Wednesday, November 20, 2024
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उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश जैसा नही! वहां शूटिंग करना नरक जैसा-विवेक अग्निहोत्री।

उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश जैसा नही! वहां शूटिंग करना नरक जैसा-विवेक अग्निहोत्री।

(मनोज इष्टवाल)
पर्यटन और फ़िल्म उद्योग की जब भी जहां भी जिस प्लेट फॉर्म पर भी बात हुई है वही प्लेटफॉर्म उत्तराखण्ड के लिए बातों -बातों में मील का पत्थर साबित हुआ है लेकिन सिर्फ बातों-बातों में ! क्योंकि जिस ईमानदारी से इसे प्रमोट करने की कोशिश की जानी चाहिए थी वह राज्य निर्माण से लेकर अब तक कहीं दिखने को नहीं मिलता है। जहां पर्यटन उद्योग में भारत विश्व के मानचित्र में सातवें स्थान पर है वहीं उत्तराखण्ड का अगर धार्मिक पर्यटन हटा दिया जाय तो हम कई अन्य राज्यों से पिछड़ते नजर आते हैं जबकि गंगा जमुना सभ्यता ने हमें प्रकृति की अनुपम नैसर्गितकता में नदियां, झरने, घाटियाँ,वादियाँ, बिशाल हिमालय, अलौकिक लोक समाज व अनूठी लोकसंस्कृति प्रदान की है।


विगत 10 अगस्त को तालों का शहर या जिला कहा जाने वाला नैनीताल के भीमताल के एक पंचतारा श्रेणी के होटल में आयोजित “डेस्टीनेशन उत्तराखण्ड इन्वेस्टर समिट-2018” जोकि फ़िल्म शूटिंग और पर्यटन पर केंद्रित था में जो बातें उभर कर सामने आई वे सचमुच प्रदेश के लिए सबक लेने वाली हैं।
डेस्टीनेशन उत्तराखण्ड इन्वेस्टर समिट-2018 (मिनी कंवलावे) में प्रदेश भर के पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग, होटल व्यवसायी व फ़िल्म निर्माण से जुड़े कई लोगों ने शिरकत की। इस समिट में अपने विचार रखते हुए देश के सुप्रसिद्ध फ़िल्म निर्माता निर्देशक व आल इंडिया फ़िल्म एसोसिएशन के सचिव विवेक अग्निहोत्री ने फ़िल्म निर्माण व फ़िल्म लोकेशन को लेकर पूरे सरकारी तंत्र पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि सरकारी अफसरों के साथ बैठकर फ़िल्म नहीं बनती और जो प्रजेंटेशन यहां विजुअल माध्यमों से दिया गया वह उत्तराखण्ड के परिपेक्ष्य में नाकाफी है। उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा कि सरकार को चाहिए वे ऐसा माध्यम फ़िल्म इंडस्ट्री व सरकार के बीच बनाये जो प्रदेश की वादियों घाटियों की बात फ़िल्म इंडस्ट्री के मध्य रख सके और फ़िल्म निर्माताओं का प्रदेश में फ़िल्म निर्माण सम्बन्धी रुझान बढ़ सके।


विवेक अग्निहोत्री ने बताया कि फ़िल्म निर्माण में मध्य प्रदेश विगत दो बर्ष पूर्व कहीं नहीं था लेकिन आज हर माह आठ से 10 फ़िल्म निर्माता वहां शूटिंग कर रहे हैं। हिंदी फिल्मों की तुलना में दक्षिण की फिल्मों का प्रतिशत कई गुना है। उन्होंने फिल्म उद्योग को पर्यटन से जोड़ते हुए कहा कि फ़िल्म बनाने के लिए कम से कम 15 से 20 विभाग मात्र तीन माह के लिए जुड़ते हैं और मात्र तीन माह में ही 60 करोड़ से ज्यादा का इन्वेस्टमेंट कर प्रदेश को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप व्यवसाय देते हैं।


