Saturday, July 27, 2024
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संकट चौथ (चौदस)…जिस दिन कांस की थाली में उतर आता है चाँद! सचमुच संकट में है देवभूमि का यह धार्मिक लोक त्यौहार!

संकट चौथ (चौदस)…जिस दिन कांस की थाली में उतर आता है चाँद! सचमुच संकट में है देवभूमि का यह धार्मिक लोक त्यौहार!

(मनोज इष्टवाल)

अभी विगत एक माह पूर्व की बात ठहरी! उस दिन करवा चौथ था और प्रवासी उत्तराखंडी महिलायें निर्जला व्रत के साथ खूब सज-धजकर फोटो सोशल साईट पर डाल रही थी! सच कहूँ तो यह स्वस्थ्य परम्परा की धोतक लग रही थी! करवा चौथ जो था! एक पंथ दो काज…! पहला पति के दीर्घायु की कामना और दूसरा साल में एक बार पति की तरफ से मिलने वाला मनचाहा उपहार!

ऐसे में दिल्ली में प्रवासी टिहरी गढ़वाल की समाजसेविका श्रीमती रोशनी चमोली भी दुल्हन सी सज-धजकर जब करवा चौथ पर लाइव आई तो मुझे आश्चर्य हुआ कि “भयात” संस्था की अध्यक्ष व पर्वतीय कला मंच महरौली दिल्ली की यह महिला जो प्रवास में भी सिर्फ और सिर्फ उत्तराखंडी लोक संस्कृति की बात करती है! टिहरी गढ़वाल के ग्राम गहड़ (हिंडोलाखाल देवप्रयाग) की वर्तमान में प्रधान हैं! जब भी फोन पर बात हो ठेठ गढ़वाली में बोलती हैं आज वही अपने पर्वतीय लोक परम्पराओं को तिलांजलि दे करवा चौथ की दुल्हन बनी हुई हैं! मैं दिग्भ्रमित था कि नहीं ये नहीं हो सकता क्योंकि इनका पर्वतीय कला मंच विगत कई बर्षों से महरौली दिल्ली में बड़ी धूम-धाम से मकरैणी-उत्तरैणी त्यौहार मनाते आ रहे हैं विगत बर्ष मुझे भी इनके इस बिशाल मंच में सम्मान दिया गया था फिर यह सब क्या! बस श्रीमती रोशनी चमोली का लाइव सुनना शुरू कर दिया! पर्त-दर-पर्त उन्होंने बखूबी वह पीड़ा उकेरनी शुरू कर दी जिसका मुझे ज़रा भी अंदेशा नहीं था!

(श्रीमती रोशनी चमोली)

श्रीमती रोशनी चमोली तब बोली- मेरा अनुरोध है समस्त पर्वतीय समाज की महिलाओं से कि जिस जश्न के साथ हम यह करवा चौथ मना रही हैं उसी जश्न से हम अपने सबसे गौरान्वित धार्मिक लोक परम्पराओं से जुड़े त्यौहार संकट चौदस (चौथ) को भी मनाएं क्योंकि जब हम बाहरी समाज से उनके लोक त्यौहारों की कम समझ रखकर भी उनकी नकल करते हुए उन्हें खूब बढ़ चढ़ कर मना रहे हैं तो क्यों न हम भी अपने लोक त्यौहारों में ऐसी भागीदारी करें कि बाहरी समाज उन्हें अंगीकार करे व वे भी हमें ऐसे ही जाने जैसे हमारी गंगा-जमुना धर्म संस्कृति का डंका पूरे विश्व में है और पूरा विश्व चार धाम यात्रा में हर बर्ष जुट रहा है! श्रीमती रोशनी चमोली ने तब यह पीड़ा भी जताई कि बिहार का छट हमारी नदियों में मनाया जा रहा है जबकि हम अपनी लोक परम्पराओं और बेहद पर्यावरणीय लोक त्यौहारों को पीछे छोड़ते जा रहे हैं! हमारे प्रदेश एन छट पूजा का तो सरकार सार्वजानिक अवकाश घोषित करती है लेकिन हमारी लोक परम्पराओं पर केन्द्रित हमारे ऐसे व्रत त्यौहार आज भी उपेक्षित हैं! मैंने उन्हें बाद में उनकी इस सोच की शुभकामनाएं दी तो रोशनी चमोली बोली- भैजी, आपके हाथ में कलम का जादू है आप संकट चौदस की परम्परा को हर माँ-बहन के बीच अपने शब्दों में रखकर उसे समझा सकते हैं! मैं विश्वास दिलाती हूँ कि मैं हर सम्भव इस मृत प्राय: हो रहे धार्मिक अनुष्ठानात्मक लोक त्यौहार की विधि अपनी हर सहेली तक पहुंचाऊंगी और उनसे अनुरोध करुँगी कि वे इसे और आगे प्रसारित करें!

