नैनीताल (हि.डिस्कवर)
उतराखंड देवस्थान विधेयक को चुनौती देने वाली डा० सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर लगातार पांच दिनों से चल रही सुनवाई आज नैनीताल हाईकोर्ट में पूरी हुई ।
आज की कार्यवाही की शुरुआत में डा० स्वामी ने कहा कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 25 ,26 में भारतीय नागरिकों को मिले धार्मिक स्वत्रंत्रता के अधिकारी का उल्लंघन करता है और साथ ही अनुच्छेद 31 में मिले सम्पत्ति के अधिकारों पर भी आघात करता है।
स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए तर्क रखा कि अनुच्छेद 26 किसी भी धर्म में आस्था रखने वाले धार्मिक सम्रप्रदाय/ religious dinomenation को अपने धार्मिक संस्थाओं के संचालन, संरक्षण व प्रसार का अधिकार देता है। जिसे किसी भी परिस्थिति में उनसे छीन कर किसी अन्य को नहीं दिया जा सकता है।
गौरतलब है कि सरकार के महाअधिवक्ता ने पिछली कार्यवाही में बहस के दौरान कहा था कि इन मंदिरों पर किसी विशेष सम्प्रदाय / समुदाय का अधिकार नहीं है, और ये मंदिर जनता के मंदिर (public temple) हैं। जिसके जवाब में स्वामी ने तर्क दिया कि एक तरफ सरकार और उसके अधिवक्ता इन मंदिरों के पुजारियों के religious denomination वाले अधिकारों से अदालत में इनकार कर रहे हैं जबकि विधायक सभा से पारित विधेयक में इन मंदिरों में समुदायिक अधिकारों की पुष्टि करता है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 25 (2-क,ख) के तहत मिले अधिकारों का तभी इस्तेमाल कर मंदिर अधिग्रहण तब कर सकती है जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के तहत यह सुनिश्चित हो जाय कि मंदिर प्रबंधन लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य व्वस्था बनाये रखने में असफल रहा है। यदि अधिग्रहण किया भी जाता है तो चिन्हित अव्यवस्था को एक नियत समय के भीतर दूर कर धार्मिक संस्थान का प्रबंध उसमें हित रखने वाले लोगों को लौटा दिया जाना चाहिए। जिसका इस विधेयक में कोई जिक्र नहीं है और ना ही सरकार इन तथ्यों पर अपना कोई जवाब अदालत में सिद्ध कर पायी है।
उतराखंड सरकार ने अधिग्रहण के कारण स्पष्ट करे और ना ही इसके लिए निर्धारित प्रक्रिया का पालन किया है। जिसके कारण भी यह विधेयक खारिज किये जाने योग्य है।
स्वामी की सहयोगी वकील मनीषा भण्डारी हाई कोर्ट की संयुक्त खंडपीठ के संज्ञान यह तथ्य लेकर आयी कि सरकार ने ऐक्ट के माध्यम से देवता की सम्पत्ति को भी बोर्ड की सम्पति बना दिया है। जब कि पूर्वर्ती श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर एक्ट 1939 में समिति को देवता की सम्पत्ति का मात्र प्रबंधन दिया गया था जबकि संपत्ति पर देवता का स्वमित्व बना हुआ था। इस प्रकार यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 31 में प्रदत्त संपत्ति के अधिकारों का भी खुल्लमखुल्ला उल्लंघन करता है।उल्लेखनीय है कि भारतीय विधि में भगवान /देवता को जीवित और नाबालिग माना जाता है। जो स्वयं में सम्पत्ति का अधिकार धारित करता है ।
अदालती कार्यवाही के अंतिम चरण में मुख्य न्यायाधीश रंगनाथन ने महाअधिवक्ता बाबुलकर से कुछ विधिक बिन्दुओं पर पर सरकार का पक्ष स्पष्ट करने को कहा। बाबुलकर द्वारा दिये गये तर्कों से खंडपीठ सन्तुष्ट होती नजर नहीं आयी।
आज की कार्यवाही के बाद मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली हाई कोर्ट की खंडपीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस चर्चित मामले में फैसला जुलाई अन्तिम सप्ताह में आना सुनिश्चित हैं क्योंकि उतराखंड के मुख्य न्यायाधीश रंगनाथन 28 जुलाई को रिटायर्ड हो रहे हैं।
बहरहाल ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो फैसला आने के बाद ही पता चलेगा। किन्तु कोर्ट कार्यवाही के बाद डा०सुब्रमण्यम स्वामी और उनकी सहयोगी अधिवक्ता मनीषा भण्डारी के चेहरे फैली मुस्कराहट और सरकारी महाअधिवक्ता बाबुलकर व उनके सहयोगियों के उतरे चेहरे आने वाले फैसले और देवस्थान बोर्ड के भविष्य की कहानी काफी हद तक बयां कर चुके हैं ।