Sunday, December 22, 2024
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अनूठी पहल…..सरसब्ज होता सम्पन्न सीला गाँव (बांघाट)! इस टीम ने सचमुच कमाल कर दिया!

(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 1 जनवरी 2020)

ठीक एक बर्ष पूर्व यानि 1 जनवरी 2019 जब पलायन एक चिंतन की टीम ने यहाँ डेरा डाला था तब लग रहा था कि ये लोग पगला गए हैं ! पगला इसलिए गए हैं क्योंकि इन्होने जो जमीन चयन की थी वह बलुवी थी! लेंटेना, कीकर की झाड़, और आस पास मीलों फैले बड़े बड़े बंजर खेत थे जहाँ 70 बर्ष से कोई खेत आबाद नहीं हुआ था!

कैंप गोल्डन महासीर साईट

उस दिन जब मैं अपने मित्रों के साथ पिट्ठू उठाकार बांघाट पुल से लगे सीला गाँव की हलकी की चढ़ाई चढ़ने लगा तो सडक से लगी चक्की, पानी की लगभग सूखी धारा के बगल में टेलर मास्टर की दूकान बिलकुल सूनी थी! कभी यही चक्की भीड़ जुटाया करती थी आज वहां दो बुजुर्ग बीड़ी फूंकते दिखे थे!

जनवरी 2019 में ये लोग यहाँ तम्बू बम्बू लेकर आये थे जिनमें पत्रकार मित्र अनिल बहुगुणा, गणेश काला, अजय रावत व पलायन एक चिंतन के संयोजक रतन सिंह असवाल प्रमुख थे! उसके कुछ दिन बाद अजय रावत व गणेश काला की सोशल साइट्स पर कुछ सुंदर फोटो अपडेट हुई जिनमें यही बंजर अब आबाद होने लगे थे! लेंटेना, कीकर जैसी कई झाड़ियों की जड़ों के ठूंठ आसमान टांग करके चित्त पड़े दिख रहे थे! राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विद्यार्थी छात्र-छात्राएं वहां श्रमदान कर उस जमीन का श्रृंगार करने में जुटे थे! धूल माटी में पसीना बहाते ये कलमकार अब लोहे के औजारों से भविष्य की इबादत लिखने को आतुर थे! बीज बोये, फसल उगी लेकिन 70 साल की बंजर जमीन महीनों के परिश्रम को लील गयी! लाखों रूपये की मेहनत कुछ जमीन खा गयी तो कुछ जंगली जानवर व रही सही कसर को सीला व आस-पास गांव के जानवर आकर पूरी कर देते!

एक बर्ष पूर्व सीला गाँव के खेतों की तस्वीर

कहावत है- “हिम्मते मर्दा मर्दे खुदा!” ऐसा ही कुछ उन उदास फीके चेहरों ने दोहराया! बस संघर्ष की कसौटी पर इन कलमकारों के खरे उतरने की अब अग्नि परीक्षा थी क्योंकि उनकी बर्बाद हुई इस मेहनत के कसीदे कस्बाई बाजार के बीडी के तुडडों से उठते धुवें, ताश की गप-शप्प, चाय की चुस्कियों के साथ ठहाकों में गूंजती सुनाई देती! लोग आपस में जिक्र करते- अरे….! ये हैं पढ़े लिखे समाज के कर्णधार! अब गाँव वालों को सिखाने चले कि पलायन कैसे रोकना है! मत्ती मारी गयी इनकी! एक बार तो सोचते कि लोगों ने ये जमीन ऐसे ही तो नहीं छोड़ दी होगी!