ऐसा नहीं है कि श्रीमती रोशनी चमोली के अंदर ही यह पीड़ा है! करवा चौथ की शुभकामनाएं देते हुए इंडिया टुडे ग्रुप के आर्ट डायरेक्टर चन्द्रमोहन ज्योति, पलायन एक चिंतन के संरक्षक अध्यक्ष रतन सिंह असवाल सहित कई अन्य बुद्धिजीवियों ने भी यह बात सामने रखी कि क्यों हम इस पर्व को भूल रहे हैं! चन्द्रमोहन ज्योति और रतन सिंह असवाल ने वकायदा अपनी अर्धान्गनियों के साथ चन्द्र को अर्घ चढ़ाती फोटो भी सोशल साईट पर डाली हैं! वहीँ हिमालयन समीर के नाम से ख्यात हमारे मित्र समीर शुक्ला जी ने लिखा था यह संकट चौथ है चौदस नहीं! तो कहना चाहूँगा – जी समीर जी, यह कृष्ण चतुर्थी ही है और अज्ञानता वश हम सब इसे संकट चौदस ही कहते हैं! पहाड़ी समाज चौथ यानि चार और चौदस यानी 14 के भेद को नहीं समझता! यह उस काल से चला आ रहा पर्व है जब सब अंगूठा छाप हुआ करते थे व पंडितों ने भी इसका भेद नहीं समझाया!

(फोटो-चन्द्रमोहन ज्योति)

संकट चौथ या चौदस के नाम से प्रसिद्ध इस धार्मिक लोक त्यौहार को आखिर क्यों मनाया जाता है! जाहिर सी बात है पति निरोग रहे जैसे करवा चौथ पर होता है ! अपने पति की दीर्घायु की कामना के लिए महिलायें दिन भर निर्जला व्रत रखती हैं! लेकिन यहाँ स्वार्थ सिर्फ पति तक ही सीमित नहीं हैं ! इस त्यौहार की परम्परा में पति, पुत्र व भाई सभी आ जाते हैं! जिन माँओं के पुत्र हैं लेकिन उनके गृह क्षीण हैं, पति है लेकिन दूर हिमालयी बॉर्डर पर प्रहरी है या प्रवास में है ! जिन बहनों का भाई है या जिन बहनों को या माँओं को भार या पुत्र सुख प्राप्त नहीं है उन सबके लिए यह व्रत रखा जाता है! जबकि करवा चौथ सिर्फ सुहागिन महिलायें अपने पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं और बदले में उनसे उपहार की अपेक्षा भी रखती हैं!

मेरी अपनी सोच में यह करवा चौथ का व्रत इसलिए हर समाज के बीच अपनी पैठ बनाने में कामयाब हुआ क्योंकि इसमें लेना और देना बराबरी का सौदा है! पत्नी निर्जला रहती है तो उसके व्रत तोड़ने के लिए पति उसकी ख़ुशी को दोगुनी करने के लिए उसे उपहार प्रधान करता है जबकि संकट चौदस में सिर्फ तिल या चोलाई के लड्डू का भोग ही व्रत तोड़ता है व चाँद भी पूरी रात गुजरने का इन्तजार करवाता है! तब पति पास हो या न हो लेकिन व्रत तो रखना ही पड़ता है!

त्याग तपस्या की प्रतिमूर्ति के रूप में जहाँ हमारे समाज की महिलायें अग्रिम पंक्ति में रही वहीँ अब सामाजिक बदलाव के चलते जब ज्यादात्तर माँ-बहनों के पति साथ साथ है तब उन्होंने यह संकट टालना ही उचित समझा है ! सीधी सी बात कहूँ तो वह यह है कि वैभवता के बढ़ते ही हम सबके धर्म कर्मों में कमी आई है और यही कारण है कि आज माँ बहनें संकट चौदस जैसात्यौहार मनाने में हिचकिचाती हैं क्योंकि आज उन्हें पता है कि वे अभाव की जिन्दगी नहीं जी सकती तो फिर ऐसे लोक त्यौहारों से अपने शारीरिक सुख का क्यों ह्रास करें!

