एक अमेरिकन की खोज है सातताल…! (वृहद् शोध)
(मनोज इष्टवाल)
जिला नैनीताल यूँ तो पूर्व से ही तालों के लिए प्रसिद्ध रहा है लेकिन यह बहुत कम जानते हैं कि साततालों के समूह की खोज करने वाला कोई ब्रिटिश नहीं बल्कि एक अमेरिकन था जिसका नाम स्टेंलिस जौन था व जिसकी बहुत बड़ी प्रॉपर्टी का स्वामित्व आज भी सातताल मसीही आश्रम के पास और बाकी हिस्सा बनविभाग के हिस्से में है।
वरिष्ठ पत्रकार राजीव लोचन साहजी से मिली जानकारी में नैनीताल की ढूँढ का श्रेय भले ही पी. बैरन नामक अंग्रेज को जाता है लेकिन साह जी साफ़ कहते हैं कि यह अंग्रेजों की अति ही थी कि यहाँ पहुँचने के लिए उन्होंने पहाड़ी जनमानस के सिर में बड़े-बड़े पत्थर रखवाकर कहा कि तब तक वे पत्थर सिर में ही ढोते रहेंगे जब तक वह इस ताल की जानकारी नहीं देते आखिर थक हार कर थोकदार नरसिंह महरा को पी. बैरन के साथ अपने उस क्षेत्र में जाना पडा जहाँ उनके भैंसों के खरक हुआ करते थे. पी. बैरन उन्हें नाव से नैनी झील के बीच में ले गए और जानबूझकर नाव डगमगाने लगे ताकि वो इस क्षेत्र को अंग्रेजों के नाम कर दें. मजबूरी में थोकदार नर सिंह महरा को ऐसा ही करना पड़ा बाद में कब आधा नैनीताल साह परिवारों का हुआ और आधा अंग्रेजों का इसमें शोध आवश्यक है.
सात-ताल के बारे में खोज किसी ब्रिटिश की नहीं बल्कि अमेरिकन की होना आश्चर्यचकित कर देने वाली बात है. स्टेंलिस जौन नामक इस व्यक्ति की इतनी बड़ी प्रॉपर्टी जोकि घनघोर जंगलों के बीच है देखते ही लगता है कि आप हिन्दुस्तान में नहीं बल्कि कहीं विदेश के एक ऐसे रमणीक क्षेत्र में विचरण कर रहे हैं जहाँ मानव-चहलकदमी से प्रकृति हताहत नहीं हुई है. वन विभाग या सातताल मसीही आश्रम के साथ साथ सबसे ज्यादा बधाई के पात्र यहाँ के व्यापारी वर्ग हैं जिन्होंने स्वयं यहाँ सफाई का जिम्मा अपने कांधों पर ले रखा है. पूरे प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के अन्य कई जिलों में भी मेरा भ्रमण ऐसे प्रकृति प्रदत्त क्षेत्रों में हुआ है लेकिन इतना साफ़ सुथरा रख-रखाव यहीं देखने को मिलता है.
जहाँ मैं क्याकिंग वोट में बैठा हूँ वहां मेरे पीछे हनुमान ताल का विहंगम दृश्य है इसमें सिर्फ क्याकिंग ही होती है जबकि बोटिंग के लिए राम लक्ष्मण ताल महफूज है. यहाँ मछली मारना मना नहीं है इन सात-तालों में फिश हंटिंग सिर्फ नल-दमयन्ति ताल में ही वर्जित है. वहां मछलियां काफी बड़ी हैं और मुख्यत: महासीर ही हैं. इन सात तालों में सूखा ताल का जल बहुत कम है जिसे हम भरत ताल के रूप में जानते हैं जबकि सबसे गहरा जल गरुड़ ताल का है जिसकी गहराई लगभग 80-100 फिट मानी जाती है जिसमें चक्रवाती भंवर और दल-दली मिटटी है, इस ताल में कई तैराक यहीं समां गए इसलिए यहाँ तैरना खतरे से खाली नहीं है. यह ताल आज भी प्राइवेट प्रॉपर्टी के तौर पर सातताल मसीही आश्रम की मानी जाती है. जिसे सन 1930 में स्टेंलिस जौन इनके हस्तगत कर गए थे. आज भी यह पंजीकृत संस्था 1930 से चलती आ रही है.