वह अप्रैल 2019 की बात है जब पलायन एक चिंतन के संयोजक रतन असवाल के साथ मैं इस कैंप में पहुंचा! अब तक इसका नाम गोल्डन महासीर कैंप पड़ चुका था! सीला गाँव की आवोहवा अब पहले जैसी नहीं दिख रही थी! यहाँ मेरे परिवार की बेटी परमेश्वरी की ससुराल है! वह पूर्व में इस गाँव की प्रधान थी! अचानक उसकी याद आते ही मैं थोड़ा शर्मिंदा सा हो गया क्योंकि देहरादून से यहाँ पहुँचने पर ध्यान आया कि यहाँ बिटिया रहती है! शर्मिंदा इसलिए कि कहीं अचानक रास्ते में मिल गयी तो बोलेगी- चाचा जी, छुपते-छुपाते आखिर जा कहाँ रहे हो! शुक्र है ऐसा कुछ नहीं हुआ! सच कहूँ तो निराशा हुई क्योंकि यह गाँव तो इतना सरसब्ज रहता था कि घर-घर में उमड़ी भीड़ व यहाँ के अच्छे खाते पीते परिवारों के किस्से आम थे! सीला गाँव नयार घाटी के सम्पन्न गाँव में से एक गिना जाता था! यहाँ पूर्वी नयार नदी में गिरने वाले ग्वीन गदेरे के जल से यहाँ की खेती की सिंचाई होती थी जहाँ उन्नत किस्म के खुशबुदार चावल पूरे क्षेत्र में मशहूर थे! यह ग्वीन गदेरा कभी द्वारीखाल से बांघाट तक आने वाले ढाकरी मार्ग का प्रतिनिधित्व करता था! आज वही सीला गाँव इतना सुनसान लगा कि मैं हतप्रभ था!

बर्ष 2019 के अंतिम माहों में बदलाव

माथे व बदन का पसीना पोंछ अभी गाँव का प्राथमिक विद्यालय पार ही किया था कि यहाँ के बंजर खेतों ने मुझे चौंका दिया! मीलों फैले ये खेत कभी गाँव की खुशहाली के गीत गाया करते थे जिसकी मेंड़ों पर उगे बासंती फ्योली के फूलों में भंवरें गुंजन करते! माँ बहने खेतों में प्रसन्नचित्त निराई-गुड़ाई करती, हरे घास के रूप में गेहूं के बीच के कूरा निकालती! खेतों की मुंडेरों के बीच से अन्य गाँवों के लिए बढे रास्ते पर चलते राहगीरों से बातचीत करती यहाँ की आलाहित छटा में चार चाँद लगा देती! मैं रतन असवाल जी से बोला- यार ठाकुर साहब, यहाँ कहाँ फंस गये! इस गाँव को क्या हो गया? वे पीछे मुड़े और पलटकर हंसे- देख लो पंडा जी! ब्राह्मणों का गाँव है! सब सर्व सम्पन्न हैं इसलिए गाँव छोड़कर ज्यादात्तर शहरों में बस गए! अब हमारी जिम्मेदारी इन्हें वापस लाने की बनती है! हम कितना सफल हो पाते हैं यह देखना होगा! क्योंकि अब पलायन एक चिंतन के नाम पर बैठकें, सेमीनार बहुत हो गयी अब कार्यप्रणति का समय है! मैं खामोश हो गया…! बस निरा बंजर धरती पर उनके पदचापों का अनुशरण करता आगे बढ़ने लगा! लगभग आधा किमी. चलने के बाद हम कैंप में पहुंचे जहाँ एक ओर से अजय रावत व दूसरी ओर से गणेश काला खेतों में घुस आया आवारा पशुओं को खदेड़ने का काम कर रहे थे! दो नेपाली मजदूर लकड़ी फाड़ रहे थे! एक सफ़ेद कुत्ता भुंs भुंs कर अपने गले की खरास मिटाने लगा तो दूसरा काला कुत्ता भी आ गया! शायद वे रतन असवाल का हैट पहचान गए थे इसलिए दूर खड़े ही पूँछ हिलाने लगे! अब तक हम कैंप की गर्म रेत में आ गए थे जहाँ भगोने में चाय खोल रही थी! यह सब शुरूआती दौर था!

लौटती हरियाली के परिदृश्य में सीला गाँव

पूर्वी नयार के किनारे आकर स्नान न हो ऐसा भला कहाँ सम्भव था! अब तक कुल मिलाकर चार कैंप लगे थे व कुछ पर कुछ कारीगर काम कर रहे थे! चाय पीने के बाद मैं चहलकदमी करता कैंप के अंतिम छोर की तरफ बढ़ा जहाँ ग्वीन गदेरा आकर पूर्वी नयार में समाता है! सोचा इस बार रतन सिंह असवाल ने यहाँ काम करने की बात ठान कर बेबकूफी कर दी! क्योंकि नयार के भलमानस को मैं प्रकृति के आधार पर जानता हूँ! उन्हें व्यक्तिगत सहयोग यहाँ मिलना मुश्किल है!

