इस हरेला पर आखिर क्यों लगाया मैंने बिल्ब वृक्ष! वृक्ष कौन सा लगे ये सोच होनी चाहिए!
(मनोज इष्टवाल)
इस हरेला पर यूँ तो प्रदेश के मुख्यमंत्री ने राजधानी देहरादून की नदी से नाले में तब्दील हुई नदी ऋषिपर्ण के दोनों छोरों पर लगभग सवा चार सौ से अधिक विद्यालयों के छात्र-छात्राओं के साथ मिलकर 2.50 लाख वृक्षों का रोपण का लक्ष्य रखा है जो उसके उदगम से विसर्जन तक लगाए जायेंगे! ख़ुशी यह थी कि चलो इस बहाने ही सहीं कभी आधा मील से भी ज्यादा चौड़ी रिस्पना नदी जो अब कहीं 5 मीटर रह गयी है उसके अवैध कब्जों पर तो सरकारी सिस्टम की नजर पड़ेगी व उन्हें हटाकर इसे फिर से मूल नदी का रूप दिया जाएगा इस कार्य पर तसल्ली हुई और मन बनाया था कि आज जरुर वृक्षारोपण कर इस साल का हरेला मनाएंगे लेकिन यह तब चमत्कारित लगा जब हमारी बहु ने एक बिल्ब वृक्ष के रोपण के लिए हमें कहा! कही टी यह उन्होंने अपने देवर के लिए थी जो फिर भी टालमटोल कर रहा था लेकिन जब बात बिल्ब वृक्ष के रोपण की आई तो मैं झट से तैयार हुआ व भतीजे को गैंती पकड़वाई व घर के बाहर आज हरेला के उपलक्ष में बिल्ब वृक्ष का रोपण कर दिया! आखिर हरेला पर हम क्यों नहीं यह तय कर लेते कि कौन सा वृक्ष रोपा जाय और उसके फलने फूलने के बाद मानव जीवन में उसके क्या लाभ है क्यों न वह पहले ही तय कर लिया जाय! अब जब बेल का वृक्ष लगाया तो स्वाभाविक है घर पर हर कोई चूंटी देने को तैयार बैठा होगा! भतीजा खुद ही बोल पड़ा- चाचा आखिर ये ही पौधा या पेड़ क्यों और क्यों नहीं! फिर क्या था मेरा दिमाग चला और जितना जानता था शब्दों में कुछ यूँ बयान कर गया!:-
बिल्ब या बेल/बेलपत्री विश्व के कई हिस्सों में पाया जाने वाला वृक्ष है। भारत बर्ष में इस वृक्ष का पीपल, नीम, पारिजात, आम व पलास आदि वृक्षों के समान ही बहुत अधिक सम्मान है। हिन्दू धर्म में बिल्व वृक्ष देवाधिदेव महादेव की अराधना का मुख्य अंग है। धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों के पास लगाया जाता है। बिल्व वृक्ष की तासीर बहुत शीतल होती है। गर्मी की तपिश से बचने के लिए इसके फल शर्बत बड़ा ही लाभकारी होता है। यह शर्बत कुपचन, आँखों की रौशनी में कमी, पेट में कीड़े और लू लगने जैसी समस्याओं से निजात पाने के लिये उत्तम है। बिल्व की पत्तियों मे टैनिन, लोहा, कैल्शियम पोटेशियम और मैग्नेशियम जैसे रसायन पाए जाते है।
बिल्व वृक्ष पन्द्रह से तीस फुट ऊँचा और पत्तियाँ तीन और कभी-कभी पाँच पत्र युक्त होती हैं। तीखी स्वाद वाली इन पत्तियों को मसलने पर विशिष्ट गंध निकलती है। गर्मियों में पत्ते गिरने पर मई में फूल लगते हैं, जिनमें अगले वर्ष मार्च अप्रैल तक फल तैयार हो जाते हैं। इसका कड़ा और चिकना फल कवच कच्ची अवस्था में हरित रंग और पकने पर सुनहरे पीला रंग का हो जाता है। कवच तोड़ने पर पीले रंग का सुगन्धित मीठा गूदा निकलता है, जो खाने और शर्बत बनाने के काम आता है। ‘जंगली बेल’ के वृक्ष में काँटे अधिक और फल छोटा होता है।
बेल के वृक्ष पूरे भारत बर्ष के विशेष रूप से हिमालय की तराई, सूखे पहाड़ी क्षेत्रों में चार हज़ार फीट की ऊँचाई तक ये पाये जाते हैं। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि शिबपुराण में सुक-शावक की कथा से लेकर बिल्ब क्षेत्र का वर्णन भी मिलता है! उसके श्लोकों को एक आचार्य ने नयारघाटी से जोड़ते हुए कुछ यों लिखा जैसे – सतपुली= दक्ष की सौ पुत्रियों का निवास स्थल, बांघाट= दक्ष की वामांग्नी यानिं पत्नी का निवास स्थल और बिलखेत= बिल्ब क्षेत्र! अब जाने यह सारा वर्णन कितना सत्य है या इसके ऐसे पुष्ट प्रमाण है भी या नहीं लेकिन नयार घाटी क्षेत्र के बिल्खेत में वास्तव में सबसे अधिक बेल वृक्ष मिलते हैं! इसके अलावा मध्य व दक्षिण भारत में बेल वृक्ष जंगल के रूप में फैले हुए हैं और बड़ी संख्या में उगते हैं। इसके पेड़ प्राकृतिक रूप से भारत के अलावा दक्षिणी श्रीलंका, म्यांमार, नेपाल, बंगलादेश, कजाकिस्तान, वियतनाम, कम्बोडिया एवं थाईलैंड में उगते हैं। इसके अतिरिक्त इसकी खेती पूरे भारत के साथ श्रीलंका, उत्तरी मलय प्रायद्वीप, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्वीपसमूह में भी की जाती है।
