिहासिक होने जा रहा है क्योंकि इस बार 15 अगस्त को सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत भी शरीक करेंगे। आजादी के बाद वे पहले मुख्यमंत्री होंगे जो सीमांत के वाशिंदो के साथ 15 अगस्त का लोकपर्व मनायेंगे। मुख्यमंत्री के 15 अगस्त समारोह में सम्मिलित होने की खबर से सीमांत घाटी में खुशी की लहर दौड़ पड़ी है। लोग इस सूचना को सुनकर बेहद खुश हैं।
यहाँ त्यौहार/ लोकपर्व के रूप में मनाया जाता है देश की आजादी का जश्न।
पूरा देश १५ अगस्त को बड़ी धूम धाम से मनाता है। दिल्ली के राजपथ से लेकर सियाचिन ग्लेशियर तक देश के आजादी का यह जश्न अपने अपने तरीके से मनाया जाता है। परन्तु देश के अंतिम गांव नीति घाटी में आजादी का जश्न आज भी ठीक उसी तरह से मनाया जाता है जैसे 71 साल पहले मनाया गया था। यहाँ १५ अगस्त को लोकपर्व के रूप में मनाया जाता है। जो अपने आप में देश प्रेम की अनूठी मिशाल है। १५ अगस्त मनाने के लिए लोग यहाँ देश के कोने कोने से आते हैं। इस घाटी को देश की दूसरी रक्षा पंक्ति के रूप में जाना जाता है। ये न केवल सीमा के प्रहरी हैं अपितु सदियों से देश के सांस्कृतिक विरासत को संजोये हुये भी है।
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एक और जंहा देश की अधिकांश आबादी आज आजादी के मायने भूल चुके हैं। वर्तमान में १५ अगस्त का मतलब महज झंडा फहराने, रास्ट्रीय गान गाने, लड्डू खाने, सांस्कृतिक कार्यक्रम करने तक ही सिमित होकर रह गया है। अधिकांश लोगों के लिए ये रास्ट्रीय पर्व महज छुटी का दिन होकर रह गया है। लेकिन इन सबके बीच देश में एक जगह ऐसी भी है जहां पर १५ अगस्त किसी पर्व, तीज, त्यौहार से कम नहीं है। यहाँ लोग देश की आजादी का जश्न लोकपर्व या त्यौहार के रूप में मनाते हैं।
उत्तराखंड के सीमांत जनपद चमोली की निति घाटी जिसे देश की दूसरी रक्षा पंक्ति के रूप में जाना जाता है के गमशाली गांव में स्थित दम्फुधार में विगत 71 सालों से आजादी का जश्न आज भी उसी तरह से मनाया जाता है। जिस तरह से 71 साल पहले मनाया गया था।
गौरतलब है की १४ अगस्त १९४७ को जैसे ही रेडियो पर प्रसारण हुआ की देश आजाद हो गया है तो सारा देश ख़ुशी से झूम उठा। सीमांत घाटी होने के कारण यहाँ के लोगों को इसकी सूचना अगले दिन १५ अगस्त १९४७ की सुबह को लगा। देश की आजादी की सूचना मिलते ही पूरी घाटी के लोग ख़ुशी से झुमने लगे। लोगों ने अपने घरों में आजादी के दीप जलाये। जिसके बाद सभी लोग गमशाली के दम्फुधार में अपने परम्परागत परिधानों को पहनकर एकत्रित होने लगे। आजादी के जश्न की ख़ुशी पर लोग एक दूसरे को बधाई देने लगे और गले मिलकर ख़ुशी का इजहार किया। जिसके बाद दम्फुधार में परम्परागत लोकनृत्य के जरिये खुशियाँ ब्यक्त की।, इस दौरान हर किसी के चेहरे पर आजादी की ख़ुशी साफ़ पढ़ी जा सकती थी। तब से लेकर आज 71 बरस बीत जाने को है इस घाटी के लोगों का उत्त्साह आज भी उसी तरह से बरकरार है। आज भी इस दिन सम्पूर्ण घाटी के लोग परम्परागत वेशभूषा धारण कर घरों में आजादी के दीये जलातें है। साथ ही तरह तरह के पकवान भी बनाते हैं। इसके अलावा परम्परागत नृत्यों में रम जाते हैं। १५ अगस्त को सुबह घाटी के नीति गांव, गमशाली, फारकिया, बाम्पा सहित दर्जनों गांवों के लोग ढोलों की थापों के साथ आकर्षक झांकियों के रूप में बारी बारी से गमशाली गांव के दम्फुधार में एकत्रित होते हैं। इस दौरान प्रत्येक गांव की अपनी अलग भेषभूषा होती है। झांकी होती है। जिसमे देशभक्ति को दर्शाया जाता है। प्रत्येक गांव के नवयुवक मंगल दल, महिला मंगल दल, सहित बुजुर्ग भी बढ़ चढ़कर इसमें हिस्सा लेते हैं। जब सारे गांव की झांकियां दम्फुधार में पहुँचती है तो वहां पर मुख्य अतिथि द्वारा झंडारोहण किया जाता है। जिसके पश्चात प्रत्येक गांव द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है। तत्पश्चात पारितोषिक व मिठाई वितरण का कार्यक्रम किया जाता है।
दरअसल दम्फुधार में पहले एक प्राथमिक विद्यालय हुआ करता था। जहां पर घाटी के लोग शिक्षा ग्रहण किया करते थे। लेकिन आज स्थिति यह है की उक्त विद्यालय एक खंडर के रूप में परिवर्तित हो गया है। इस विद्यालय से कई लोगों ने अधिकारी बनकर देशसेवा की अपितु देश का मान भी बढाया। तब से लेकर आज तक इन लोगों का सहयोग १५ अगस्त के अवसर पर हमेशा रहता है। पहले १५ अगस्त का आयोजन विद्यालय समिति द्वारा किया जाता था परन्तु विद्यालय बंद हो जाने से यह आयोजन १५ अगस्त समिति के सहयोग से किया जाता है। इस आयोजन में महिलाओं का अहम योगदान होता है, फारकिया गांव के राजेन्द्र सिंह रावत, जगदीश सिंह रावत, कुंवर रावत, उत्तम सिंह भंडारी, संजय राणा, नीती के पूर्व प्रधान बच्चन सिंह राणा कहते हैं की दम्फुधार का १५ अगस्त हमारे लिए किसी त्यौहार से कम नहीं है। इस दिन का इन्तजार हमें पूरे साल रहता है। हम इसे लोकपर्व के रूप में मनाते हैं जो पूरे देश में देश की आजादी की एक अनूठी मिशाल है।
वास्तव में जिस तरह से देश के अंतिम गांव नीति घाटी में आजादी का जश्न यहाँ के लोगों द्वारा मनाया जाता है वैसा पूरे देश में कहीं भी नहीं। यहाँ का स्वतंत्रता देशप्रेम की अनूठी मिशाल है। इस पूरी घाटी को देश की दूसरी रक्षा पंक्ति के रूप में भी जाना जाता है। ये १५ अगस्त को अपने ग्रीष्मकालीन प्रवास में मानते है तो २६ जनवरी को अपने शीतकालीन प्रवास में, जो की अपने आप में अनूठा है। ऐसे में हमें चाहिए की इस घाटी के लोगों का अनुसरण करके देशप्रेम की अनूठी मिशाल पेश करें।