Saturday, July 27, 2024
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सुखद!– रूपकुण्ड और सप्तकुंड की पहाड़ियों में बरसों बाद दिखाई दी दुर्लभ फेन कमल की भरमार, प्रकृति प्रेमी बेहद खुश…..।

(ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!)

भले ही उत्तराखंड में इस बार अभी तक बरसात की बारिश सामान्य से 23 फीसदी कम हुई है। 24 जून को मानसून के दस्तक देने के बाद से करीब 86 दिन बाद शुक्रवार तक प्रदेश में औसत 1128.2 मिलीमीटर बारिश होनी थी, लेकिन इस अवधि में केवल 871.4 मिलीमीटर बारिश हुई। अब राज्य में मानसून विदा होने को है। लेकिन अबकी बार एक सुखद खबर से प्रकृति प्रेमी और वन विभाग के चेहरे खिल उठे हैं। इस बार चमोली के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थित बुग्यालो और पहाडियों में बरसों बाद संजीवनी बूटी अर्थात फेन कमल की भरमार देखने को मिली। जो की पर्यावरणीय दृष्टि से बेहद शुभ संकेत और शुकुन भरी खबर है। विगत दिनों सुतोल के रास्ते बेहद कठिन रूपकुण्ड ट्रैकिंग कर वापस लौटे ट्रैकर मकर सिंह नेगी और रोमांच से भरी सप्तकुंड ट्रैक से वापस लौटे ट्रैकर बृहषराज तडियाल और सुखबीर नें बताया की इस बार रूपकुण्ड की पहाड़ियों से लेकर सप्तकुंड तक दुर्लभ हिमालयी पुष्प फेनकमल की भरमार है। बरसों बाद इतनी संख्या में फेनकमल का खिलना पर्यावरणीय दृष्टि से शुभ संकेत हैं।

गौरतलब है कि उत्तराखंड के चमोली जनपद में फूलो की घाटी, रूपकुंड, सप्तकुंड, नंदी कुंड, हेमकुण्ड, द्रोणागिरी, चिनाप फूलों की घाटी, सहित अन्य क्षेत्र में औषधीय गुणों से युक्त बेहद सुंदर और अतिदुर्लभ फूल पाए जाते हैं, जिनमें ब्रह्म कमल और फेन कमल प्रमुख हैं, इनकी सुंदरता हर किसी को मन्त्र मुग्ध कर देने वाली होती है। फेनकमल हिमालय में 4500 मीटर से 6000 मीटर तक की ऊचाई पर मिलता है। जिसका वैज्ञानिक नाम Sassurea Simpsoniata है। यह अमूमन जुलाई मध्य से अक्तूबर मध्य के बीच बहुतायत मात्रा में खिलता है। खासतौर पर उन पहाडियों में जहां पत्थरों की भी भरमार होती है। सफेद रंग के इस फूल को देखने में ऐसा लगता है जैसे मानो किसी ने पत्तियों के बीच साबुन का झाग का गोला सा बना दिया हो। कहा जाता है की इस पुष्प से भगवान शिव के अघोरी औघड़ रूप की पूजा होती है। यह ब्रह्म कमल की तरह खुशबूदार नहीं होता है। इस पुष्प की धार्मिक महत्ता भले ही कम है, मगर औषधीय गुणों में यह ब्रह्मकमल या अन्य हिमालयी जड़ी बूटियों में सबसे उच्च स्थान रखता है। इसीलिए आयुर्वेदाचार्य और आयुर्वेद मनीषियों द्वारा इसे ही हिमालय में प्राप्य संजीवनी बूटी माना गया है। मान्यता है कि राम – रावण युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण, मेघनाद द्वारा शक्ति लगने के कारण मूर्छित हो गए थे तो वीर हनुमान द्वारा हिमालय के द्रोणागिरी पर्वत से इस बहुमूल्य बूटी वाले पहाड़ को ही लंका ले जाया गया। जिसके बाद सुषैण वैद्य की सहायता से लक्ष्मण के प्राण बचाए गए थे।

वास्तव में देखा जाए तो तो इस बार हिमालय के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में स्थित बुग्यालो और पहाडियों में संजीवनी बूटी अर्थात फेन कमल की भरमार न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से बेहद शुभ संकेत हैं अपितु अन्य औषधीय पादपों के लिए भी शुभ है। क्योंकि विगत कई बरसों से औषधीय पादपों को लेकर बेतहाशा दोहन की खबरें सामने आई थी। लेकिन अब उम्मीद की जानी चाहिए की आनें वाले समय में भी लोगों को हिमालर की पहाड़ियों में बहुमूल्य पुष्प फेनकमल की भरमार देखने को मिलेगी।

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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