सनातन हिन्दू धर्म में बिल्व वृक्ष को भगवान शिब का रूप माना जाता है। मान्यता है कि इसके मूल में महादेव का वास है। इसीलिए इस वृक्ष की पूजा का बहुत महत्त्व है। धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। भगवान शिव को बिल्व और बिल्व के पत्ते अत्यधिक प्रिय हैं। नियमित बेलपत्र अर्पित करके भगवान शिव की पूजा करने वाला भगवान शिव का प्रिय होता है। ऐसा व्यक्ति अपनी जन्मपत्री में चाहे कितने भी अशुभ योग लेकर आया हो, तब भी उससे प्रभावित नहीं होता। शिबपुराण में बेल के पेड़ को साक्षात शिव का स्वरूप कहा गया है। महर्षि ब्यास के पुत्र सूतजी ने ऋषि-मुनियों को समझाते हुए कहा है कि- “जितने भी तीर्थ हैं, उन सबमें स्नान करने का जो फल है, वह बेल के वृक्ष के नीचे स्नान करने मात्र से प्राप्त हो जाता है।” गंध, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य सहित जो व्यक्ति बिल्व के पेड़ की पूजा करता है, उसे इस लोक में संतान एवं भौतिक सुख मिलता है। ऐसा व्यक्ति मृत्यु के पश्चात् शिवलोक में स्थान प्राप्त करने योग्य बन जाता है। बेल के पेड़ की पूजा करने के बाद जो व्यक्ति एक भी शिव भक्त को आदर पूर्वक बेल की छांव में भोजन करवाता है, वह कोटि गुणा पुण्य प्राप्त कर लेता है। शिव भक्त को खीर एवं घी से बना भोजन करवाने वाले व्यक्ति पर महादेव की विशिष्ट कृपा होती है। ऐसा व्यक्ति कभी ग़रीब नहीं होता है। शाम के समय बेल की जड़ के चारों ओर दीप जलाकर भगवान शिव का ध्यान और पूजन करने वाला व्यक्ति कई जन्मों के पाप कर्मों के प्रभाव से मुक्त हो जाता है।
भगवान शिव की पूजा में बिल्व पत्र यानी बेलपत्र का विशेष महत्व है। महादेव एक बेलपत्र अर्पण करने से भी प्रसन्न हो जाते है, इसलिए तो उन्हें ‘आशुतोष’ भी कहा जाता है। सामान्य तौर पर बेलपत्र में एक साथ तीन पत्तियाँ जुड़ी रहती हैं, जिसे ब्रह्म, बिष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है। वैसे तो बेलपत्र की महिमा का वर्णन कई पुराणों में मिलता है, लेकिन शिवपुराण में इसकी महिमा विस्तृत रूप में बतायी गयी है। शिवपुराण में कहा गया है कि बेलपत्र भगवान शिव का प्रतीक है। भगवान स्वयं इसकी महिमा स्वीकारते हैं। मान्यता है कि बेल वृक्ष की जड़ के पास शिवलिंग रखकर जो श्रद्धालु भगवान शिव की आराधना करते हैं, वे हमेशा सुखी रहते हैं। बेल वृक्ष की जड़ के निकट शिवलिंग पर जल अर्पित करने से उस व्यक्ति के परिवार पर कोई संकट नहीं आता और वह सपरिवार खुश और संतुष्ट रहता है। कहते हैं कि बेल वृक्ष के नीचे भगवान भोलेनाथ को तस्मै/खीर का भोग लगाने से परिवार में धन की कमी नहीं होती है और वह व्यक्ति कभी निर्धन नहीं होता है। कभी कभी मुझे लगता है कि जब खीर को पहाड़ में तस्मै बोला जाता है तन कहीं यह शब्द वह तो नहीं जिसमें ॐ नम शिवाय के शब्दों के जाप में तस्मै शिवाय/ नम: शिवाय आता है!बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में स्कन्दपुराण में कहा गया है कि एक बार देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीना पोछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष उत्पन्न हुआ। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी और फलों में कात्यायनी वास करती हैं। कहा जाता है कि बेल वृक्ष के कांटों में भी कई शक्तियाँ समाहित हैं। यह माना जाता है कि देवी महादेवी का भी बेल वृक्ष में वास है। जो व्यक्ति महादेव -पार्वती की पूजा अर्चना बेलपत्र अर्पित कर करते हैं, उन्हें महादेव और देवी पार्वती दोनों का आशीर्वाद मिलता है।
भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका उन्हें बेलपत्र अर्पित करना है। बेलपत्र के पीछे भी एक पौराणिक कथा का महत्त्व है। इस कथा के अनुसार- “भील नाम का एक डाकू था। यह डाकू अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटता था। एक बार सावन माह में यह डाकू राहगीरों को लूटने के उद्देश्य से जंगल में गया और एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया। एक दिन-रात पूरा बीत जाने पर भी उसे कोई शिकार नहीं मिला। जिस पेड़ पर वह डाकू छिपा था, वह बेल का पेड़ था। रात-दिन पूरा बीतने पर वह परेशान होकर बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा। उसी पेड़ के नीचे एक शिब लिंग स्थापित था। जो पत्ते वह डाकू तोडकर नीचे फेंख रहा था, वह अनजाने में शिवलिंग पर ही गिर रहे थे। लगातार बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से भगवान शिव प्रसन्न हुए और अचानक डाकू के सामने प्रकट हो गए और डाकू को वरदान माँगने को कहा। उस दिन से बिल्व-पत्र का महत्त्व और बढ़ गया।