(मनोज इष्टवाल)
6 नवम्बर 2016 मुझे आज भी याद है जब तत्कालीन गृह एवं पंचायती राज मंत्री प्रभारी मंत्री प्रीतम सिंह ने उत्तरकाशी जिले को ओडीएफ (खुले में शौच से मुक्त) घोषित किया था। मैं तब भी चौंका था और आज भी मेरा वही हाल है! सच कहूँ तो आज चौंका नहीं हूँ बल्कि निराशा के साथ आत्मग्लानि भी हुई है क्योंकि जिस गाँव का हम भ्रमण करके आये हैं वह दूर से दिखने में सपनों का गाँव जरुर लगता है लेकिन वहां के वासी आज भी आदम युग में जीवन यापन करते नजर आ रहे हैं!
पलायन एक चिंतन के संयोजक रतन असवाल व वरिष्ठ पत्रकार दिनेश कंडवालजी के साथ उत्तरकाशी जनपद के यमुना-तमसा क्षेत्र के कई गाँवों के अध्ययन पर निकली हमारी टीम जब 17 जून 2019 को विकासखंड मोरी के केदारकांठा के नजदीकी गाँव देवजानी में पहुंचे तो तब लगा था कि वाह सचमुच जन्नत में आ गए। सडक से जैसे हमने गाँव की पगडंडी पकड़ी तभी आभास हो गया था कि शायद ही यहाँ तक कोई सरकारी कर्मचारी पहुँचने की जरूरत महसूस करता हो क्योंकि न गाँव तक पहुँचने के लिए कोई सीसी मार्ग था न खंडीचा मार्ग ही! उबड़-खाबड़ रास्ते से गुजरते हम एक खूबसूरत नए बने घर में पहुंचे जो परसुराम पंवार जी का था। यहीं हमारे रात्री बिश्राम के लिए व्यवस्था थी। अभी चाय पानी की व्यवस्था चल ही रही थी कि ठाकुर रतन असवाल बोल पड़े- अरे पंवार जी, इस बार तो शौचालय बन ही गया होगा? पंवार जी हाथ जोड़ते हुए स्वागत मुद्रा में बोले- नहीं साब, अभी सिर्फ गड्डा खुदा है बस जल्दी ही बनकर तैयार हो जाएगा।
यह सुनकर मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि माह मई 2019 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार उत्तराखंड के सभी 13 जिले, 95 ब्लॉक, 7256 ग्राम पंचायतें और 15751 गांव खुले में शौच से मुक्त हो गए हैं। यह बात सुनते ही रतन सिंह असवाल शर्मिंदगी महसूस करने लगे क्योंकि उन्हें लगा था कि उनके द्वारा सरकारी स्तर पर यह बात एक बर्ष पूर्व भी रखी गयी थी कि देवजानी जैसे बड़े गाँव में एक भी खुले में मुक्त शौचालय का निर्माण नहीं हुआ है। अभी यह बात चल ही रही थी कि उनके लड़के व जवाई अनिल पंवार एक साथ बोल पड़े- नहीं एक शौचालय तो बन गया है अभी कुछ ही दिन हुए हैं लेकिन वे भी पूरी तरह विश्वास के साथ अपनी बात रखते नहीं दिखे।
बहरहाल जब मैंने आंकड़े जुटाने शुरू किये तो यकीनन हमारी टीम हैरत में पड़ गयी कि देवजानी व उसी के साथ लगे जीवाणु गाँव में आज भी एक भी शौचालय निर्मित नहीं है। कुछ का कहना यह जरुर था कि एक देवजानी में एक जीवाणु में बन रहा है! जीवाणु से लगभग एक किमी. उपर केदारकांठा की ओर डॉ. विजय राणा का बगीचा है जो श्री व श्रीमती दोनों ही पौड़ी गढ़वाल के जोगीमढ़ी इंटर कॉलेज में अध्यापक हैं का शौचालय निर्माण का सामान हमारे सामने ही खच्चरों में लदकर जा रहा था।
ज्ञात होकि उत्तराखंड सरकार द्वारा 31 मई, 2017 को घोषणा की गयी कि उसने राज्य में खुले में शौच से मुक्ति की स्थिति प्राप्त कर ली है। लेकिन सरकार के इन दावों की कैग ने तभी हवा निकाल दी थी। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में स्वच्छता और स्वच्छता प्रथाओं की स्थिति का आंकलन करने के लिए 2013-14 में आधारभूत सर्वेक्षण किया गया था जिसके आधार पर एक परियोजना कार्यान्वयन योजना जून, 2016 में केंद्र सरकार को भेजी गयी । इसमें यह निर्धारित किया गया था कि स्वच्छ भारत मिशन अवधि के दौरान राज्य में 4,89,108 व्यक्तिगत घरेलू शौचालय, 831 सामुदायिक स्वच्छता परिसर और 7,900 ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं का निर्माण किया जायेगा। राज्य परियोजना प्रबंधन इकाई ने जून 2015 से अगस्त 2015 के मध्य किये गये पुनरीक्षित सर्वेक्षण के आधार पर चिन्हित किये गये 1,79,868 परिवारों की सूची पूर्व चिन्हित लाभार्थियों की सूची में शामिल करने के लिए भारत सरकार को लिखा। लेकिन 30 जून, 2015 की समय सीमा समाप्त होने के बाद इन्हें कार्यान्वयन योजना में शामिल नहीं किया जा सका । इसके अलावा स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत राज्यों को प्रत्येक वर्ष अप्रैल में लाभार्थियों के आंकड़ों को अपडेट किया जाना था लेकिन राज्य परियोजना प्रबंधन इकाई यह करने में भी विफल रही जिसके कारण ये 1,79,868 अतिरिक्त परिवार योजना में शामिल नहीं किये गये ।
खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) घोषित हुए उत्तरकाशी जनपद को दो साल से अधिक का समय हो चुका है, लेकिन अभी जिले में 2 हजार 151 परिवार के शौचालय बनने से छूटे हुए हैं। जबकि परिवारों के बढ़ने से 4664 शौचालयों के निर्माण अभी और होने बाकी है। सरकारी सूत्रों की माने तो छूटे दो हजार 151 परिवारों के शौचालय ढाई करोड़ की लागत से बनेंगे, जबकि बढ़े 4 हजार 664 परिवारों के शौचालयों के निर्माण के लिए पांच करोड़ की धनराशि की मांग स्वजल विभाग ने की है।
मुझे लगता है खुले में शौच मुक्त उत्तरकाशी जनपद के कागजी घोड़े अब पहले की तरह कागजों में दम तोड़ते नहीं दिखेंगे बल्कि अब विज्ञान प्रद्यौगिकी के युग में हर कार्य ट्रांसपिरेंट होता हुआ यहाँ दिखाई देगा। यही कारण भी है कि जिस जिले को आप पूर्ण रूप से खुले में शौच मुक्त मानते हो उसके 500 से अधिक परिवारों के ढाई हजार से अधिक लोग आज भी खुले में शौच करने जाते हैं जबकि सरकारी आंकड़ो के अनुसार उत्तरकाशी जिले के दो हजार 151 परिवार अभी तक इस सुविधा का लाभ नहीं उठा पाए हैं!