१- सीला गाँव, २- कैंप गोल्डन महासीर 3- ढाडूखाल से नयार घाटी का बिहंगम दृश्य!

1 जनवरी 2020 आज इसी टीम के एक सदस्य व बिजनेशमैन राकेश बिजल्वाण की जन्मदिन पार्टी थी! विगत रात्री ही रवाई महोत्सव से लौटा था, थकान तो थी लेकिन अपने भतीजे ललित इष्टवाल को फोन कर बोला कि सुबह कार तैयार रखना हें निकलना है! पत्रकार भतीजा आशीष नेगी व ललित समय के अनुसार साथ हो लिए! आज जब मैं सीला गाँव के उसी प्राथमिक विद्यालय को पार कर आगे बढ़ा तो आश्चर्य व ख़ुशी से चेहरे में रौनक आ गयी! करीब डेढ़ सौ नाली से ज्यादा जमीन पर तार बाड व गेंहूँ की छोटी हरी फसल लहलहाती दिखी! नीचे नजर दौड़ाई तो कई बीघा जमीन पर बोये गेहूं के अंकुर अपनी बाल्यावस्था छोड़कर युवा होने को मचला रहे थे! मैंने तुरंत ठा. रतन सिंह असवाल का फोन लगाया! मुझे पता था कि वे आजकल नेपाल में हैं! फोन लगते ही पूरे मनोयोग से बोला- ठाकुर साब, आज आपको हृदय से सलूट करने का मन कर रहा है क्योंकि जिस परिकल्पना को लेकर पलायन एक चिंतन की टीम का जन्म हुआ था आज उसकी पहली पौध देखकर बेहद प्रफुल्लित हूँ! सचमुच इस टीम ने वह कर दिया जिसकी परिकल्पना ही की जा सकती थी! सीला गाँव के सम्पन्न लोगों के बंजर खेत आबाद होने लगे हैं! ठाकुर रतन असवाल शायद मेरे भावुक स्वरों की भाषा जान चुके थे! उनकी आवाज की गमगीनी बता रही थी कि उन्हें ऐसे ही कम्प्लिमेंट का जाने कब से इन्तजार था!

ये है नयी क्रांति! तीन प्रारूप

इस बार पहली बार मैंने गाँव की स्कूल के छोटे से मैदान में कुछ खूबसूरत बच्चे खेलते हुए देखे! जो हिंदी में बतिया रहे थे! एक बुजुर्ग हाथ में दरांती लिए इसी रास्ते जंगल की तरफ बढ़ रहे थे ! आपस में जय राम जी की हुई तो उन्हें भी अपने दिल की ख़ुशी का इजहार करवाया! वे बोले- हाँ साहब, जब आप इतने खुश हो रहे हैं तो हम कितने खुश होंगे जिन्होंने पूरी जिन्दगी इन खेतों को संवारने में खफा दी! ये बात सच है कि जब से इन लोगों ने यहाँ कैंप किया तब से गाँव की रौनक भी लौटने लगी क्योंकि अब नयी पीढ़ी को भी लगने लगा है कि इस माटी का मोल क्या है! ऊपर के गेहूं की फसल तो गाँव के लोगों ने ही शुरू की है लेकिन जो नीचे कई बीघा आबाद जमीन आपको दिख रही है न ..! जिसमें हाथ से चलने वाला ट्रेक्टर हल दिख रहा है वह एक बीडीओ साहब हैं मैदान के! उन्होंने इसमें उन्नत किस्म के गेंहूँ बोये हैं और कहा है कि वे इसे तीन साल आबाद करके फिर वापस गाँव वालों को आबाद खेत लौटा देंगे! फिर अंगुली से इशारा करते बोले और ये देखिये ये जो कैंप टाइप बन रहा है न ! इसे अपने ही गाँव के कोई रईस आदमी बना रहे हैं! लगता है अब लोग दुबारा गाँव की खुशहाली लौटाने वाले हैं!

