(रतन असवाल की कलम से)
आख़िर अपने प्रदेश में अपनी ही सरकार के दौर में गंगा जमुना के मायके के लोग आज भी इस कदर जीने को मजबूर होंगे शर्मिंदा कर जाता है।
यक़ीन मानिये ये उसी सूबे की तस्बीर है जो अभी 18 का हुआ है। यहां अभी भी आवाम अधिकांश इलाकों में जीने की जद्दोजहद करती नज़र आयेगी। यह चलचित्र उत्तराखंड का ही है..जहाँ इस आधुनिकता के दौर में अभी भी लोग आदम युग में जी रहे है । इलाज़ तो छोड़ो इलाज़ पाने के लिये जोख़िम मरीज़ के साथ तीमारदारों को भी उठाना पड़ता है। मरीज़ की जान बचाने के लिये जो जद्दोजहद करनी पड़ती है उसमें किसकी जान चली जाय कोई अंदाज़ नहीं। मरीज़ की जान बचाने के लिये मरीज़ के तीमारदारों को भी जान जोख़िम में डालनी पड़ती ही है।
जनपद उत्तरकाशी की पुरोला तहसील के सर बडियार घाटी के सरगांव की प्रार्थना धर्मपत्नी श्री जय प्रकाश को पेट में भारी दर्द हुआ । घाटी मे कोई प्राथमिक उपचार की व्यवस्था न होने के कारण गांव के युवा उसकी जान बचाने के लिये उन्हें घने जंगलों और उफनती बड़ियाड़ गाड़ पर ग्रमीणों द्वारा बनाये गये अस्थाई पुल से गुजरते हुये ग्रमीण बड़कोट स्वास्थ्य केंद्र तक किसी तरह से ले तो आये लेकिन वहा भी उन्हें देहरादून के लिए रैफर कर दिया गया है ।
गौर तलब है कि इसी बड़ियाड़ गाड़ में कुछ ही दिन पहले ग्रमीणों द्वारा लगड़ी के डंडों से बनाए गए इस पुल पर पैर फिसलने से एक ग्रामीण अपनी जान गंवा चुका है।
पलायन एक चिंतन..! अभियान उत्तरकाशी जनपद की सर बड़ियार घाटी की समस्याओ को प्रमुखता से उठाता रहा है। पूर्ववर्ती सरकारों से लेकर जिला प्रशाशन से लेकर और वर्तमान त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार को भी मौखिक और पत्र के माध्यम से अवगत करा चुका है किंतु हालातो में सुधार के लिए ग्रमीणों को कितना और इंतजार करना पड़ेगा ये बताने को सरकारें तैयार नहीं। कहीं के लिये एयर एम्बुलेंस और कहीं बीमार को अस्पताल पहुँचने के लिये पुल तक नहीं सड़क की बात करना ही बेमानी है।