उन्होंने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि प्रदेश 2018 के दौर में भी सिर्फ सिंगल विंडो सिस्टम को बिजनेश डेवलपमेंट के रूप में देखते हैं जो नाकाफी है।
विवेक अग्निहोत्री ने जोर देकर कहा कि हमें स्टेट की स्वयं ब्रांडिंग करनी होगी ताकि हम इस उद्योग को प्रदेश में व्यवस्थित कर सकें। इसके लिए प्रदेश को एक व्यक्ति ऐसा ढूंढना होगा जो फ़िल्म इंडस्ट्री के बीच अपनी बात रख सके। उन्होंने फिल्म “जिंदगी मिलेगी न दुबारा” का जिक्र करते हुए कहा कि स्पेन में हुई इस फ़िल्म की शूटिंग ने वहां पर्यटन उद्योग इतना बढ़ा दिया है कि स्पेन में भरतीय व भारतीय समाज की कद्र बढ़ गयी है।
उन्होंने कहा कि वे उत्तराखण्ड को गॉड जोन कंट्री मानते हैं यहां ईश्वर की ऐसी नेमत बरसी है कि इसका हर स्थल फ़िल्म शूटिंग के माफिक है। उन्होंने उत्तराखण्ड के लोगों की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए कहा कि फ़िल्म इंडस्ट्री से जुड़े जितने भी निर्माता यहां आए उन्होंने यहां की जनता की प्रशंसा करते हुए कहा कि यहां के लोग बेहद शालीनता व अनुशासन के साथ फ़िल्म शूटिंग देखते हैं व बेवजह कोई परेशानी पैदा नहीं करते। उत्तराखण्ड उत्तर प्रदेश जैसा नहीं है, वहां शूटिंग करना नरक जैसा है।
विवेक ने कहा कि हमें ऐसा सामंजस्य तो बैठाना ही होगा जिससे हर फ़िल्म निर्माता की पहली चॉइस उत्तराखण्ड हो क्योंकि अब मुम्बई व दिल्ली जैसे महानगरों में शूटिंग करना मुश्किल है जबकि देहरादून में बेहद सरल है और इस सबके लिए आपको ऐसा कुछ सोचना होगा ताकि आप फ़िल्म इंडस्ट्री से इस बारे में बात कर सकें। आपको सिर्फ हिंदुस्तानी फ़िल्म जगत को नहीं बल्कि विश्व भर के फ़िल्म उद्योग को यहां लाना होगा ताकि आप व्यवसाय के तौर पर फ़िल्म शूटिंग व पर्यटन से प्रतिबर्ष अच्छी आय अर्जित कर सकें।


विवेक अग्निहोत्री ने कहा है कि हमें इस सबके लिए यहां की स्थानीय संस्कृति को विकसित करना होगा जिसके लिए स्थानीय बाजार में ही इसका सर्वप्रथम बाजार तलाशना होगा। हमें किसी भी हाल में फ़िल्म निर्माताओं का रुझान इस ओर विकसित करना होगा और वेब सीरीज के माध्यम से ऐसा कुछ करना होगा जिस से यहां की लोकेशन दुनिया भर के फ़िल्म निर्माताओं की नजरों में आया क्योंकि आजकल वेब सीरीज का ही जमाना है और जो इसके साथ नहीं चला वह बाजार से ही खो गया जिसका ताजातरीन उदाहरण यूके है जो एक जमाने में फ़िल्म उद्योग का सबसे बड़ा बाजार था लेकिन आज फ़िल्म उद्योग के पुराने ढर्रे के कारण कहीं नहीं रहा।
विवेक ने अपने को रूहानी तौर से उत्तराखण्ड से जोड़ते हुए कहा कि वे उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर से आते हैं तब उत्तराखण्ड भी उसी का एक हिस्सा हुआ करता था और एक ऐसा समय आया जब उनके फ्रीडम फाइटर परिवार को निर्वासित जीवन जीने के लिए नैनीताल रानीखेत की शरण लेनी पड़ी। उनके बचपन के कई कीमती बर्ष यहीं गुजरे हैं और यही कारण भी है कि वे इस पर “रानीखेत की गोद में” एक पुस्तक भी प्रकाशित कर चुके हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि उत्तराखण्ड में फ़िल्म फेस्टिवल का आयोजन होना चाहिए ताकि यहां फ़िल्म और पर्यटन व्यवसाय फल-फूल सके।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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