सचमुच इन बुजुर्ग के शब्दों में पीड़ा के साथ ख़ुशी भी थी! फिर बोले- ये जो आप खेत देख रहे हैं न ..! ये आपकी बिटिया लोगों के हैं ! अब ये भी आबाद होंगे मुझे पूरी उम्मीद है क्योंकि ज्यादात्तर खेत तो उनके लोगों ने आबाद कर ही रखें हैं! फिर ये सज्जन विदा हुए! मेरी आँखें छलक पड़ी! मानों मेरा गाँव आबाद हुआ हो, मेरे खेत सरसब्ज हुए हों!

कैंप गोल्डन महासीर में इस बार रौनक ही कुछ जयादा थी क्योंकि इस बार यहाँ 50 से ज्यादा लोग एक साथ पहली बार मुझे दिखाई दिए उसमें छोटे बच्चों की किलकारी, पेड़ों के झुरमुटों में बैठी कई किस्म की चिड़ियाओं की चहचहाट से घुल मिल रही थी! महिलाओं आनन्दित दिख रही थी मानों महीनो बाद कुछ फुर्सत व शकुन के पल मिलें हों! मैं अभी गूल की मुंडेर से कैंप की बाढ़ पार ही किया था कि एक बुलंद सामूहिक स्वर ने ख़ुशी का इजहार करते हुए मेरा अभिवादन किया ! कैंप पहुँचते ही नहीं सी लक्ष्मी बिटिया ने मेरा तिलक किया तो सरस्वती ने मेरे माथे फूल फेंके! इन दोनों का क्या नाम होगा यह मुझे अब भी नहीं पता लेकिन ये अबोध बेटियाँ मेरे लिए माँ लक्ष्मी व सरस्वती के वरदान सी थी! कभी जिस कैंप में मैंने चार टेंट देखे थे अब वहां बेहद सलीखे से दो दर्जन से ज्यादा कैंप लगे हुए थे!

रात्री जब जन्मदिन केक दिखे तो पता चला अकेले राकेश बिजल्वाण नहीं बल्कि अजय रावत जी की अर्धांगनी श्रीमती ममता रावत व फार्मासिस्ट नरेश भारद्वाज जी का भी जन्मदिन है! फिर नए साल की पहली रात जश्न की ऐसी रात हुई कि क्या कहने! बर्षों बाद मुझे गंदर्भ समाज के बद्दी गीत सुनने को मिले जिसमें क्या युवा क्या बुजुर्ग और क्या बच्चे ! सबने जमकर नृत्य किया व इस समाज के लोगों को मेरी सोच से कई अधिक दान दक्षिणा भी दी! सुबह घंटी की आवाज गूंजी …यह चाय का अलार्म था! चाय की चुस्कियों के बीच उन खेतों की तरफ लपका जहाँ मेर लगाया एक पेड़ अब लगभग तीन से चार फिट उंचाई ले चुका था! उसे जवान होते देख मन प्रफुल्लित हुआ तो अचानक बद्रीश वन (बद्रीनाथ) में 2003 में रोपा देवदारु का वह पौधा याद आ गया जिसे देखने मैं प्र्तिबर्ष बद्रीनाथ यात्रा पर जाया करता हूँ! इस बार नहीं जा पाया तो लगा हमें आयु के लिए प्राण देने वाला वह पेड़ जाने कैसा हुआ होगा?

गोल्डन महासीर कैंप यकीनन अब अपने फोर्मेट में आ गया है और एक साल तक इस टीम ने जिस तरह यहाँ की गर्मी सर्दी बरसात में तप-तपकर इसे प्राण दिए हैं उसका उदाहरण इस कैंप के खेत के बीच में खड़ा वह बोर्ड है जिसमें लिखा है “पर्वतीय आजीविका उन्नयन शोध एवं प्रशिक्षण केंद्र! यकीन मानिए जो लोग अपने किये कराये पर पानी फिरता देख दुबारा उसी प्रयास को सफल करने में असमर्थ रहे हों उन्हें इन बुद्धिजीवियों की जमात के बीच पहुंचकर प्रशिक्षण लेने की आवश्यकता है! गोल्डन महासीर कैंप भविष्य में क्या रोजगार सृजन यहाँ कर पायेगा यह तो भविष्य ही बताएगा लेकिन पलायन एक चिंतन की इस टीम ने साबित कर दिया कि जिस बंजर धरती पर उन्होंने 70 साल बाद बीज बोये थे उन बीजों ने सीला जैसे गाँव की खुशहाली को लौटाने का भागीरथ प्रयास तो कर ही दिया है!

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