सात-ताल के नाम से मशहूर इन सात तालों के नाम शायद ही हर किसी को पता हूँ इसलिए आपको जानकारी दे दूँ कि इनमें सूखा ताल के रूप में प्रसिद्ध ताल का नाम भरत ताल, क्याकिंग के लिए मशहूर हनुमान ताल, एवं राम लक्ष्मण सीता ताल के रूप में प्रसिद्ध तीन तालों का एक ताल जहाँ बोटिंग होती है वह हैं. छटा ताल गरुड़ ताल व सातवाँ ताल नल-दमयन्ति ताल के रूप में प्रसिद्ध है. इन तालों में महासीर, मेटर कार्फ, नैन रहू, स्केल कार्फ, ग्रास कार्फ इत्यादि मछलियां बहुतायत में हैं सिर्फ नल-दमयन्ति ताल ही ऐसा ताल है जहाँ मछलियां स्वछन्द विचरण करती दिखाई देंगी.
व्यवसायी घनश्याम जोशी बताते हैं कि अन्य छ: तालों की मछलियां इसलिए नहीं दिखाई देती क्योंकि इनमें फिश हंटिंग निषेध नहीं है.
नल-दमयन्ति ताल जोकि सभी तालों में सबसे ज्यादा ऊँचाई पर है उसकी उंचाई लगभग 1450 मीटर की है. कभी यह ताल 2 से 3 किमी. की परिधि में फैला था जो वर्तमान में सिकुड़कर मात्र कुछ मीटर में तब्दील हो गया है. यहाँ पर क्षेत्रीय पंडितों का श्मशान व थोकदार लोगों का श्मशान घाट भी है. नल-दमयंती ताल में महल समाया हुआ है यह किंवदंती यहाँ प्रचलित है.
कहा जाता है कि यहाँ कभी राजा नल का राज-महल था राणी दमयन्ति को हर बार शांयकाल यह सुनाई देता था कि मैं आ जाऊं मैं आ जाऊ जिससे वह काफी विचलित रहने लगी थी राजा नल ने जब राणी दमयन्ति से उदासी का कारण पूछा तब राणी ने राजा को वह सब बता दिया जो उसके साथ घटित हो रहा था. राजा नल ने कहा कि जब मैं घर पर रहूँ तो कहना हां आ जाओ. राणी ने वही कहा जो राजा ने कहा था तब राणी दमयंती मछलियां पका रही थी कहते हैं तत्काल ही महल झील में समाने लगा और कड़ाई में पक रही मछलियाँ पानी में तैरने लगी. नल-दमयंती यहीं समा गए. अभी हाल के बर्षों में जैसे जैसे यह ताल कम होता गया यहाँ से कई देवी देवताओं की पाषाण मूर्तियाँ निकली हैं. बिष्णु भगवान् की एक मूर्ती यहीं पास के मंदिर में इसी ताल से निकालकर स्थापित की गयी है जो हजारों साल पुरानी मानी जाती है. वहीँ सात-ताल के ऊपर हिडिम्बा शिखर है जहाँ एक महात्मा रहा करते हैंजो बनखंडी साधू के नाम से सुप्रसिद्ध हैं. कहते हैं कि यहाँ हिडिम्बा राक्षसी का निवास स्थल था.
घनश्याम जोशी बताते हैं कि यहाँ पर्यटक शुकून शान्ति की तलाश में तो आते ही हैं साथ ही यहाँ रॉक क्लाइम्बिंग, वाइल्ड ड्रिफ, एडवेंचर कैंप, गेट वे जंगल कैम्पिंग इत्यादि के लिए आते हैं. बोटिंग और क्याकिंग का यहाँ आकर लोग भरपूर आनंद उठाते हैं. यहाँ कुमाऊ मंडल विकास निगम का ठहरने के लिए खूबसूरत बंगला है वहीँ थ्री स्टार फैसिलिटी वाला काउंट्रीन होटल व वी. रिसॉर्ट्स हैं. वाईएमसीए की भी यहाँ प्रॉपर्टी है जोकि यहाँ क्रिकेट अकेडमी में बच्चों के क्रिकेट मैच करवाती है. मेरी तो आपको सलाह है कि अगर आप कभी अपनी गर्मियों की छुट्टियां शुकून रोमांच और शान्ति के साथ बिताना चाहते हों तो इस से महफूज व शुकून भरी जगह कोई और हो ही नहीं सकती.