संकट चौथ इस बार आगामी 24 जनवरी 2019 में है जबकि पूर्व में विगत 5 जनवरी 2018 को यह मनाया गया है! अत: अनुरोध है कि आगामी 24 जनवरी 2019 को हम इस लोक पारम्परिक त्यौहार के लिए उसी धूम धाम से खड़े हों जैसे करवा चौथ के लिए! इसके लिए महिला ही नहीं पुरुषों को भी तैयारी करनी होगी उन्हें करवा चौथ की तरह अपने त्यौहार पर उपहार परम्परा जीवित करनी होगी ताकि पर्वतीय मूल या उत्तर भारत की महिलायें इस त्यौहार को अगले बर्ष भूल न पायें और तैयार रहें कि बस संकट चौथ आने ही वाली है! 24 जनवरी को संकट चौदस का यह पर्व मघा कृष्ण पक्ष चतुर्थी पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र गुरुवार के दिन  में पड़ रहा है इस दिन आपको चंद्रमा का इन्तजार 11:30 बजे रात्री तक करना होगा!

कैसे करें व्रत:-

अक्सर इस पर्व को माँ बहनें निर्जला रखकर ही करती हैं! इसलिए पंडित जी से पूछ लें कि क्या निर्जला में जल की बूंदे मुंह में टपकाई जा सकती हैं यानी गंगा जल की बूंदे! माँ बहने इस दिन गुड चोलाई के लड्डू, तिल गुड के तिलड्डू बनाती हैं! दूध फूल की पूजा चन्द्रमा को दी जाती है! गाँवों में इसे सब अपने उर्ख्याला (ओखली) के पास करते हैं! यह शायद ग्रामीण परिवेश में पहला इत्तेफाक होगा जब चाँद को दूध दिखाया जाता है वरना माँ बहनें गौ दूहने के बाद हमेशा चन्द्रमा से दूध को छुपाकर लाती हैं! सारे दिन गणेश पार्वती शिब की पूजा चलती है कीर्तन भजन होते हैं ! जहाँ यह परम्परा नहीं है वे माँ बहने शिब कथा सुनती हैं या फिर शिब स्त्रोत पढ़ती हैं! चाँद निकलती ही कांसे की थाली में पानी डालकर वे माँ बहनें व्रत तोडती हैं जिनके पति पुत्र भाई उस दिन घर पर न हों ! जबकि जिनके पति घर पर हों तो पति करवा चौथ के में चन्द्रमा को अर्घ चढाने के बाद पत्नी को पति लड्डू व पानी पिलाकर उसका व्रत तोड़ता है! यह सारा उपक्रम घर के अंदर नहीं बल्कि घर के आँगन में बनी ओखली के पास किया जाता है! कतिपय महिलायें ओखली को से दुग्ध जलकर भरकर उसमें चाँद देखती हैं! इसमें ओखली पूजा का महात्म्य भी है ! कहते हैं माँ बहनें ओखली से अनुरोध करती हैं कि तू हमें इतना अन्न देना जिससे हम हर रोज नित तेरा उपयोग कर अपना भरण पोषण कर सकें व तेरे कूटे अन्न से मेरा परिवार निरोग रहे वहीँ माँ बहनें शिब व चन्द्र से प्रार्थना करती हैं कि मेरे पति/पुत्र/भाई निरोग रहें उनका हर कष्ट हरना उन्हें दीर्घायु देना व निरोग काया के साथ अपना सा ओज देना जिसकी शीत दमक से मेरा घर परिवार ओजायमान रहे! चन्द्र को दुग्ध जल चढाते हुए आप यह मन्त्र बोल सकते हैं:-

क्षीरोदार्णवसम्भूत अत्रिगोत्रसमुद् भव ।
गृहाणाध्र्यं शशांकेदं रोहिण्य सहितो मम ।।

व्रत विधि बेहद सरल है ! उम्मीद है आगामी व्रत के लिए प्रवासी उत्तराखंडी माँ-बहनें ही नहीं बल्कि पुरुष समाज भी तत्परता दिखाएगा व कोशिश करेगा कि इसके पुनर्जीवन के लिए वह करवा कौथ जैसा उपहार अपनी अपनी अर्धांगनियों को देगा! बेटे माँ को उपहार दें व भाई बहनों को !

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35 बर्षों से पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, पर्यटन, धर्म-संस्कृति सहित तमाम उन मुद्दों को बेबाकी से उठाना जो विश्व भर में लोक समाज, लोक संस्कृति व आम जनमानस के लिए लाभप्रद हो व हर उस सकारात्मक पहलु की बात करना जो सर्व जन सुखाय: सर्व जन हिताय हो.
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