(हरीश कपकोटी की कलम से )
इधर देश के प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार समाप्त होते ही बाबा केदार के धाम केदारनाथ की शरण में जा पहुंचे तो दूसरी ओर उत्तराखंड के कांग्रेसी राजनेता प्रदीप टम्टा (अल्मोड़ा लोकसभा सीट प्रत्याक्षी) पूर्व विधायक कांग्रेस हेमेश खर्कवाल, जिला पंचायत अध्यक्ष बागेश्वर हरीश ऐठानी अपने दल-बल सहित माँ सरयू नदी के उदगम स्थल की यात्रा पर निकल पड़े! बागेश्वर से 80 किमी सडक मार्ग व वहां से लगभग दो से ढाई घंटे का दुरूह पैदल मार्ग आपको सरयू नदी के उदगम स्थल सह्त्रधरा व बिश्राम स्थल झूनी गाँव तक चार घंटे में पहुंचा जा सकता है है! सरयू उद्गम तक पहुँचने के लिए किन-किन रास्तों से होकर जाना पड़ता है, व यहाँ की यात्रा का क्या महात्म्य है इस बारे में हरीश कपकोटी लिखते हैं:-
सरयू के इस उद्गम स्थल को सरमूल कहा जाता है! जिस स्थल पर मां सरयू धरती पर उतरती हैं उस जगह को ‘सौधारा’ कहते हैं! सरयू नदी का उदगम स्थल बागेश्वर से 80 किलोमीटर दूर पतियासार गांव है, बागेश्वर से कपकोट, कपकोट से भराड़ी , सेलिंग (तप्तकुंड महादेव ), मुनार , ताकुली गांव, मोटर मार्ग से होते हुए पतियासार के लिए किसी वाहन से जाया जा सकता है!
सूपी, पतियासार गांव, से पैदल सफर शुरू होता है. करीब एक घंटे तक लगातार कंटीली झाड़ियों के बीच होते हुए खड़ी चट्टानों को पार करते हुए आप अति दुर्गम क्षेत्र गांव बैछमधार (नन्दा देवी मंदिर ) पहुंच जाओगे. जंगलों के बीच से होकर बैछम गांव पहुंच कर आगे आपको खड़ी चट्टानों को पार करते हुए ऊपर चोटी मे पहुंच कर तपड़ से होकर खलझूनी गांव का दृश्य दिखाई देता हैं. खलझूनी गांव से फिर आगे सरयू नदी के उदगम तट पर बसे अन्तिम गांव झूनी (नन्दा देवी मंदिर) चार घंटे मैं पहुंच कर यहां रात विश्राम करते है।
एक और पैदल मार्ग पतियासार भद्रतुंगा होते हुए झूनी गांव जाता हैं. भद्रतुंगा मंदिर – भारद्वाज ऋषि का कर्मस्थल, अंतिम तीर्थस्थल जिसे गया के बराबर पवित्र माना जाता है. झूनी गांव से सहस्त्रधारा की यात्रा करनी होगी. सरमूल (सहस्त्रधारा) पहुंचने के लिए यहां से करीब दो घंटे का सफर और है.
सरमूल पहुंचकर आपको उस अलौकिक ऐतिहासिक स्थल के दर्शन हो जायेंगे, जहां को लेकर ढेरों किवदंतियां प्रसिद्ध हैं. यहां भगवान की खोली यानी वह स्थान जिस जगह से भगवान श्रीराम आया-जाया करते थे आपको दिखाई देगी. पुराणों में कहा गया है कि इसी जगह पत्थर में जो छिद्र हैं, वहां से भगवान सतयुग व द्वापर में आते-जाते रहे हैं. बताते हैं कि इस पत्थर का आकार मछली की तरह है जिसकी पूंछ आगे मानसरोवर पर पहुचती है। यहीं कहीं सोने का पुल भी है, पुराणों के अनुसार जिसका आने-जाने के लिए भगवान इस्तेमाल करते हैं. कहते हैं कि इस जगह पर किसी का पहुंचना नामुमकिन है. जिस जगह पर सोने का पुल है उस जगह पर पहुंचने के लिए लोगों को कड़ी तपस्या करनी पड़ती है।
बताते हैं कि एक बार एक व्यक्ति ने यहां आकर सोने के पुल तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन वह कभी लौट कर वापस ही नहीं आ पाया. कहते हैं कि जहां से सहस्त्रधारा की सीमा शुरू हो जाती है वहां कोई भी अशुद्ध व्यक्ति नहीं जा सकता. एक अदृश्य शक्ति उसे वहां जाने से रोक देती है. यहां एक कटा हुआ पेड़ कई सौ सालों से है. जो भी व्यक्ति यहां से आता-जाता है वह इस पेड़ पर एक लकड़ी का टुकडा रखता है, जिसके बाद वह पवित्र हो जाता है.
यहां एक पौराणिक तीर्थ मुनि विशिष्ट की तपोस्थली, भगवान शिव का मंदिर और एक सोने का पुल भी है, जिसे देखने गया कोई व्यक्ति कभी लौट के ना आ सका. सहस्त्रधारा तीन धाराओं का संगम है सरमूल, दुग्ध, और सहस्त्रधारा. यह वह स्थान है, जहां लक्ष्मण ने शेषनाग का रूप धारण कर चट्टान पर फन मारे और यहां से दूध की नदी बहने लगी. यही वह स्थान है, जहां कभी वशिष्ट मुनि ने वर्षों तक तपस्या की थी. उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों से गंगा, यमुना, गोमती, भागीरथी कई तरह की नदियों का उद्गम होता है. इन्हीं नदियों के साथ बागेश्वर से अयोध्या तक बहने वाली नदी सरयू का भी उद्गम उत्तराखंड के बागेश्वर जिले से होता है. जहां सरयू और गोमती तट पर बसा है बाबा बागनाथ का मंदिर.