एकीकरण से पहले ही बिखरने की तैयारी।
सम्पादकीय
(सुनिल नेगी अध्यक्ष उत्तराखण्ड पत्रकार फोरम)
कितनी अजीब और हैरतंगेज बात है कि अभी गैर भाजपा राष्ट्रिय गठबंधन की एक भीनी सी शुरुआत भर हुई थी या यूं कहिये की भाजपा और मोदी विरोधी महागठबंधन को सिरे चढने का सही वक्त आया ही था कि दलितों की राष्ट्रव्यापी नेत्री मयावाती ने भाजपा और मोदी विरोधी नांव में छेद करने की बाकायदा औपचारिक शुरुआत ही कर दी. कौन नहीं जानता है कि राष्ट्रीय पैमाने पर हजारों खामियों के बावजूद आज भी चमत्कारिक नेतृत्व के संदर्भ गैर भाजपाई नेता चाहे वे किसी भी दल का हो मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले बीस नहीं बैठता।
खासकर इसलिये भी क्योंकि विपक्ष का हर नेता आज भी चमत्कारिक छवि और व्यवहार के दृष्टिकोण से पूर्णतः मोदी की विल्क्षण छवि के सामने उन्नीस ही है , बीस या इक्कीस नहीं लेकिन हाँ जाति, संप्रदाय, धर्मनिरपेक्ष और भाषा के दृष्टिकोण से यदि देखा समझा जाय तो गैर भाजपाई दलों के पारदर्शी और ईमानदारी के एकीकरण के कृत्य और कोशिशें इन्हें जरूर एक ऐसे ठोस मुकाम तक पहुँचा सकते हैं जिसे हम मौजूदा भाजपा गठबंधन केन्द्र सरकार के लिए एक अत्यंत सशक्त चुनौती के रुप में देख सकते हैं । खासकर देश में जल्द ही सम्पन्न होने जा रहे राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्यों के चुनावों में जहाँ भाजापा सरकारों के खिलाफ जबर्दस्त एंटी इंकम्बेंसी दिखाई देती है।
हाल के कर्नाटक राजनीतिक घटनाक्रम, कई राज्यों के संसदीय व विधान सभा उपचुनावों में जिसमें उत्तरप्रदेश, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र इत्यादि राज्य शामिल हैं संयुक्त गैर भाजपाई विपक्षी एकता ने भाजपा को खासी शिकस्त देकर ये साफ तौर पर स्पष्ट कर दिया है कि यदि सभी गैर भाजपाई दल और क्षेत्रीय पार्टियां ईमानदारी से राज्यों और राष्ट्रीय चुनावों में एक कामन मिनिमम प्रोग्राम्स के तहत एक झंडे और सर्व माननीय नेता के नेतृत्व तले एक अत्यंत प्रभावशाली एंटी बीजेपी गठबंधन बनाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा एनडीए गठबन्धन को सीधी चुनौती देते हैं तो निश्चित तौर पर 2019 और उससे पहले तीन राज्यों के चुनाओं में ये दल भाजपा को जबर्दस्त पठकनी दे सकते हैं। गौरतलब है कि 2014 और उसके बाद के मोदी करिश्में और आज के हालातों में खासा अंतर देखने को मिला है .
भले ही मोदी करिश्में ने देश के 20 राज्यों में सत्ता हासिल कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया हो पर राजनैतिक समीक्षकों का आज भी मानना है कि देश के कृषि सेक्टर, किसानों की बढ़ती आत्महत्याओं की घटना, पेट्रोल डीजल और खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें, कश्मीर समस्या के विकराल रुप धारण करने, देश में काव विजीलेंटिस्म के नाम पर हत्यायें, पत्रकारों की नृशंस हत्यायें, निरंतर बढ़ रही बेरोजगारी , बाहरी बैंकों से काला धन ना लाना, नोटबन्दी से आम जनता द्वारा झेली गयी प्रताड़ना, प्रधानमंत्री के अत्यंत खर्चीले विदेशी दौरे , माहिलाओं पर निरंतर बढ़ रहे आत्याचार, अल्पसंख्यकों में खौफ और उनकी हत्या आदि ऐसे कई महात्वपूर्ण मुद्दे हैं ज़िनके चलते देश का अधिकांश आवाम भगुवा पार्टी और उनके नेताओं से बुरी तरह खार खाया बैठा है।
नतीजतन देश की गैर भाजपाई विपक्षी दलों जैसे कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी , वामपंथी दल, आर जे डी, तिलांगाना पार्टी, लोक दल, त्रिणामूल कांग्रेस, दक्षिण की अन्ना द्रामुक पार्टी इत्यादि के पास आज एक बहुत ही बेहतरीन मौका है कि वे सब अपने सभी संकीर्ण राजनितिक हितों को त्यागकर मोदी और उनकी पार्टी का ज़मकर मुकाबला करें।
इस गठबंधन को वास्त्विक एवं ठोस अमलिजामा पहनाने की कोशिश में ट्रीनामूल कांग्रेस की तेज तर्रार नेत्री और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने कुछ महीनों पहले खासी मशक्कत की और दिल्ली आकर सोनिया, राहुल, शरद पवार, शरद यादव सहित लगभग सभी नेताओं से मिली। उसके बाद ये सभी नेता कांग्रेस व जनता दल ( सेकुलर ) गठबंधन सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में बंगलोर में भी मिले। सभी की बाडी लेंगुएज पाजिटिव थी। ऐसा लगने लगा था कि आने वाले दिनों में भले ही देर से लेकिन ये गैर भाजपा गठबंधन कुछ सशक्त नतीजे दिखायेगा और 2019 में भाजपा एन डी ए गठबंधन को दिन में तारे दिखाने जैसी स्थिति में पहुँचेगा, लेकिन 16 जून के बहुजन समाज पार्टी द्वारा बिना किसी राय मशविरे के मायावती को इस गैर भाजपाई गठबंधन का प्रधान पद का उम्मीदवार घोषित करने से ऐसा लगता है मानों इस गठबंधन के औपचारिक श्रीगणेश होने से पहले ही तबाही के गोले बरसने शुरू हो गये हैं। यही तो भाजपा और मोदीजी चाहते हैं और यही वजह है कि वे पुन: सत्ता में लौटेंगे. आप क्या कहेंगे मित्रो?