Monday, February 3, 2025
Homeउत्तराखंडआओ डाक्टर-डाक्टर खेलें और जान गवां दें।

आओ डाक्टर-डाक्टर खेलें और जान गवां दें।

समाज के लिए अपना समय निकालना व उसके लिए दिन रात एक करना देना वरिष्ठ पत्रकार गुणानन्द जखमोला की फितरत में शामिल है। यह सिर्फ एक प्रकरण नहीं हैं बल्कि कई ऐसे प्रकरण लगातार दिखने को मिलते हैं जिनमें जखमोला उसे पूरा करवाने के लिए अपना सर्वस्व झोंक देते हैं। मेरे हिसाब से सिर्फ दो हर्फ़ लिखकर हम पत्रकार नहीं बन जाते । पत्रकार की यह एक अलग से ड्यूटी भी होनी चाहिए। अब इस घटना का संज्ञान ही ले लीजिए।

(गुणानन्द जखमोला)

  • लेबर पेन से तड़प रही एक महिला की दास्तां
  • थैंक्यू डा. रमोला और डा. पदमा, कुछ डाक्टर तो हैं जिनमें इन्सानियत बाकी है।

चमोली गौचर के गांव पनाई तल्ली की 22 वर्षीय आरती आज सुबह प्रसव पीड़ा से ग्रसित थी। वह दून महिला अस्पताल पहुंची तो उसे वहां से गांधी शताब्दी अस्पताल भेज दिया गया। वहां उसको कहा गया कि बच्चा कमजोर है, इसलिए यहां डिलीवरी नहीं हो सकती है, किसी निजी अस्पताल में जाओ। आरती बहुत गरीब है, ऐसे में वो कहां जाएं। इसकी जानकारी उन्होंने समाजसेवी विजय जुयाल को दी। विजय जुयाल जी ने मुझे कहा और मैंने कोरोनेशन के एक वरिष्ठ डा. एनएस बिष्ट को कहा तो उन्होंने गांधी शताब्दी में बात की।

मजबूरीवश अस्पताल की डाक्टर उसे एडमिट करने के लिए राजी हो गयी लेकिन कहा कि पहले बाहर से अल्ट्रासांउड करा लो। आरती के पति के पास अल्ट्रासाउंड के पैसे भी नहंी थे। फिर बात मुझ तक आ गयी। मैंने सोचा कि सीएम हाउस से ही कुछ हो सकता है। मैंने सीएम के पीआरओ रविंद्र जी से बात की। उन्होंने कहा कि ऐसा कैसे हो सकता है कि गांधी या कोरोनेशन में अल्ट्रासाउंड मशीन न हो। फिर उन्होंने मुझे कहा कि दून मेडिकल कालेज के प्रिंसीपल सयाना जी से बात करो, कुछ हल निकलेगा। मैंने प्रिंसीपल डा. सयाना से बात की। उन्होंने बहुत अच्छे ढंग से बात की और कहा कि दून अस्पताल में अल्ट्रासाउंड की सुविधा है लेकिन यहां गर्भवती महिला को लाना खतरे से खाली नहीं है क्योंकि इन दिनों यहां कोरोना आईसोलेशन बना हुआ है। बात ठीक थी। उन्होंने सीएम हेल्पलाइन104 से मदद मांगने का सुझाव दिया। मैंने 104 पर फोन किया। रिस्पांस अच्छा था लेकिन समाधान नहीं।

वहां से मुझे डा. दिनेश चैहान का नम्बर दिया तो उन्होंने कहा कि मैं तो कोरोना टीम देख रहा हूं। कुछ मदद नहीं कर सकता। मैंने हेल्पलाइन में दोबारा फोन किया। हेल्पलाइन से मुझे सीएमओ का नम्बर मिला। सीएमओ ने कंट्रोल रूम का नंबर दे दिया, लेकिन समाधान कुछ नहीं हुआ। आखिरकार मैंने कोरोनेशन के सीएमओ डा. रमोला को फोन किया।

उनका गांधी शताब्दी के नाम से दर्द छलक गया कि वहां की डाक्टर को यदि कुछ कहो तो वो अनाप-शनाप आरोप लगा देती हैं। हालांकि उनका रवैया पूरी तरह से सहयोग का रहा। उनका कहना था कि ऐसा क्या है कि अल्ट्रासाउंड गांधी में नहीं हो सकता। खैर इस मामले की शिकायत मैंने डा. प्रवीन पंवार को की। उन्होंने कहा कि मैं मामले को देखता हूं।

इस पूरी प्रक्रिया में लगभग दो घंटे बीत चुके थे और प्रसव पीड़ा से ग्रसित आरती अस्पताल के दूसरे फ्लोर पर जमीन में पड़ी तड़प रही थी। कुछ देर बात डा. पंवार का मुझे फोन आया कि तकनीकी मामला है और आरती को पहले ही एडमिट किया जा चुका है। खैर, मैंने सोचा अंत भला तो सब भला। लगभग आधे घंटे बाद समाजसेवी विजय जुयाल का फोन आया कि आरती को बेड नहीं दिया गया है और उसे कहा जा रहा है कि हायर सेंटर रेफर करना होगा क्योंकि अस्पताल में बच्चे के लिए इन्क्यूबेटर नहंी है।

मैंने एक बार फिर डा. रमोला को फोन किया और बात बतायी। उन्होंने कहा कि मैं डा. पदमा रावत को वहां भेज रहा हूं, यदि जरूरी हुआ तो महिला को रेफर करना पड़ेगा। थैक्यू डा. रमोला और डा. पदमा। डा. पदमा रावत ने आरती को देखा और सिजिरेयन बेबी हो गयी। मैंने विजय जुयाल जी को कहा, अब उसका नाम कोरोना रखने के लिए कहना। तो यह है हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था की हकीकत। यदि मैं पत्रकार नहंी होता तो संभवतः आरती खुद खबर बन गई होती।

Himalayan Discover
Himalayan Discoverhttps://himalayandiscover.com
35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
RELATED ARTICLES